बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

रविवार, 16 दिसंबर 2012

ग़ज़ल इस्मत बचाए फिर रही है.......

एक भी  शे’र अगर हो जाए   विजेंद्र शर्मा की क़लम से  इसमें कोई शक़ नहीं कि अदब की जितनी भी विधाएं हैं, उनमे सबसे मक़बूल ( प्रसिद्ध ) कोई विधा है, तो वो है ग़ज़ल ! दो मिसरों में पूरी सदी की दास्तान बयान करने...
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गुरुवार, 8 नवंबर 2012

रंज से इस कदर याराना हुआ @ QUICK बंदी

            कमलेश सिंह की कलम  से  Fear, Oh Dear! मैं तो बस आप ही से डरता हूँ. मैं कहाँ कब किसी से डरता हूँ. मेरी दुनिया है रोशनाई में, इसलिए रौशनी से डरता हूँ   बहर-ए-आंसू हूँ...
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रविवार, 4 नवंबर 2012

अदालत भी उगलदान है....

क़मर सादीपुरी की कलम से     1. ये निजाम क्या निजाम है। न ज़मीन है, न मकान है। झूठा, चोर, बेईमान है। कोहराम है, कोहराम है। सच को मिलती है सज़ा अदालत भी  उगलदान  है। दिल किस क़दर है बावफा तुझे इल्म है, न गुमान...
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गुरुवार, 13 सितंबर 2012

बदलती रहेगी तो बहती रहेगी हिंदी

हिंदी के संवेदनशील जानकार चाहिए   सैयद शहरोज़ क़मर की कलम से समय के साथ संस्कृति, समाज और भाषा में बदलाव आता है। परंपरा यही है। लेकिन कुछ लोगों की जिद इन परिवर्तनों पर नाहक  नाक  भौं सिकोड़ लेती है। अपने अनूठे...
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मंगलवार, 11 सितंबर 2012

रांची फिल्म फेस्टिवल में झारखंडी फिल्मों से सौतेलापन!

झारखंड के लिए नहीं है सुहाना सफ़र   कुंदन कुमार चौधरी की कलम से झारखंड बनने के 11 साल बाद पहली बार फिल्म फेस्टिवल 'सुहाना सफर का  आयोजन 12 से 15 सितंबर तक  रांची में किया जा रहा है। इस बात से झारखंड ·े फिल्मकार...
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रविवार, 24 जून 2012

क़लम की मजदूरी करने वाला निपनिया का किसान उर्फ़ अरुण प्रकाश

हर फ़िक्र को धुएं में उडाता चला गया.... सैयद शहरोज़ क़मर की क़लम से सितम्बर की कोई तारीख. साल २००८.रायपुर को मैं अलविदा कर चुका था. देशबंधु के प्रबंधन से ऊब थी, वहीँ दिल्ली आकर कुछ अलग कर गुजरने का ज्वार रह-रह कर उबल...
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सोमवार, 18 जून 2012

....... तो गायक होते सुरजीत पातर

              सुरजीत पातर मार्फ़त ऋतु कलसी  पाश के बाद पंजाबी कवि सुरजीत पातर सबसे ज्यादा पढ़े गए हैं. उनके लबो लहजे की ताजगी दायम है आज भी. जालंधर, पंजाब के एक गांव में १४ जनवरी 1944...
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रविवार, 10 जून 2012

आओ तनिक नाटक से प्रेम करें

ऐसा नहीं कह सकते कि थिएटर दम तोड़ रहा   विभा रानी सैयद शहरोज़ कमर से संवाद लेखक किसी किरदार को जीता है..उसे किसी चित्रकार सा कागज़ ए कैनवास पर उतारता है..लेकिन लेखक ही उस किरदार को अपने अभिनय में डूबती आँखों जीवंत कर...
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(यहाँ पोस्टेड किसी भी सामग्री या विचार से मॉडरेटर का सहमत होना ज़रूरी नहीं है। लेखक का अपना नज़रिया हो सकता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान तो करना ही चाहिए।)