बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

गुरुवार, 14 जुलाई 2011

आतंक के विरुद्ध जिहाद!
















देश के लिए कुर्बान मुजाहिदीनों को सलाम!
पाठक चौंक रहे होंगे । मैं क्या बेवकूफाना हरकत कर रहा हूँ.सच मानिए देश में हुई अब तक की तमाम आतंकी घटनाओं में  उनसे जूझते हुए,  लड़ते हुए जामे-शहादत पी जानेवाले वो तमाम जांबाज़ मुल्क के सिपाही, अफसर और आम नागरिक ही मेरी नज़र में सबसे बड़े मुजाहिदीन हैं।
मुजाहिदीन अर्थात जिहद, प्रतिकार, संघर्ष करनेवाला
ऐसा संघर्ष जो आतंक, अन्याय,असत्य,ज़ुल्म और अत्यचार के विरुद्ध हो। ऐसे मकसद के लिए जद्दोजिहद जिसका ईमान इंसान की जान बचाना और ज़मीन पर अमनो-अमन कायम करना हो।
अबुलकलाम आजाद, भगत सिंह, अशफाक, रामप्रसाद, विद्यार्थी,नेहरू, सुभाष जैसे अनगिनत लोग हुए जिन्होंने अंग्रेजों से मुल्क को आज़ादी दिलाने के लिए जिहाद किया.और आज इतिहास उन्हें मुजाहिदे-आज़ादी कहता है।


२३/११ को भी  मुंबई में शहीद हमारे देशवासियों ने विदेशियों की नापाक साजिश से मुक्त कराने के लिए जिहद किया और शहीद तो हुए लेकिन उन्हों ने ये विश्व को दिखा दिया की तिरंगा झुकनेवाला नहीं है।इस १३ को जो हुआ.जिसने भी किया.हर ओर से घोर भर्त्सनाएँ हो रही हैं. केंद्रीय गृहमंत्री पी चिदंबरम ने कहा कि धमाकों के लिए फ़िलहाल किसी एक गुट को ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता.लेकिन इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि अम्रीका और पाकिस्तान पोषित मानसिकताएं बेहद चतुराई के साथ आम भारतीय युवाओं को बरगला कर उनसे धर्म और मज़हब के नाम पर ऐसे खूनी कारनामे करवा रही हैं.

लेकिन समूची इंसानियत को बंदूक की नोक पर नचाने का सपना देखने वाले इस्लाम समेत किसी भी धर्म-सभ्यता में मुजाहिदीन नहीं कहे जा सकते।

वे आतंकवादी हैं, उग्रवादी हैं, दहशतगर्द हैं।
उन्होंने कठोर से कठोर सज़ा मिलनी चाहिए।
उन्हें मज़हब और धर्म का इस्तेमाल करने की इजाज़त किसी भी कीमत पर नहीं मिलनी चाहिए.इस्लाम ऐसे दहशतगर्दों के लिए कठोरतम सज़ा की हिमायत करता है.मुस्लिम परिवार में जन्म लेने के कारण इस्लाम की थोड़ी-बहुत जो समझ, और संस्कार ने जो तमीज दी है , उसके आधार पर मैं सबसे पहले मुसलामानों से अपील करता हूँ की आप आगे आयें और इस्लाम को बदनाम करनेवाले इन दहशतगर्दों के विरुद्ध जिहाद करें.अपने सभी संसाधनों का इस्तेमाल करते हुए, पूरी शक्ती के साथ आतंकवादियों का मुकाबला कीजिये,आतंकवाद की कमर तोड़ दीजिये.आपके प्यारे नबी की हदीस है ; वतनपरस्ती ॥ अपने वतन की तरफ़ बुरी नज़र से देखने की कोई हिमाक़त करे तो उसकी आँख फोड़ दीजिये।

जिहाद वो नहीं जैसा नाम-निहादी कर रहे हैं बल्कि उनके ख़िलाफ़ खड़े होना जिहाद है।
इस्लाम में जिहाद
बे-ईमानी के विरुद्ध ईमानदारी के लिए संघर्ष।
असत्य के विरुद्ध सत्य के लिए संघर्ष।
अत्याचार, ज़ुल्म, खून-खराबा और अन्याय के विरुद्ध सद्भाव, प्रेम, अमन और न्याय के लिए संघर्ष।
अब कुरान क्या कहती है:
...जो तुम पर हाथ उठाए , तुम भी उसी तरह उस पर हाथ उठा सकते हो,अलबत्ता ईश्वर से डरते रहो और यह जान रखो कि ईश्वर उन्हीं लोगों के साथ ही जो उसकी सीमाओं के उलंघन से बचते हैं।
२:१९४
....उन लोगों से लड़ो,जो तुमसे लड़ते हैं, परन्तु ज्यादती न करो।अल्लाह ज्यादती करने वालों को पसंद नहीं करता.
२:१९०
....और यदि तुम बदला लो तो बस उतना ही ले लो जितनी तुम पर ज्यादती की गयी हो. किन्तु यदि तुम सबर से काम लो तो निश्चय ही धैर्य वालों के लिए यह अधीक अच्छा है।
१६:२६
शान्ति, सलामती इस्लाम की पहचान रही है.जभी आप एक-दूसरे से मिलने पर अस्सलाम अल्लैकुम यानी इश्वर की आप पर सलामती हो , कहते हैं.आप कुरान की ये आयत जानते ही हैं:
जिसने किसी की जान बचाई उसने मानो सभी इंसानों को जीवनदान दिया।
५:३२


मुंबई के हादसे पर इंसानियत आपसे सवाल करती है.यूँ देश के तमाम मुस्लिम संस्थाओं, इमामों और उल्माओं ने घटना की कठोर निंदा के साथ दोषियों को सख्त से सख्त सज़ा की मांग की है.समय-समय पर एक मुस्लिम संघठन आतंकवाद-विरोधी जलसा वर्ष-भर से जगह-जगह आयोजित करता रहा है.किसी संगठन ने कभी अमन-मार्च भी निकालाथा .लेकिन महज़ निंदा और जलसे जुलुस से अब कुछ नहीं होने वाला अब ज़रूरत खुलकर आतंकवादियों का मुकाबला करने की है.पास-पड़ोस में पनप रही ऐसी किसी भी तरह की मानसिकता को ख़त्म करने की.सरकार और पुलिस को सहयोग करने की.संसार के सामने प्रमुख चुनौतियों में से एक है आतंकवाद!जिसका समूल नाश बेहद ज़रूरी है॥ वसुधैव कुटुंब बकम .ये हमारी विरासत है।
और पगैम्बर मुहम्मद की ये हदीस हमारा ईमान :
सम्पूर्ण स्रष्टि इश्वर का परिवार है.अतःइश्वर को सबसे प्रिय वो है जो उसके परिवार के साथ अच्छा व्यव्हार करे।


भाई आवेश ने इसे नेटवर्क 6 पर भी पेस्ट किया है.यहाँ भी पढ़ सकते हैं.

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13 comments: on "आतंक के विरुद्ध जिहाद!"

DR. ANWER JAMAL ने कहा…

कल मुंबई पर फिर आतंकवादी हमला हो गया है। अभी तक 20 लोगों के मारे जाने की सूचना आई है और 100 से ज़्यादा ज़ख्मी हैं। हमारी संवेदनाएं इनके साथ हैं और सारे देश की संवेदनाएं इनके साथ हैं। इस बार भी सुरक्षा व्यवस्था कड़ी करने और आतंकवादियों से कड़ाई से निपटने की बातें की जा रही हैं। मुंबई पर किए गए पिछले हमलों के बाद भी यही बातें की गई थीं। यह हमला बता रहा है कि बातों पर ढंग से अमल नहीं हो पाया है।
आतंकवादियों का असल काम लोगों को मारना नहीं होता। मात्र 20-30 लोगों को मारने से भारत की आबादी में कुछ भी कमी होने वाली नहीं है। दरअसल उनका मक़सद भारत के लोगों में एक दूसरे के प्रति अविश्वास और संदेह पैदा करना होता है। आतंकवादी हमलों के बाद जो लोग एक वर्ग विशेष के प्रति सरेआम संदेह व्यक्त करते हैं, दरअसल वे जाने-अनजाने आतंकवादियों के ‘अगले चरण का काम‘ ही पूरा करते हैं। आरोप प्रत्यारोप और संदेह भारतवासियों के प्रेम के उस धागे को कमज़ोर करता है जिससे सारा भारत बंधा है। इस धागे को कोई आतंकवादी आज तक कमज़ोर नहीं कर सका है और न ही कर सकता है। यही हमारी शक्ति है। इस शक्ति को खोना नहीं है।
देश के दुश्मनों के लिए काम करने वाले ग़द्दारों को चुन चुन कर ढूंढने की ज़रूरत है और उन्हें सरेआम चैराहे पर फांसी दे दी जाए। चुन चुन कर ढूंढना इसलिए ज़रूरी है कि आज ये हरेक वर्ग में मौजूद हैं। इनका नाम और संस्कृति कुछ भी हो सकती है, ये किसी भी प्रतिष्ठित परिवार के सदस्य हो सकते हैं। पिछले दिनों ऐसे कई आतंकवादी भी पकड़े गए हैं जो ख़ुद को राष्ट्रवादी बताते हैं और देश की जनता का धार्मिक और राजनैतिक मार्गदर्शन भी कर रहे थे। सक्रिय आतंकवादियों के अलावा एक बड़ी तादाद उन लोगों की है जो कि उन्हें मदद मुहैया कराते हैं। मदद मदद मुहैया कराने वालों में वे लोग भी हैं जिन पर ग़द्दारी का शक आम तौर पर नहीं किया जाता।
‘लिमटी खरे‘ का लेख इसी संगीन सूरते-हाल की तरफ़ एक हल्का सा इशारा कर रहा है.
ग़द्दारों से पट गया हिंदुस्तान Ghaddar

अफ़लातून ने कहा…

शहरोज़ भाई,
इस मुहिम में मुझे शरीक मानिए ।
सप्रेम,
आपका

Sanjeet Tripathi ने कहा…

सत्यवचन भाई साहब।
इस मुहिम में हम सब को शरीक होना ही चाहिए। मैं हूं।

Unknown ने कहा…

हम खुद को मुजाहिदीन मानने से इनकार करते हैं ,हम खुद को जिन्दा कौम भी नहीं मानते ,अगर होते तो क्यूँकर ये हादसे होते ?हम हिंदुस्तानियों को छोटा खाने की आदत सी हो गयी है ,जिस वक्त देश में पहली आतंकी घटना घटी ठीक उसी वक्त हमें जेहाद का ऐलान करना चाहिए था|ये वक्त सिविल नाफरमानी का है,जो सरकार अपने नागरिकों की रक्षा नहीं कर सकती उससे सत्ता छीन लेनी चाहिए

रेखा श्रीवास्तव ने कहा…

aise niradham insaan kahe jane kabil nahin hain to phir dharm ki bat
kaise kar sakate hain. koi bhi dharm ya astha aisi ghinauni harkaton
ka samarthan nahin karti hai. insaaniyat sabka pahala sabak hai.
chalen ham isa muhim men aur sochen ki kahan galat sandesh ja raha hai
aur aise logon ki manasikata ko kaise samajha aur badala ja sakata
hai. asambhav kuchh bhi nahin hai.

bhavpreetanand ने कहा…

लेख बहुत अच्छा है। इस तरह की आतंकी हमले पहले भी हुए हैं। हमारी बहुरंगी संस्कृति में वह सबकुछ उपलब्ध है जिससे हम चीजों को सही तरीके से देख सकते हैं, जैसा कि आपने देखा है। कुछ लोगों के अतियों के शिकार वे लोग होते हैं जिनका उनसे दूर दूर तक रिश्ता नहीं होता है। बस हमारी अमन पसंदगी में इतनी ताकत होनी चाहिए कि कुछ लोगों की अतियों को आसानी से महत्वहीन किया जा सके।
bhavpreetanand

bhavpreetanand ने कहा…

इस्लाम की समझ रखने वाले इसी तरह सच्चाई पर जमी धूल की परत हटाएं। यह समय की मांंग है। शहरोज भाई अपने इस मुहिम को एक ब्लौग पोस्ट तक सीमित न रखें। इसे विस्तार दें। आपसे इसी तरह के और लेखों की उम्मीद है।

रंजना ने कहा…

सार्थक पहल....
इस तरह के अभियान व्यापक रूप से चले तो निश्चय ही सफलता हाथ आयेगी...

(केवल एक अनुरोध है आपसे, अंग्रेजों से भारत को आजादी दिलाने के संघर्ष में लगे जिन महान पुरुषों का आपने नाम लिया उसमे से नेहरु जी का नाम छांट दें)

शेरघाटी ने कहा…

यह कमेन्ट शमशाद साहब का है.मूलत: मेरठ के मवाना के रहने वाले लेखक-पत्रकार शमशाद इलाही अंसारी ( फ़िलहाल कई वर्षों से ऑनतोरियो में है.) यहाँ कमेन्ट न कर सके तो उन्होंने फेस बुक पर चिपका दिया.वहाँ अच्छी खासी बहस चली.लिंक नीचे है.

शहरोज़ भाई के जिहाद वाले आलेख ’हमज़बान’ पर मेरी टिप्प्णी कुछ यूं है:(आप भी पढिये)



भाई माफ़ करना, इस्लाम के हवाले से या किसी दूसरे मज़हब के हवाले से आप इस लडाई को नहीं लड सकते..कुरान शरीफ़ के हवाले से अल -कायदा ने दुनिया भर में जिन लडाकों को भर्ती किया है इसके लिये उन्होंने भी तर्क दिये थे और बाकायदे पढे लिखे लोगों का दिमाग साफ़ किया था. मैं किसी भी मज़हब के ऐतबार से जिहाद नहीं लड सकता..क्योंकि अगर तारीख पढें तब पता चलता है कि मरने वाला और मारने वाला दोनों के हाथ में कुरान शरीफ़ था. (हज़रत अली हत्याकाण्ड से लेकर सलमान तासीर की हत्या तक) इस्लाम के नुक्ते नज़र से यह लडाई नहीं लडी जा सकती. अभी वक्त आ गया है धर्म को निजी मसलो तक महदूद कर देने का...जो सडक पर दिखाई दे वह धर्म नहीं, जो भी फ़िज़ा में घुले वह राजनीति है.



मज़हबी आतंक के खिलाफ़ सिर्फ़ और सिर्फ़ वाम ताकतें लड सकती हैं औत निर्णायक फ़तह भी उन्ही की होगी. चाहे शिव सेना हो या आर.स.स. मुजाहिदीन, अल कायदा, हमस या हिज़्बोल्लाह,ब्रदरहुड आदि ये तमाम ताकतें जनता की दुश्मन हैं, ये तब-तब ताकतवर हुए जब जब हमने लडना बंद कर दिया या हमारी पांते कमजोर हो गयी- चाहे भारत का सवाल हो या फ़लस्तीन का.



रही बात इन धमाकों की...असीमानंद के खुलासे के बाद यह भरोसे से कहना कि यह काम मुसलमान फ़िरकापरस्त ताकतों का ही है, शायद जल्दबाजी होगी. जांच के बाद पता चला कि शिव सेना को कोई घडा इसमे लित्प पाया गया तब क्या करोगे? चिदांबरम और उसकी व्यवस्था एक धोका है...क्या हम भूल गये किस तरह इसने आज़ाद की हत्या करायी, ये मेरा नहीं स्वामी अग्निवेश का भी संशय है.



निर्दोष लोगों की हत्यायें करना...कोई बुजदिल और नपुंसक व्यक्ति अथवा संगठन ही कर सकता है, इनकी शिनाख्त करना और समाज में इन्हे अलग थलग करना एक बडा काम है, बडे फ़लक की सोच से लैस ही इस चुनौती का सामना कर सकता है. आपने यह लडाई शुरु की है..मुहीम शुरु की है..स्वागत आपका..यह काम सराहनीय है. हम सभी इसमें शरीक हैं और होने चाहिये..गली कूचों से लकर मंदिर -मस्जिद और संसद तक यह सफ़र आसान नहीं...सादर

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शेरघाटी ने कहा…

हिंद पीढी , रांची की मस्जिद मदीना के इमाम ने आज जुमे की नमाज़ से पहले आतंकवाद की जमकर मज़म्मत की.इसे सिरे से इस्लाम से जोड़ने की मुखालिफत की.उनकी भी मुखालिफत की जो नाम निहादी मुसलमाँ इसमें शामिल होकरमुसलमान, देश और मज़हब को बदनाम कर रहे हैं.बेकसूरों की जान ले रहे हैं.

شہروز ने कहा…

आप सभी का आभार!

Khare A ने कहा…

jo bhi he, iska koi pakka samadhaan hona chahiye! shanti-aman ho sab jagha! bat insaniyat ki ho/ kisi dharm vishesh ki nhi. burai par khul kar bolo/ jaandar/shaandar aalkeh

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न स्याही के हैं दुश्मन, न सफ़ेदी के हैं दोस्त
हमको आइना दिखाना है, दिखा देते हैं.
- अल्लामा जमील मज़हरी

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