बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

सोमवार, 4 जुलाई 2011

किसका कसूर है कि कैसा निज़ाम ए दस्तूर है .संदर्भ फारबिसगंज

क्या बिहार में मुसलमान होना गुनाह है ??????
























संदीप मौर्य की क़लम से
आज के बदलते दौर में यह सवाल संभवतः कई सवालों को जन्म देता है। मसलन क्या भारत वाकई में धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र नहीं है? अथवा क्या भारत के मुसलमानों को जीने का अधिकार नहीं है? अथवा क्या भारत के मुसलमानों को अभी भी कुर्बानियां देनी होगी, यह साबित काने के लिये कि वे भी इसी माटी के सपूत हैं? जाहिर तौर इस सवाल का कोई मतलब नहीं होता अगर भारत में गुजरात नहीं होता या फ़िर गुजरात में नरेंद्र मोदी जैसा शासक नहीं होता। लेकिन दुर्भाग्य कहिये कि अब ये सवाल हमारे बिहार में भी उठने लगे हैं। यह सवाल उठा है उस व्यक्ति के शासनकाल में जो स्वयं को बिहार का सबसे काबिल मुख्यमंत्री बताते फ़िरते हैं और फ़िर बिहार की गरीब जनता के पैसे को विज्ञापन के रुप में बांटकर पालिटिशियन आफ़ द इयर का अवार्ड लेना इनका शौक बन चुका है।
जी हां, हम बात कर रहे हैं, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की। इनकी बात हम बाद में करेंगे। सबसे पहले हम बात करेंगे उपर तस्वीर में दिख रहे चेहरों की। इन सभी लोगों का गुनाह यह है कि ये सभी बिहार के अररिया जिले के फ़ारबिसगंज के निवासी हैं। इनमें से एक अब इस दूनिया में नहीं है। लेकिन 3 जून तक वह बिहार का वासी था। उसके साथ कुछ और लोगों ने इस दूनिया को अलविदा कहा। यह उनके जाने का समय नहीं था। मरने वाले सभी की उम्र 35 वर्ष से कम ही रही होगी। इनमें से एक की उम्र तो केवल 7 महीने की थी। उसका नाम नौशाद था। उसकी मां उसे अपने गोद में छिपाये सुरक्षित स्थान की ओर भाग रही थी। पुलिस ने सामने से उस पर गोली चलाया और गोली नौशाद को लगी। 7 महीने का नौशाद खुशनसीब था कि उसकी मौत मां की गोद में हो गई। नौशाद की मां अपने लाल को मरा देख दहाड़े मारकर रोने लगी। पुलिस को फ़िर भी रहम नहीं आई। उसने नौशाद की मां पर भी गोली चलाई। गोली उसके जांघ में लगी और वह गिर पड़ी। एक तरफ़ नौशाद की लाश पड़ी थी, तो दूसरी ओर उसकी मां गोली लगने की वजह से बेसुध पड़ी थी।
कुछ दूरी पर एक और लाश पड़ी थी। वह लाश थी मुस्तफ़ा की। मुस्तफ़ा 18 वर्ष का नौजवान था। वह फ़ारबिसगंज में ही कर्बला के पास पान की दूकान चलाया करता था। उसके पिता फ़ुलकान अंसारी ने बताया कि उनका बेटा बाजार से सामान लेकर लौट रहा था। इसी बीच वह पुलिस की गोली का शिकार हो गया। 18 साल के नौजवान मुस्तफ़ा को पुलिस ने 4 गोलियां मारी थी। लेकिन वह मरा नहीं था। उसके शरीर में जान बाकी थी। एक पुलिस वाला उसके शरीर पर कूद रहा था और उसे अपने बूट से मारे जा रहा था। मुस्तफ़ा मरा तो नहीं, लेकिन उसके शरीर में प्रतिरोध की शक्ति नहीं थी। वह पुलिस वाला उस बेजान पर अपनी मर्दानगी दिखा रहा था। बाद में पुलिस ने उसे मरा हुआ जानकर पोस्टमार्टम के लिये भेज दिया। पोस्टमार्टम के दौरान डाक्टरों ने उसे जीवित पाया। डाक्टरों ने उसे तत्काल ही इलाज के लिये भेज दिया और उसे तत्काल ही आक्सीजन लगाया गया। लेकिन तबतक बहुत देर हो चुकी थी और इस बार वह हमेशा-हमेशा के लिये मर चुका था।
एक महिला भी सुशासक नीतीश कुमार के राज में पुलिस की गोली का शिकार हुई। वह भी फ़ारबिसगंज के भजनपुर गांव की ही रहने वाली थी। उसका पति उसी निर्माणाधीन फ़ैक्ट्री में काम करता था, जिस फ़ैक्ट्री के संचालकों के दबाव पर बिहार पुलिस ने लोगों पर कहर बरपाया। वह गर्भवती थी। उसके पेट में 6 माह का बच्चा था। वह बाजार में एक मैटरनिटी सेंटर से अपना चेक अप कराकर घर लौट रही थी। लेकिन वह घर नहीं पहुंच सकी। इसकी वजह रही कि वह घर पहुंचने से पहले ही परलोक सिधार चुकी थी। उस गर्भवती महिला और उसके अजन्मे बच्चे को भी नीतीश कुमार की पुलिस ने गोली से मार दिया। जरा सोचिये कि आखिर उस महिला ने बिहार के मुखिया अथवा सत्ता में बैठे लोगों अथवा उस कंपनी के मालिकों का कौन सा हक छीनने का प्रयास किया कि पुलिस ने उसे एक नहीं 6 गोलियां मारी।
जाहिर तौर पर इन सवालों का जवाब बिहार सरकार के पास नहीं है। बिहार सरकार की गद्दी पर जो महानुभाव बैठे हैं, उनका एक ही एजेंडा है। गरीबों को मारो, उद्यमियों को खुश रखो। विकास के इसी फ़ार्मूले को नीतीश कुमार न्याय के साथ विकास कहते हैं।
खैर, उस घटना, घटना के कारणों और घटना को अंजाम देने वाले लोगों के बारे में बता दें कि आखिर क्यों और किसने भजनपुर गांव के लोगों के घर में लाशों का ढेर लगा दिया। बदलता बिहार का एक बदलता हुआ जिला है अररिया जिला। इस जिले को सरकार ने दो हिस्सों में बांट रखा है। एक हिस्सा खास अररिया के नाम से जाना जाता है तो दूसरे हिस्से को लोग फ़ारबिसगंज के नाम से जानते हैं। वह वही फ़ारबिसगंज है, जहां कभी मैला आंचल के जनक फ़णीश्वरनाथ रेणु का जन्म हुआ था। इसी फ़ारबिसगंज में एक गांव है भजनपुर गांव और इसके बगल में एक और गांव है रामपुर। नाम से लगता है कि ये दोनों गांव हिन्दूओं के गांव होंगे। लेकिन भारतीय धर्मनिरपेक्षता का अधूरा प्रमाण कि इन दोनों गांवों के अधिकांश वाशिंदे मुसलमान हैं।

दरअसल यह जमीन जिसके नाम पर बिहार सरकार ने आवंटित किया है, वह भाजपा विधानपार्षद अशोक अग्रवाल का बेटा है। यह वही अशोक अग्रवाल हैं जिनपर हत्या करने का एक मामला हाईकोर्ट में चल रहा है और इनके उपर स्मगलिंग करने का आरोप भी लग चुका है। जब स्थानीय प्रशासन आम नागरिकों को समझाने में असफ़ल रही तो उसने 2 जून को ही ग्रामीणों के साथ लिखिज समझौता किया। लिखित समझौते के हिसाब से कंपनी को पहले गांव में आने-जाने के लिये रास्ता बनवाने का वायदा किया गया। लेकिन 3 जून को दोपहर में पुलिस वालों की मौजूदगी में कंपनी वालों ने भजनपुर गांव के लोगों के लाइफ़लाइन पर दीवार खरी कर दी। फ़िर क्या था, यह खबर इलाके में जंगल की आग की तरह फ़ैल गई। लोग जूटने लगे। गांव वाले दीवार हटाने की मांग कर रहे थे। लेकिन जब प्रशासन की ओर से बातचीत के लिये कोई पहल नहीं की गई तब ग्रामीणों का आक्रोश बढने लगा। इस बीच ग्रामीणों ने कंपनी प्रबंधकों द्वारा बनाये गये नवनिर्मित दीवार को ढाह दिया। इस घटना से आपा खोते हुए स्थानीय आरक्षी अधीक्षक ने फ़ायरिंग करने का आदेश दे दिया। फ़िर जो कुछ हुआ, उस पर अफ़सोस ही जताया जा सकता है।
खैर, अब इस घटना को बीते एक सप्ताह हो चुका है और अभी तक मृतकों के परिजनों और घायलों को मुआवजा नहीं दी गई है। इस पर तुर्रा यह कि राज्य का सुशासक यह दलील दे रहा है कि सभी को मुआवजा न्यायिक जांच के बाद दी जायेगी। यानि पहले पूरे घटना की जांच की जायेगी और फ़िर मुआवजे की राशि तय की जायेगी।
वैसे इस संबंध में मेररी निजी राय है कि बिहार सरकार को इस घटना के लिये जिम्मेवार लोगों को कोई मुआवजा नहीं देना चाहिये। सबसे पहले तो मुआवजा उस कंपनी के प्रबंधकों को मिलनी चाहिये, जिसे इतना नुकसान हुआ। गरीब ग्रामीणों का क्या है, उन्हें मुआवजा देने से क्या लाभ? वैसे भी गलती उनकी है कि उन्होंने सच के लिये अपनी कुर्बानी दी और आज की तारीख में ऐसे लोगों को शहीद कहा जाता है। शहीदों की शहादत की कोई कीमत नहीं होती है। शहीदों की शहादत कभी बेकार नहीं जाती। संभव है कि लाशों के ढेर पर बिहार में खड़ा होने वाले उद्योगों से बिहार की गरीबी दूर हो। हालांकि एक सवाल यह भी क्या वाकई इस राज्य में मुसलमान होना कोई पाप है। जरा सोचिये कि अगर भजनपुर और रामपुर गांव के लोग मुसलमान के बजाय हिन्दू होते तो क्या भाजपाई उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी अपने दल के क्रिमिनल विधान पार्षद अशोक अग्रवाल के पक्ष में बिहार की भलमानस पुलिस को ग्रामीणों पर फ़ायरिंग करवाते। इसका सीधा जवाब है- नहीं। इसका एक प्रमाण यह कि जब उत्तरप्रदेश के नोयडा के एक गांव में जमीन अधिग्रहण को लेकर हिंसा हुई तो भाजपा के सभी बड़े नेताओं सहित सुशील मोदी ने भी उत्तप्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती की आलोचना की थी। बहरहाल, हम तो आप सभी से इसी सवाल का जवाब जानना चाहते हैं-
फेस बुक से साभार




(लेखक-परिचय: जन्म:अरवल बिहार में, २२ दिसंबर १९८८
शिक्षा: पत्रकारिता और जन संचार में उपाधि
सम्प्रति :महिंद्रा-महिंद्रा में जनसंपर्क अधिकारी ,पटना  )



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3 comments: on "किसका कसूर है कि कैसा निज़ाम ए दस्तूर है .संदर्भ फारबिसगंज"

kshama ने कहा…

bade hee darawne mahaul se aapne ru-b-ru karaya hai!

JAI BHARAT ने कहा…

MUSALMAN KATL KARE TO THIK AUR AGAR HINDU KARE TO SAMPRADAYIKTA /
KUON JANAB

Shambhu Goel ने कहा…

आपको शायद नहीं मालूम असलियत का |आपने हज़ारों शब्दों में लिख डाली एक ऐसी दास्ताँ जिसकी पृष्ठ भूमि से आप अवगत ही नहीं हैं श्री मान !यह अमानवीय तब तक नहीं होता जब सिर्फ गरिमा मल्लिक जी (the then S.P. ,Araria)को फिरकापरस्तों ने जान से मार दिया होता |कथित शांतिप्रिय अवाम जो upcoming फैक्ट्री की साईट पर जमा होकर फैक्ट्री की अचल नव-स्थापित संपत्ति को पूरा जला कर राख बना देते |इनलोगों ने मेहरबानी की की ५-७ ही ऐसी संपत्तियों को जलाया |एक कोंस्टेबल को इनलोगों ने लोहे की छड से बुरी तरह पिटा |जब यह गैरतमंद लोगों का हुजूम बेकाबू हो गया तब पुलिस ने गोली चलाई |If they would have been allowed to loot,murder the S.P. ,set ablaze the whole of the property created by the Promoters of the upcoming factory, would have butchered to death the constable who has been shown by the media kicking a half-dead man by his boots , it would have been very secularist step of the Government in Power in Bihar .
It does not matter at all . Law will take its own course , it does not matter even if Manish Tiwaris, Rahul Gandhis , the worst blood in the list of Politicians in India , the sacrosanct RAM VILAS PASWANs, Laloo et al ,they may be allowed to invent and find out any more newer methods of denigrating the present governance in Bihar , not a single drop of water can come out for them to prove their lies and unfounded rhetoric .
The matter in question and hotly debated global issue for inhuman treatment of people belonging to a particular segment of the society ,my Dear Sir, would not have been so picturesque neither so sizzling an episode , if the crowd gathered at the site which should be called a mob of thousands of heads but without brains who instantly and spontaneously made the whole matter rise to flames on the advise of one Gaus Mohammed of Rampur Village , one Johnny alias Altaf Alam, one Munnu alias Farhad Shabbir, one Mulchand Golchha , the usurer/ trader of Forbesganj and one Mahendra Marothi who acquired many billions out of malpractices in trading . Gaus Mohammed was paid 5 lacs by Mulchand Golchha to carry out the whole of the situation that we are witness to today. The upcoming factory would have purchased 8000 quintals of Maize daily in its final phase of completion, it would have brought largesse to the whole of the farming community ,it would have ushered the whole area of farmers experience rejoice and well -being , since Mul Chand Golchha is a trader without human heart, he wanted this factory never to come as to commence commercial production, as it would have marred his trade of export of this commodity to far flung area , when he was able to exploit the entire area by paying very small price to the producers of Maize grain and garner a hefty profit out of the sale so made to the buyers stationed at destinations like Hyderabad, many of them in West Bengal taking a huge margin in such transactions.
The entire fiasco is a 5 men created misadventure and you are saying the things which you have said .Please be acquainted with the reality .There are many more facts that can be said but I will tell you after some time .
I am not a man of Nitish nor a henchman of this bastard who is known as Sushil Modi , I have decried their almost all announcements when they shower gifts and accolades to the general mass ,as if all money involved in such handouts belong to their ancestors. it is the public money which is being squandered and the coffers (of the population) is being devastated by their such manipulative manoeuvres.

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न स्याही के हैं दुश्मन, न सफ़ेदी के हैं दोस्त
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- अल्लामा जमील मज़हरी

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