सी.सुमन की कविताएँ
मुश्किल राहो को करना हो आसां
तो दर्द किसी को ना देना .
माँ कहती थी
.
२
तो दर्द किसी को ना देना .
माँ कहती थी
.
२
माँ कहती थी
शाम होते ही घर लौट आना
बाहर दरिंदगी बहुत है
दिन मे अपनों का चेहरा
पहचान नहीं पाते है
शाम होते ही घर लौट आना
बाहर दरिंदगी बहुत है
दिन मे अपनों का चेहरा
पहचान नहीं पाते है
तो रात का एतबार कौन करे
.
३
३
माँ कहती थी
अपनों के बीच जब पराया महसूस करे
भीड़ में रह कर भी अकेला हो
तो सजदे में चले जाना
सुकून होगा शांति होगी
अपनों के बीच जब पराया महसूस करे
भीड़ में रह कर भी अकेला हो
तो सजदे में चले जाना
सुकून होगा शांति होगी
४
माँ कहती थी
याद आये कभी मेरी
जाने के बाद
जीना मुश्किल लगे या
उठ जाये कभी किसी से एतबार
लेना हो जिंदगी में किसी फैसले का जवाब
तो बक्से में बंद एल्बम से तस्वीर निकालना
जिसमे ऊँगली पकड़ चलाया था तुझे पहली बार .
याद आये कभी मेरी
जाने के बाद
जीना मुश्किल लगे या
उठ जाये कभी किसी से एतबार
लेना हो जिंदगी में किसी फैसले का जवाब
तो बक्से में बंद एल्बम से तस्वीर निकालना
जिसमे ऊँगली पकड़ चलाया था तुझे पहली बार .
[कवयित्री-परिचय
जन्म: किसी वर्ष १८ दिसंबर को बीकानेर में.
शिक्षा: विज्ञानं एव शिक्षा में स्नातकोतर
आकाशवाणी बीकानेर से विज्ञानं वार्ताए प्रसारित, उदघोषक के रूप में कार्य ,
सामूहिक चर्चाओ में भागीदारी .विभिन्न पत्र-पत्रिकाओ में लेखन, लघु फिल्म निर्माण में सक्रिय .
बारह वर्षो से जीव विज्ञानं व्याख्याता के रूप में अध्यापन
सम्प्रति: वनस्थली विद्यापीठ विश्वविद्यालय(निवाई),टोंक-राजस्थान में कार्यरत .
संपर्क: suman18gaur@gmail.com ]
बारह वर्षो से जीव विज्ञानं व्याख्याता के रूप में अध्यापन
सम्प्रति: वनस्थली विद्यापीठ विश्वविद्यालय(निवाई),टोंक-राजस्थान में कार्यरत .
संपर्क: suman18gaur@gmail.com ]
16 comments: on "माँ कहती थी"
अरे ! मेरी कविता की भी शुरुआत तो यहीं से होती है और भाव भी लगभग मिलते-जुलते. देखिये-
"माँ कहती थी
सूनी राहों पर मत निकलो
क़दम क़दम पर यहाँ भेड़िये
घात लगा बैठे रहते हैं,
मैं चुप रहती
और सोचती
ये दुनिया है या है जंगल... "
कितनी अजीब सी बात है. देश के दो छोरों पर रहने वाली अलग-अलग बैकग्राउंड की दो औरतें एकदम एक जैसा सोचती हैं.
@ मुक्ति जी
और इसी कारण मैंने इसे पोस्ट भी की.कल आपको पढ़ा था.
माँ कहती थी
शाम होते ही घर लौट आना
बाहर दरिंदगी बहुत है
दिन मे अपनों का चेहरा
पहचान नहीं पाते है
तो रात का एतबार कैसे करे .
sharoz ji bahut hinacchi kavita ..shukriya padhwane keliye.
accha laga padhna, kavita prvah bhi acchi lagi
माँ सच कहती थी...लेकिन बेटीया कैसे माँ की बात को आत्मसात कर पूरी जिंदगी उन्ही बातों का अनुसरण करती हैं जबकि बेटे अतिक्रमण करते हैं. बेटों को भी तो माएं ये सब सिखाती हैं ना.
बहुत अच्छी क्षणिकाएं है जो मन को छू गयी.
Dear Suman ji,
Appka ahesaas maa k liye...padhe...har ek shabd jaise maa ke gale
lag rahe hai..
pyaar k sath...
Sanjeev Patni
सुमन जी की कविताओं को पढना या मुक्ती जी की..एक औरत के अंतरे कोने को बहुत ही इत्मिनान से गुनना है.
शहरोज़ साहब आपका शुक्रिया.....सुमन जी का भी ! हम सभी ने अच्छी चीज़ें पायी पढने को.
हर माँ बेटियों से यही कहती हैं ....सुन्दर भाव
सुन्दर , सहज भाव से बही पंक्तियाँ
सुमन जी की कविताएँ जैसे गागर में सागर।
…………..
प्रेतों के बीच घिरी अकेली लड़की।
साइंस ब्लॉगिंग पर 5 दिवसीय कार्यशाला।
ओह्……………।बहुत ही गहरे जज़्बात भरे हैं।
बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचनाएं हैं। बधाई।
माँ
जो कहती है
वो जिन्दगी के अनुभव से पढ़ी
इबारत होती है...
उसका कोई काट नहीं..
माँ सच कहती थी.
एक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए आप को बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
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