सैयद
शहरोज़ क़मर की क़लम से
फोटो:
रमीज़
|
शोक के समुंदर में डूबे मरईटोला की एकांत कथा
मांडर
थाना से चंद क़दम पर वो कच्ची
सड़क उस गांव का पता देती है,
जिसकी दर्द
भरी कहानी बहुत पुख्ता है।
कंजिया के फैले हरे-भरे
खेतों में काम करती महिलाएं
रविवार को बिना गीता गाए रोपनी
कर रही थीं। शोक गीत का अंतरा
उनके अंदर कहीं रीत रहा होगा।
इस गांव का ही तो विस्तार है,
मरईटोला,
जहां शुक्रवार
को गहराती रात के साथ डूबी
पांच महिलाओं की चीख ने कंजिया
से लेकर मांडर तक सन्नाटे को
भर दिया था। जिसके बादल रविवार
शाम और घने थे। अखड़ा से पहले
के पीपल पर टंगा तन्हा डोलता
झूला दहशत को बढ़ाता ही मिला।
शुक्रवार शाम तक गांव के बच्चों
की ठिठोली इसके हिंडोले के
साथ गगन चूम रही थी, लेकिन
उसके रात में ढलते ही मानो
गांव का यौवन ही ढल गया। कभी
शीतल छांव देने वाले शाल,
सखुवा,
पीपल व कटहल
के पेड़ की गहनता डरावनी हो
चुकी है। आंगन में बिखरे पत्ते
देख मदनी की बहू की आंखों में
बादल उमड़ आया। उस रात गांव के
लड़कों ने उनके घर की खुशियां
ही तो बिखेर दीं। वो लड़के जो
उनके पति करम देव के हमजोली
थे। जो काकी, मौसी
व चाची बोलते थकते नहीं थे,
उन्हीं काकी
की जान लेते उन्हें देर न लगी।
करम बोला, कोन
चाहेगा अब रहना यहां। पर जाएं,
तो जाएं कहां।
गांव की चारों दिशाओं से चुनकर अबला पांच स्त्रियों के जिस्म को अंधविश्वास की धार से धड़ से अलग कर दिया गया था। धार की चमकती दहशत अब भी उनके बच्चों व परिजनों के चेहरे पर चमकती है। जिसे गौर से पढ़ा जाए तो साफ तहरीर दिख जाएगी, अब देस हुआ बेगाना। नशे में धुत युवाओं की पहली शिकार हुई एतवारी के दोनों बेटे सुकुमार व आशिष कहते हैं, नहीं रहेंगे भैया अब गांव में। बोलिये तो, दोस्त ने मां को मार दिया, अपने मामा ने ही उनका साथ दिया। मल्टी, मांडर, लुंडरी, नामकोम और जोरिया से आए रिश्तेदारों से घिरीं जसिंता की दोनों बेटियां अनिमा व अन्नू कहती हैं कि अब गांव में क्यों रहें, कैसे रहें। जब पड़ोसी ही, अपने भाई-चाचा ही दुश्मन बन बैठे। कभी ऐसा नहीं सोचा था। पर जब रात के साथ आफत पहुंची, तो उसने अंधेरे में भी अपनों के नंगापन को साफ दिखा दिया।
जसिंता
के घर से पीछे से घूमकर जब गांव
की चौहद्दी नाप भास्कर टोली
घटनास्थल के पास पहुंची,
तो लाठी टेक
बार-बार
चक्कर लगाती एक बुजुर्ग महिला
से सामना हुआ, मानो
समूचे गांव का बोझा उठाए हो।
उधर, झूले
के पास आकर बार-बार
उसे निहारती बच्चों की टोलियां,
फिर एक-दूसरे
की आंखों में देख लौट गईं।
मरईटोला का आज यही सच है,
गांव के अधिकतर
युवा गिरफ्तार हो चुके हैं,
और कुछ फरार
हैं। घरों में बुजुर्ग,
औरते और बच्चे
हैं। हर आंखें एक दूसरे में
कुछ टटोलती हैं। कहती कुछ भी
नहीं। कहना चाहती हैं कि उनके
धुमकुड़िया की तरह गांव का
परस्पर विश्वास महज एक रात
के बवंडर में खंडहर कैसे हो
गया।
एतवारी
के बेटे थाना पहुंच जाते तो
बच सकती थी मां
रांची।
डायन बिसाही के आरोप में सेंदरा
कर दी गईं पांच महिलाओं के
दर्दनाक हादसे के तीसरे दिन
के सन्नाटे को मरईटोला में
कुछ यदि तोड़ता है, तो
वो पुकार है, जो
उनके बेटे व बेटियों के दिल
से निकलती है। गांव में सबसे
पहले विधवा मां-बेटी
रतिया व तितरी का घर है। आंगन
के तीन ओर घर बने हैं। इसके एक
कमरे में मां-बेटी
रहती थीं। रतिया के तीन बेटे
बाहर रहते हैं। रांची में रह
रहे छोटे बेटे परथो की पीड़ा
है कि डेढ़ साल पहले छोटी सी
जमीन को लेकर दिवंगत पिता एतवा
खलखो के भाई भांवरा के पोतों
सचिन व संदीप से गर नोकंझोंक
न हुई होती, तो
शायद इतनी बड़ी घटना न होती।
हालांकि अब वो दोषियों को
फांसी तक दिए जाने की मांग
करते हैं। वो उस कमरे का दरवाजा
दिखाते हैं, जिसे
कुल्हाड़ी से तोड़कर संदीप व
सचिन उनकी मां व बहन को ले गए।
वे जब चिल्लाने लगीं, तो
बड़ा बेटा शिबी आंगन में आए,
पर उनके गर्दन
पर भी भीड़ ने तलवार रख दी। वे
दोनों चीखती रहीं, मिन्नतें
करती रहीं, पर
हिंसक भीड़ उन्हें पशु के समान
खसीटते हुए, अखड़ा
कटहल पेड़ के नीचे ले आई,
फिर कटहल की
तरह ही उनके टुकड़े कर डाले।
हां उसके बाद उनके बेटे को
जरूर बुलाया, देखो
डायन बिसाहू का हश्र।
धुमकुड़िया के सामने चार बांस की दूरी पर बांसों के झुरमुट में मतियस खलखो का पक्का मकान है। लेकिन उसके दायीं ओर उनके छोटे भाई बरनाबस का मिट्टी का घर। मतियस व उनकी छोटी बेटी अन्नु की बस आंखें बोलती हैं। होली फैमिली में नर्स बड़ी बेटी अनिमा सिलसिलेवार कहानी कहते हुए उस रात के अंधकार को चीरती है। भैया जोसेफ फौज में हैं। मां जसिंता ने भले न पढ़ा हो, उसने हम सभी को पढ़ाया, जगरानी बारहवीं में, तो छोटी बहन अन्नु दसवीं में है। लेकिन उनके चाचा के लड़के पढ़ नहीं सके। यदि पढ़े होते, तो उस रात अपनी ही चाची की अंधविश्वास के नशे में आकर हत्या न करते। बीच-बीच में आंसू पोछते हुए, अनिमा कहती है, रात अचानक सभी आ धमके। मां को ढूंढने लगे। मैं मां के साथ सोयी थी। उन्हें जब घसीटने लगे, तो हमने विरोध किया। बाबा को पहले ही धक्का देकर वे अलग कर चुके थे, पर उनकी हिम्मत अब भी भीड़ से संघर्ष कर रही थी। मां को बाहर लाकर सामने के बांस के नीचे पीट-पीटकर अधमरा कर दिया। इसके बाद उसे घसीटते हुए, धुमकुड़िया तक जब ले जाने लगे, इस बीच बाबा ने मांडर, रातू, चान्हो व खलारी थाना फोन किया। कहीं पुलिस गश्त पर गई थी, तो कहीं का फोन बंद मिला। तो हम दोनों बहन ने चुपचाप से अपनी स्कूटी निकाली। पगडंडियों पर कुछ दूर ले जाने के बाद स्टार्ट की, ताकि आवाज न हो। मांडर थाना पहुंचे, पुलिस तुरंत हमें साथ लेकर गांव पहुंची। लेकिन उग्र भीड़ के भगाने पर जीप छोड़कर पुलिस भाग खड़ी हुई। जीप में हम दोनों बहन और चारों तरफ आक्रामक मजमा। वे लाठी-डंडों से हमें मारने-पीटने लगे। बाबा के सख्त हस्तक्षेप के बाद हम किसी तरह वहां से भागे। आगे बोली, अगर एतवारी के बेटे थाना पहले पहुंच जाते, तो उनकी मां की जान बच सकती थी। लेकिन उन्हें इतना संतोष है कि उन्होंने उन दो और औरतों को बचा लिया, जिन्हें भीड़ मारना चाहती थी। वे कौन औरतें हैं, इनके बारे में वे चुप हो गईं।
नहीं छटा
अंधविश्वास का अंधेरा
रांची।
मराईटोला में सन्नाटा ही नहीं
बोलता, एक
चीज और बार-बार
चीखती है, वो
है अंधविश्वास। डायन बिसाहू
के इल्जाम में पांच महिलाओं
की हत्याओं के बावजूद अंधविश्वास
का घटाटोप कायम है। जिनकी मां,
बहन व पत्नी
की हत्या की गई, वो
सिरे से डायन-वायन
जैसे किसी भी वजूद से इंकार
करते हैं, लेकिन
गांव के दूसरे बुजुर्ग व महिलाएं
स्वीकार करती हैं कि डायन
बिसाहू होती हैं। उनके अच्छे
से गांव को उनकी बुरी नजर लग
गई है। गांव के पुरुष तो दिखते
नहीं। घरों में महिलाएं और
बूढ़े ही रह गए हैं। इनमें से
किसी से बात कर लीजिए,
किसी को भी इन
हत्याओं का पछतावा तक नहीं
है। जबकि अस्सी से सौ घरों की
इस बस्ती में साक्षरता दर बहुत
अच्छी नहीं, तो
खराब भी नहीं है। लड़कियां तक
पढ़ रही हैं, जाॅब
कर रही हैं।
अखड़ा के पास ही दो बुजुर्ग दंपती रहते हैं। उनमें से महिला तो तीखे ही लहजे में सवाल करती है कि कब तक चुप रहते। उन जैसे कई लोग हैं, जो घटना को सही नहीं, तो गलत भी नहीं कहते। भास्कर टीम ने कई लोगों से जानना चाहा कि आखिर वो ओझा या भक्त या भक्तिन कौन है, जिसने बताया कि गांव के तेरह वर्षीय छात्र विपीन की मौत पीलिया से नहीं, बल्कि डायन बिसाहू की करतूत थी। वो कौन है, जिसने बताया कि इसकी दोषी अमुक-अमुक महिलाएं ही हैं। कुछ लोगों ने यह तो बताया कि भक्तिन ने बताया था कि एतवारी ने बच्चे को खाया है। जब एतवारी को पकड़ा गया, तो उसने बाकी चार और महिलाओं के नाम बताए, जिनकी हत्याएं की गईं। लेकिन एतवारी का नाम बताने वाली भक्तिन कौन थी, इसपर हर जबान चुप।
फोटो:
रमीज़
|
भास्कर,
रांची के 10
अगस्त 2015
के अंक में
प्रकाशित
1 comments: on "डायन के नाम पर पांच महिलाओं की हत्या के बाद का तीन मंज़र"
यह हमारे झारखण्ड का काला अध्याय है। अभी हमारे झारखण्ड राज्य में डायन बियाही के नाम पर अंधविश्वास को बढ़ाया देते हैं और राक्षस बनकर माताओं की हत्या करते हैं। इस राज्य में दर्जनों क्षेत्रीय राजनीतिक दल हैं, जो जल, जंगल और जमीन की बात करते हैं। क्या वे सभी जनजागरण अभियान चलाकर इसे नही रोक सकते हैं..। सवाल हैं उनकी इच्छाशक्ति तो वोट की राजनीति की है, जनसमस्या और जनोसरोकर की नही..। हे बिरसा के पुत्रों तुम यह क्या कर रहें हो....
एक टिप्पणी भेजें
रचना की न केवल प्रशंसा हो बल्कि कमियों की ओर भी ध्यान दिलाना आपका परम कर्तव्य है : यानी आप इस शे'र का साकार रूप हों.
न स्याही के हैं दुश्मन, न सफ़ेदी के हैं दोस्त
हमको आइना दिखाना है, दिखा देते हैं.
- अल्लामा जमील मज़हरी