कौन
कितना जानना आसान नहीं इतना
फ़राह
शकेब की क़लम से
संघ
परिवार अपने निर्धारित विध्वंसक
लक्ष्य की प्राप्ति के लिए
झूठ, फरेब,
धोखा,
मक्कारी,
हिंसा,
द्वेष और गोयबल्स
के फ़र्ज़ी प्रचार तन्त्र पर
आधारित हथकण्डे किस शातिराना
ढंग से अम्ल में लाता है। इस
पर संघ के नब्बे साला अतीत को
ध्यान में रखते हुए काफी लम्बी
बहस हो सकती है, लेकिन
फिलहाल एक मूल तर्क को सामने
रखते हुए जनसंख्या वृद्धि के
नव अवतारित मुद्दे पर हर सम्भव
तर्क के साथ अपना पक्ष रख रहा
हूँद्। संघ की सफलता का मूल
मन्त्र ये है कि वो देश के 20
से 25
प्रतिशत
अल्पसंख्यकों विशेष कर मुसलमानों
और ईसाइयों से 75 प्रतिशत
से अधिक बहुसंख्यक समाज को
मनोवैज्ञानिक रूप से भययुक्त
कर उनके मानसिक पटल एक विशेष
प्रकार का खौफ बिठाए रखना
चाहता है। निरन्तर नित नए-नए
प्रोपगंडा और अफवाहों से उस
भय को खाद्य पानी उपलब्ध करवाते
हुए उसे सींचते हुए बहुसंख्यक
सामज के दिल दिमाग में सुनियोजित
ढंग से उसकी जड़ को अंदर तक मज़बूत
करने में संघ ने काफी सफलता
पाई है इससे इनकार करना खुद
को झूठी तसल्ली देने जैसा लगता
है।
इस देश का सबसे बड़ा दुर्भाग्य ये है कि अल्पसंख्यक समुदाय विशेष कर मुसलमानों और ईसाइयों के विरुद्ध फासिस्टों के तमाम षडयन्त्रों और साज़िशों में सामन्ती पूंजीवादियों का पोषक मेन स्ट्रीम मीडिया विशेष कर हिंदी मीडिया भी शामिल है। 26.08.2015 को देश के अस्सी. प्रतिशत प्रिंट मीडिया विशेष कर हिंदी मीडिया ने फासिस्टों की मंशा और लक्ष्य के अनुकूल इस अंदाज़ में सुर्खियां लगाया कि देश में केवल मुसलामनों की आबादी की बढ़ी है और किसी भी धर्म समुदाय की जनसंख्या में कोई वृद्धि नहीं हुई।
गुजरात के वर्तमान हालात के सामने इसे प्राथमिकता देना और पहले पन्ने की सुर्खी बनाना भी कुछ कम संदिग्ध नहीं है। संदिग्ध इसलिए कि इसी मीडिया के द्वारा अब देश भर को ये प्रभाव दिया जाता रहा है कि गुजरात के सिवा भारत में कहीं विकास नहीं हुआ और आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में गुजरात की धरती सोना उगल रही है। अम्बर हीरे बरसा रहा है, दूध की नदियां बह रही हैं। लेकिन पिछले दो दिन से विगत दशकों से गुजरात की आधी सत्ता पर क़ाबिज़ बीएमडब्ल्यू और ऑडी जैसी गाड़ियों में घूमने वाला सम्पन्न व्यापरी समुदाय वहां की सड़कों पर आतंक मचा रहा है। उसे भी आरक्षण की ज़रूरत है तो फिर विकास किसका हुआ देश ये भी जानना चाहता है।
इधर, खबरों को आंकड़ों की वास्तविकता की कसौटी पर देखने के बाद ये सच सामने आता है कि मुसलमनों की जनसख्या वृद्धि दर में विगत कुछ वर्षों में लगभग 5 प्रतिशत और अगर 1991 से 2011 की बात करें तो सामूहिक रूप से लगभग 10 प्रतिशत की कमी आई है। 1991 में ये वृद्धि दर 34 प्रतिशत के आसपास थी जो 2011 में 24.5 प्रतिशत रह गई। इसी दौरान हिंदुओं की जनसंख्या वृध्दि दर 9 प्रतिशत कम हुई। अगर इस मापदण्ड को सामने रखा जाए तो देश के जनसंख्या नियंत्रण की दिशा में मुसलमान हिंदुओं से 1 प्रतिशत अधिक ही हैं।
2001 में हिंदुओं की जनसंख्या 82 करोड़ 75 लाख थी, जो 2011 में 96 करोड़ 63 लाख पहुँच गयी और 2001 में मुसलमनों की जनसंख्या 13 करोड़ 80.लाख थी, जो 2011 में 17 करोड़ 22 लाख पहुंची। स्पष्टत: इन दस वर्षों में हिंदुओं की जनसंख्या में उतनी वृद्धि हुई जितनी मुसलमानों की कुल जनसंख्या थी। वर्ष 2001 में तो फिर हिंदुओं की आबादी घटी कैसे ??
लेकिन
आंकड़े जारी करने वाले बाजीगरों
ने बड़ी शातिराना ढंग से इसे
प्रस्तुत करते हुए केवल ये
प्रभाव देने की कोशिश की कि
केवल मुसलमनों की जनसंख्या
ही बढ़ी है. इन
आंकड़ों में अप्रत्यक्ष रूप
से एक और संघी षड्यंत्र को बल
देने का प्रयास हुआ है .पश्चिम
बंगाल और आसाम के मुसलमनों
को बांग्लादेशी घुसपैठिये
कहना भी फ़ासीवादियों का एक
पसंदीदा अमल रहा है। इस जनसंख्या
वृद्धि वाले ड्रामे में भी
उन्हीं प्रदेशों में अधिक
जनसंख्या वृद्धि वाली जगह के
तौर पर चिन्हित किया गया है।
जनगणना के इन आंकड़ों में इस
पहलू को विशेष रूप से ध्यान
में रखना होगा कि विगत कुछ
वर्षों में मुस्लिम समाज जो
अशिक्षा के कारण इन सब चीजों
के प्रति उतनी रुचि नहीं लेता
था। वहाँ अब काफी हद तक इन
क्षेत्रों में जागरूकता आई
है और पहले के मुकाबले अपने
आधार कार्ड, राशन
कार्ड, मतदाता
सूची में नामकरण, मतदाता
पहचान पत्र और जनगणना के समय
उपस्थित होकर अपनी एवम् अपने
परिवार की विस्तृत जानकारी
इस क्षेत्र में काम करने वाले
कर्मचारियों को उपलब्ध करवाने
के प्रति सचेत हुआ है।
इस
पूरे प्रकरण और सांप्रदायिक
सरकार के सांप्रदायिक षड्यंत्र
और इस सामन्ती साज़िश को तर्कसंगत
और अधिकृत रूप देने में लोकतंत्र
के चौथे खम्बे की संज्ञा अपने
माथे पर सजाये घूमने वाले
पूंजीवाद की पोषक मीडिया के
योगदान को देश का बहुसंख्यक
समाज आंकड़ों के फर्जीवाड़ और
वास्तविकता की रौशनी में किस
तरह समीक्षा कर पाता है ये तो
समय ही बताएगा। लेकिन इस प्रकरण
के पीछे आरएसएस के रणनीतिकारों
का हाथ और उनके संरक्षण का
पर्दाफाश करने के लिए मैं यहां
संघ के संचालन में चलने वाले
बिहार सांस्कृतिक विकास परिषद
के धर्म जागरण समन्वय विभाग,
उत्तर बिहार
द्वारा प्रकाशित साहित्य का
हवाला देना ज़रूरी समझता हूँ.
ये समाज तोड़क
विध्वंसक साहित्य बिहार के
सीमांचल इलाके में स्वयम्भू
धर्मरक्षकों द्वारा बहुसंख्यक
समाज के उन गावँ में बंटवाए
जा रहे हैं जहां निर्धनता है,
अशिक्षा है
और धर्मनिरपेक्ष संविधान पर
आधारित भारतीय राष्ट्र के
सभ्य नागरिक गुणों एवम् जागरूकता
का अभाव है।
मतांतरण
से घटता भारत
घटता
हिन्दू मरता भारत के शीर्षक
से इस साहित्य के पहले और दूसरे
पन्ने पर वर्णित कुछ पंक्तियाँ
शब्दशः यहां अंकित कर रहा
हूँ..
"" जहाँ जहाँ हिन्दू घटा, वहाँ का वह भाग भारत नहीं रहा! अफ़ग़ानिस्तान से ब्रह्म देश तक भारत था लेकिन आज पूर्व भारत का एक ही भाग हमारे पास है !आखिर क्यों??1947 में देश का विभाजन हुआ ! धर्म के आधार पर यानी द्विराष्ट्रवाद के सिद्धांत पर जब देश का विभाजन हुआ उस समय भारत में तीन करोड़ मुसलमान थे! पश्चिमी पाकिस्तान में एक करोड़ हिन्दू और पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) में 1.5 करोड़ हिन्दू थे, आज जब हम 67 वर्ष बाद विचार करते हैं तो पकिस्तान में हिंदुओं की संख्या केवल 8-10 लाख तथा बांग्लादेश में 60 लाख हिन्दू बचे हुए हैं! आखिर पाकिस्तान व बांग्लादेश के हिंदुओं का क्या हुआ ??आसमान खा गया कि धरती निगल गयी, या तो उनका बलात् इस्लामीकरण कर दिया गया या वे मार दिए गए अथवा देश छोड़ने पर मजबूर हो गए! आज इन दोनों देशों में हिंदुओं की दुर्दशा हम आये दिन अखबारों में पढ़ते रहते हैं, दूसरी तरफ जहां भारत में तीन करोड़ मुसलमान थे आज वे 16 करोड़ हो गए हैं.आये दिन सेकुलरिस्ट ये कहते नहीं थकते कि अल्पसंख्यकों पर अत्याचार हो रहा है, तो ये संख्या क्यों बढ़ रही है ! आज देश में सैकड़ों ऐसे स्थान हैं जहाँ हिंदुओं की बहन बेटियां सुरक्षित नहीं हैं! वे अपने ही देश में दो नम्बर के नागरिक बनने को मजबूर हैं! एक तरफ हम दो हमारे दो और दूसरी तरफ हम पांच हमारे पचीस--इस पर हिन्दू समाज को बिचार करना होगा नहीं तो हम कब तक देश का विभाजन होते देखेंगे,क्या हमें कश्मीर असम पश्चिम बंगाल और बिहार के हिंदुओं की दुर्दशा दिखाइ नहीं देती""""
इसके
बाद एक चित्र बना कर सन् 2001
की जनगणना के
आधार पर ये दर्शाने की कोशिश
की गई है कि हिंदुओं की जनसंख्या
वृद्धि दर घट रही है, जो
25 प्रतिशत
से 20.प्रतिशत
हो गयी है और मुसलमानों की
जनसंख्या वृद्धि दर 34.5
प्रतिशत से
36 प्रतिशत
हो गयी है।
ऐसे
ज़हरीले साहित्यों के माध्यम
से ये पुनीत कार्य दूसरे
प्रदेशों में नहीं हो रहे
होंगे शायद ही सम्भव हो सकता
और इसी पर्दे के पीछे के असली
अनधिकृत खेल को औपचारिक रूप
से अधिकृत करने और आरएसएस के
इस दुष्प्रचार को तर्कसंगत
बना कर बल देने के लिए कल स्वर्ण
सामन्ती और दलित अल्पसंख्यक
विरोधी मीडिया ने अपना नैतिक
सहयोग दिया है।
इससे
पहले साध्वी प्राची साक्षी
महाराज जैसे भाजपा नेताओं ने
मौखिक विषबाण चला कर वातावरण
तैयार किया। हिंदुओं को कितने
बच्चे पैदा करने चाहिये जैसे
प्रवचनों को भी मीडिया में
खूब जगह मिली और अंततः उन बयानों
को तर्कसंगत तौर पर इन खबरों
के माध्ध्यम से प्रस्तुत किया
गया..
ज्ञात
हो कि ये जनगणना रिपोर्ट 2014
में ही प्रकाशित
होनी थी। लेकिन अपने हर काम
को सांप्रदायिक रंग दे कर
सत्ता लोलुप भाजपा को आम जनता
को गुमराह कर लाभ लेने में
महारत हासिल है और इस रिपोर्ट
को ठीक बिहार विधानसभा चुनाव
से पहले प्रकाशित कर संप्रादयिक
ध्रुवीकरण का लाभ लेने की
योजना के तहत ही मीडिया को
भागीदार बना कर इस अंदाज़ में
प्रस्तुत किया गया। जातिगत
आधारित जनगणना भी सार्वजनिक
की जाए, तो
कुछ और तस्वीर साफ़ हो सकती है।
क्योंकि बहुसंख्यक वर्ग की
कुछ जातियों में मुसलमानों
की तुलना में जन्म दर अधिक है।
जिसे चर्चा में लाना न्यायसंगत
होगा।
(लेखक
परिचय:
जन्म:
1 जनवरी 1981
को मुंगेर (
बिहार )
में
शिक्षा:
मगध यूनिवर्सिटी
बोधगया से एमबीए
सृजन:
कुछ ब्लॉग और
पोर्टल पर समसामयिक मुद्दों
पर नियमित लेखन
संप्रति:
अनहद से संबद्ध
संपर्क:
mfshakeb@gmail.com)
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- अल्लामा जमील मज़हरी