बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

गुरुवार, 27 नवंबर 2014

26/05 की अद्भुत शाम

सीने में जलन आँखों में तूफान सा क्यों है
 











ऋषभ श्रीवास्तव की क़लम से
 
कुछ दिनों पहले से ही जिस्म शल (ठंडा) हो रहा था।  सिर दर्द कर रहा था. कुछ सोच नहीं पा रहा. क्या बोलूंगा उस दिन? 3-4 दिन ही तो बचे हैं! विगत 8-9 महिनों में सब तो बोल ही दिया है. बोल ही तो रहा हूँ यार. उस बन्दे की मैं इज़्ज़त तो करता हूँ भाई, बिना बोले ही दस साल निकाल दिया. बिना बोले ही चला भी गया. है कोई माई का लाल? धन्य है भारत माता! असल शेर तो वही था. एक गिलास पानी ही पी लेता हूँ. यार, चैन नहीं आ रहा. वाइफ को फोन करुंँ क्या? अबे यार, उस बैसाख् नन्दिनी गँवार पशु को क्या पता? रोने लगेगी कि अब तो साथ रख लो. स्त्री का जीवन तो पति के ही चरणों में होता है. जंगल में भी रह लूँगी. बस आपका सान्निध्य चाहिए. 

कैसे होगा? इतने बड़े-बड़े लोग होंगे! बड़े बड़े उद्योगपति,  हीरो हीरोइन , विदेशी लोग होंगे. क्या बताऊँगा? ये मेरी वाइफ है? थेपला अच्छा बनाती है. नही, मैं आजन्म कुंवारा रहूँगा. जो बोल दिया, वही सही है. कोई बहस नही होनी चाहिए. एक पशु के साथ बाँध देने से मैं विवाहित तो नही हो जाता? बस अब कोई बहस नहीं.
आज रात पार्टी ही कर लूँ क्या?  
यार, हिंदू हृदय सम्राटों को पता चलेगा तो बोलेंगे कि आ जाओ मस्ती करते हैं. अनूप भाई का नया भजन आया है. आ जाओ, धमाल होगा. अखंड दीप प्रज्वलित करेंगे. अनवरत आरती होगी. कसम से, बहुत बोर करते हो तुम लोग यार. दर्द सा लग रहा है सीने में. चिकित्सक बुला लूँ क्या? नहीं यार, फिर वही सीने वाली बात हो जायेगी. इतना इंच, उतना इंच. बात का बतंगड बना देते हैं लोग. थरूर को अंग्रेज़ी में धर लिया, मुझे हिन्दी में धर लेते हैं. इन लोगों को एक ही भाषा समझ आती है. रुक जाओ दो चार दिन, सब समझा दूँगा इधर. वन का गीदड़ जायेगा किधर.
ये तो कविता हो गयी. अरे वाह ! किसी कविता से ही शुरू करूँगा उस दिन. लेकिन वो अमेठी वाला लौंडा धर लेगा. रिज़ाला आदमी है. वाजपेयी जी तक को हथियाने लगता है. बोलेगा कि आ गए लाइन पर बेटा. मेरी पार्टी का प्रभाव है. श्री मुख से कविता फूटने लगी. मधुरता का संचार हो रहा है. शेर कोयल की आवाज़ में कूक रहा है. ख़ुद को हिन्दी कविता का छोटा पुत्र बताता है, मुझे तो बिन मांगी मुराद बता देगा. कविताएं सुनी है उसकी, संघी आदमी ही तो लगता है.
 जार्ज वाशिंगटन की tryst with destiny से शुरू करुं क्या? मस्त रहेगा! लेकिन फिर हंगामा हो जाएगा. ग़लत बोल दिया. नेहरु ने बोला था. विवेकानंद ने बोला था. भाइयों और बहनों, नेहरु ने कौन सा सही बोला था? when the whole world sleeps....... कहां भाई , रात तो भारत में ही थी. यहीं लोग सो रहे होंगे. पूरी दुनिया में तो दिन निकल गया था उस बखत. भावनाओं में बह गए थे नेहरू . भूगोल नहीं पता था उनको. मेरा इतिहास गड़बड़ है. भूगोल तो पक्का है मेरा. कश्मीर के भूगोल में भी नेहरू गच्चा खा गए थे. मुझे तो पूरा पता है कश्मीर का भूगोल. एक एक इंच नाप नाप के लूँगा.
 छडडो यार, हटा सावन की घटा़. जय श्री राम से ही शुरू करूँगा. पर यार ये बवाली साले गँवार ! एकदम से उन्मत हो जायेंगे. कही दंगा-फसाद कर दिया तो...... छोडूंगा नही मैं, बता देता हूँ. एक दो बार हो गया, हो गया. बार बार तुम्हारी वही बकैती. तुम्हारे चलते लोग प्रधानमंत्री बनना छोड़ दे अब. फिर मैं भूल जाऊँगा कौन सा देवता किसके सर आता है. मिलिटरी लगाऊँगा़. सारे भूत नक्षत्र उतरवा दूँगा.
 trin....trin....trin...trin....trin...
 हैलो , हाँ भाई बोलो. क्या? क्या? कब? LoL ....अच्छा मैं अभी आता हूँ. एकदम तुरंत. हाँ यार, हेलिकाप्टर यहीं पर है. जून जुलाई के बाद ही दूँगा. माँग भी नहीं रहे वो लोग. एक घंटा लगेगा. जय श्री राम. take care.
तैयार तो हूँ ही. भइया इस चुनाव में कई रंग देख लिए. लो, अब iron man को हार्ट अटैक आ गया. गज़ब नौटंकीबाज आदमी है. भइया तुम निकल ही लेते. जान छूटती. मूर्ति लगवा देते तुम्हारी. बच्चों की तरह करोगे तो अब कौन बरदाश्त करेगा. हिन्दुत्व वादी हो. पढ़े होगे कि जो आज तुम्हारा है, कल किसी और का हो जायेगा. बात करते हो.पर चलो, थोड़ा टाइम पास हो जायेगा. खिलाड़ी आदमी है. मरेगा नहीं. इतना तो मुझे पता है. चलूँ मैं. देश पुकार रहा है. गिरने नहीं दूँगा मैं . मिटने नहीं दूँगा मैं.

(रचनाकार -परिचय:
जन्म: २१ मई १९८७ को गाजीपुर, उत्तर प्रदेश में
शिक्षा: प्रारंभिक- तराँव, गाजीपुर स्कूल- बक्सर कालेज- नोएडा से मेकेनिकल इंजीनियर
सृजन: फेसबुक पर सक्रिय। कोई प्रकाशित रचना नहीं।
संप्रति: मुंबई में सरकारी नौकरी
संपर्क: axn.micromouse@gmail.com )  

ऋषभ की कविताएं हमज़बान पर पहले  आ चुकी हैं
  

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1 comments: on "26/05 की अद्भुत शाम "

निर्मला कपिला ने कहा…

बहुत सटीक कटाक्षकटाक्ष।

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न स्याही के हैं दुश्मन, न सफ़ेदी के हैं दोस्त
हमको आइना दिखाना है, दिखा देते हैं.
- अल्लामा जमील मज़हरी

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