बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

गुरुवार, 27 नवंबर 2014

26/05 की अद्भुत शाम

सीने में जलन आँखों में तूफान सा क्यों है  ऋषभ श्रीवास्तव की क़लम से   कुछ दिनों पहले से ही जिस्म शल (ठंडा) हो रहा था।  सिर दर्द कर रहा था. कुछ सोच नहीं पा रहा. क्या बोलूंगा उस दिन? 3-4 दिन ही तो बचे हैं! विगत...
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बुधवार, 26 नवंबर 2014

ख्वाजा अहमद अब्बास और अलीगढ़

 वसुधैव कुटुंबकम के सच्चे पैरोकार  सैयद एस.तौहीद की क़लम से ख्वाजा अहमद अब्बास इस सदी के मकबूल पत्रकार,कथाकार एवं फिल्मकार थे। आपको वाकिफ होगा कि अब्बास अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय से ताल्लुक रखते हैं। अलीगढ...
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शुक्रवार, 14 नवंबर 2014

नेताओं को देखा तो मक्कारी याद आई।

दो चुनावी व्यंग्य    सैयद शहरोज़ क़मर  की क़लम से शरमा जाए गिरगिट भीहम सियासत के कभी कायल न थेतुमको देखा तो मक्कारी याद आई।चचा दुखन यूं तो शायरी करते नहीं, पर जब मेरी खटारा बाइक की मरम्मत करने के दौरान दुआ-सलाम हुई, तो उनके लब...
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शनिवार, 8 नवंबर 2014

चाँद को फिर-फिर बुला लाएँ

आओ ! इस शादमाँ पल में चित्र: गूगल साभार क़मर सादीपुरी की क़लम से मैं तेरे ख़्याल  के क़ाबिल न था हमने आँखों को न चुराया था तू दिल से जुदा हरगिज़ न हुआ पर मै तेरे प्यार के हामिल न था! उन तारों से बात की थी मैंने जो तेरे आस्मां से...
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बुधवार, 5 नवंबर 2014

खत को लेकर चोंच में यादें खड़ीं रहीं, किताबों के पन्ने खोल दिए डाकिया आ गया

आओ फिर से चिट्ठियाँ लिखें .... विजेंद्र शर्मा की क़लम से घर में कुछ मेहमान आये हुए थे उनके साथ चाय की चुस्कियों का लुत्फ़ लिया जा रहा था ! दसवीं जमात में पढ़ने वाली मेरी बेटी आयी और कहने लगी कि पापा कोई बेटियों पे शे'र लिखवा दो कल स्कूल...
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शनिवार, 1 नवंबर 2014

महिला का दलित और दमित होना

कोई इक शमा तो जलाओ यारो!    फ़रहाना रियाज़ की क़लम से नेपोलियन बोनापार्ट ने कहा था, ‘तुम मुझे एक योग्य माता दो, मैं तुमको एक योग्य राष्ट्र दूंगा.'  किसी भी समाज का स्वरूप वहां महिलाओं की स्थिति  पर निर्भर करता है, ...
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