बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

मंगलवार, 27 अगस्त 2013

हे कृष्ण कन्हैया, नन्द लला! अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी !!

फ़ोटो वरिष्ठ पत्रकार क़मर वहीद नक़वी की फेसबुक वाल से उड़ाया हिंदुस्तान। ऐसा मुल्क जो तमाम विपरीत झंझावतों के अपने विविध रंगों में आज भी मुस्कुरा रहा है। बक़ौल इक़बाल, यूनान, मिस्र, रोमां सब मिट गए जहां से/...
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सोमवार, 26 अगस्त 2013

दादाजी ने मना किया है

  सारंग उपाध्याय  की क़लम से वह पहली बार आई थी, वह भी सुबह-सुबह, लेकिन इतनी जोर से दरवाजा खटखटा रही थी, मानों उसकी जान पर आ बनी हो। मुझे बेहद गुस्सा आ रहा था, एक तो अकेला था, ऊपर से बाथरूम में था, वहीं से चिल्लाया "आया यार,...
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गुरुवार, 22 अगस्त 2013

आदि वाद्य यंत्र का अंतिम वादक कालीशंकर!

लौह युगीन सभ्यता से भी पहले का का वाद्य यंत्र धरती आबा का था पसंदीदा टूहिला टूहिला वादक के साथ लेखक पतला सा बांस। उसके एक छोर पर कद्दू या लौकी का आधा खोखला हिस्सा (तुंबा), दूसरे छोर पर लकड़ी का एक हुक। इसी हुक से निकले रेशम के बारीक धागे,...
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बुधवार, 14 अगस्त 2013

ये दाग़-दाग़ उजाला, ये शब-गजीदा सहर

  गूगल से साभार फैज़ अहमद फैज़ की क़लम से ये दाग़-दाग़  उजाला, ये शब-गजीदा सहर, वो इंतज़ार था जिसका, ये वो सहर तो नहींये वो सहर तो नहीं जिस की आरजू लेकर चले थे यार कि मिल जायेगी कहीं न कहींफ़लक के दश्त में तारों कि आखरी मंजिलकहीं...
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शनिवार, 3 अगस्त 2013

वासवी की किताब प्रकाशक वापस लेगा

ख़बर का असर झारखंड के बौद्धिक व सामाजिक जगत का बेहद चर्चित नाम है  वासवी किडो का। उन्हें पत्रकार अविनाश दास सरकारी आन्दोलन कारी कहते हैं।  कई संगठनों से जुडी रहीं वासवी सम्प्रति  झारखंड महिला आयोग  की  सदस्य हैं। मुंडा लोक गीत नाम से उनका दो संकलन इंस्टीट्यूट फ़ॉर  सोशल डेमोक्रेसी,...
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(यहाँ पोस्टेड किसी भी सामग्री या विचार से मॉडरेटर का सहमत होना ज़रूरी नहीं है। लेखक का अपना नज़रिया हो सकता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान तो करना ही चाहिए।)