बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

शनिवार, 3 अगस्त 2013

वासवी की किताब प्रकाशक वापस लेगा


ख़बर का असर



झारखंड के बौद्धिक व सामाजिक जगत का बेहद चर्चित नाम है  वासवी किडो का। उन्हें पत्रकार अविनाश दास सरकारी आन्दोलन कारी कहते हैं।  कई संगठनों से जुडी रहीं वासवी सम्प्रति  झारखंड महिला आयोग  की  सदस्य हैं। मुंडा लोक गीत नाम से उनका दो संकलन इंस्टीट्यूट फ़ॉर  सोशल डेमोक्रेसी, दिल्ली  से  सन 2008 में प्रकाशित हुआ था। इन संग्रहों  की  सारी सामग्री हूबहू अनुवाद समेत जगदीश त्रिगुणायत द्वारा संकलित पुस्तक  ‘बांसरी बज रही’ से लिए जाने का उन पर आरोप था। हमज़बान पर खबर आने के बाद  इंस्टीट्यूट फ़ॉर  सोशल डेमोक्रेसी, दिल्ली ने पुस्तक वापस लेने का निर्णय लिया है। हालांकि संस्थान के निदेशक खुर्शीद अनवर ने पहले भी कहा था कि यह साबित हो जाने पर कि सामग्री जगदीश त्रिगुणायत की पुस्तक से ली गयी है तो उनका संस्थान कार्रवाई करेगा। हमज़बान की पोस्ट में पेजों की संख्या बताकर उनके फैसले को आसान बनाया।  उन्होंने अपनी फेस बुक वाल पर लिखा है, 
'Institute for Social Democracy के निदेशक के तौर पर मैं सार्वजानिक रूप  से घोषणा करता हूँ कि उक्त किताब हम वापस लेते हैं. माफ़ी नामा हमारी दोमाही पत्रिका "समरथ" और अंग्रेजी पत्रिका South Asian Composite Heritage में प्रकाशित किया जा रहा है. वासवी के साथ आगे किसी काम हमारा कोई जुड़ाव नहीं होगा..'
फेस बुक पर इस खबर को कई लोगों ने साझा किया। अविनाश दास व खुर्शीद अनवर की वाल पर खूब बहस हुई। इस प्रकरण में खुर्शीद साहब ज़बान के पक्के निकले। वरना अब डर लगता है। यूं इस प्रकरण ने कई कलई खोली। पुनः मैं भाई अविनाश के ही क़ौल को दुहराऊंगा कि हमारा मक़सद हरगिज़ किसी के मान को ठेस पहुँचाना नहीं था। लेकिन छोटी मुंह बड़ी बात होगी कि इसे अपनी सदाशयता कहूं, लेकिन यदि कोई भूल चूक हुई हो तो खाकसार तलबगार मुआफी है। वहीं प्रकाशक के इस वाजिब स्टैंड के लिए कोटिश: आभार!

खुर्शीद साहब ने पुस्तक वापसी की घोषणा के साथ लिखा कि और क्या सजा है मेरी . इस पर मैं यही कहूँगा :

तेरी दुआओं का तलबगार रहूँ

यही सजा हम तेरी चाहते हैं!
 



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1 comments: on "वासवी की किताब प्रकाशक वापस लेगा "

Shridharam ने कहा…

सही किया वसबी जैसे सरकारी बुद्धिजीवी को हम भी भलीभाँति जानते हैं..


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