सारंग उपाध्याय की क़लम से
वह पहली बार आई थी, वह भी सुबह-सुबह, लेकिन इतनी जोर से दरवाजा खटखटा रही थी, मानों उसकी जान पर आ बनी हो। मुझे बेहद गुस्सा आ रहा था, एक तो अकेला था, ऊपर से बाथरूम में था, वहीं से चिल्लाया "आया यार, रूको तो सही”।
जब आधा-अधूरा नहाकर टॉवेल पर ही दरवाजा खोलने आया, तो वह सीढियों पर खडी थी! मेरे मकान मालिक की लडकी थी, तकरीबन चार से पॉंच साल की, छोटे नाइट सूट में सुबह की सुस्ती और अधखुली ऑंखों में बहुत खूबसूरत लग रही थी। दरवाजा खोलने पर देखते ही बोली- "दादाजी ने पीछे वाले कंपाऊंड की चाबी बुलाई है" उसकी आवाज में भी नींद थी जो एक खराश के साथ झलक रही थी, उसे देखते ही सारी झल्लाहट काफूर हो गई और चेहरे पर एक मुस्कान फैल गई।
वैसे वह पहले भी कई बार दिखाई पडी थी, कभी छोटी साइकल चलाते हुए, तो कभी खेलते हुए।
"दो मिनिट रूकोगी गुडिया, अंदर आ जाओ, मै कपडे पहन लूँ " मैने मुस्कुराते हुए कहा।
नहीं, मेरा नाम गुडिया नहीं है, सोना है, मुझे स्कूल जाना है, वह तमक कर बोली।
मैं हँस पडा, बोला- ठीक है, पर अंदर तो आ जाओ।
नहीं दादाजी ने मना किया है, वह झट से चिढते हुए बोली।
मुझे फिर हँसी आ गई, उसके भोले और नटखटपन को देखकर।
मैं सामने अलमारी में चाबी ढूँढने लगा, लेकिन मिल नहीं रही थी।
उसे बाहर खडा देखकर मैंने फिर कहा- अंदर आ जाओ सोना।
दादाजी ने मना किया है न...! इस दफे वह अपने स्वर को कुछ लंबा खींचकर दरवाजे की कुंडी हिलाते हुए बोली।
मैंने इस बार आश्चर्य व्यक्त किया, फिर हँसते हुए बोला क्यों, क्यों मना किया है दादाजी ने?
मेको क्या मालूम..? उसने इतना कहकर मेरे आगे फिर एक प्रश्न रख दिया।
मैंने कहा क्यों टाइम से किराया नहीं देते इसलिए न? मैं हंस पडा, पर शायद वह बात समझी नहीं थी।
चाबी मिल गई, तो मैंने पास जाकर उसके हाथ में थमा दी, फिर उसका हाथ पकडकर बोला- सोना टॉफी खाओगी।
"नहीं मैंने ब्रश नहीं किया", इतना कहकर नटखट सोना चल पडी, जब जाते-जाते बाय किया तो जीभ चिढाकर दौड गई।
मैं दरवाजा बंद कर अंदर आ गया, लेकिन उसकी बातों पर अब भी हँसी आ रही थी।-----------------------------------------------------------------------------------------------------
फिर यकायक उसकी आवाज मन में जस की तस गूंज गई। "दादाजी ने अंदर आने को मना किया है,"
कुछ समझ नहीं पाया था, अपने आप से ही बोल पडा " वाह यार ! दादाजी", तभी कुर्सी पर पडा न्यूज पेपर फर्श पर गिर पडा, जिसके पहले पेज पर लिखी काली लाइनें भीतर तक कुरेद गईं, "मासूम बच्ची के साथ बलात्कार"...! देखते ही आँखें डबडबा गईं और मैं देर तक खामोश खडा रहा।
( लेखक -परिचय:
अब तक सोनू उपाध्याय के नाम से रचनाएँ प्रकाशित
जन्म: 9 जनवरी 1984 को मध्याप्रदेश के हरदा जिले में
शिक्षा- देवीअहिल्या विश्वसविद्यालय इंदौर से बी. कॉम और पत्रकारिता में एम. ए.।
इंदौर के दैनिक समाचार पत्र चौथा-संसार से उपसंपादक के रूप में पत्रकारिता की शुरूआत। उसके बाद बीबीसी हिन्दी डॉट कॉम में प्रकाशित अपने लेख से वेबदुनिया डॉट कॉम द्वारा बुलावा, वहाँ एक साल तक उपसंपादक के पद पर कार्यरत। साल भर बाद दैनिक भास्किर के लिए मुंबई रवाना, वहाँ एक साल कार्य करने के बाद, एक चैनल में एसोसिएट प्रोड्यूसर और एंकर के पद पर कार्य किया। औरंगाबाद में लोकमत समाचार पत्र में उपसंपादक और रिपोर्टर के रूप में स्था न परिवर्तन। वहॉं से दोबारा मुंबई में रेडिफ मनी डॉट कॉम के लिए प्रस्थान, साल भर कार्य करने के बाद
संप्रति: विगत् 5 सालों से मुंबई में स्वतंत्र लेखन
सृजन: कृति-ओर, काव्यउम् और अक्षर पर्व में कविताऍं, कहानियॉं साक्षात्कापर, वसुधा और परिकथा में प्रकाशित। वसुधा में प्रकाशित रोजाना और परिकथा में प्रकाशित मंडी चर्चा में. मंडी कहानी का इंदौर और भोपाल में पाठ। समसामायिक विषयों पर निरंतर लेख प्रकाशित. फिल्मों में गहरी रूचि और विभिन्न वेबसाइट्स, वेबदुनिया, हस्त क्षेप और मोहल्लालाइव डॉट कॉम सहित कई अन्य् पोर्टल्सर और वेबसाइट्स पर फिल्मोंस पर लगातार लेखन.
ब्लॉग: चौपाल चर्चा
संपर्क:sonu.upadhyay@gmail.com)
6 comments: on " दादाजी ने मना किया है"
आज के सच को बखूबी बयां करती लघु कथा , बहुत ही बढिया
tooo good dear
Bahoot khoob....karif main is se zyada likhna bemani hai dost ...bahot khoob...
regards
Tejinder singh.....
bahut pyari aur masoomiyat bhari ek kahani k sathe ek kadwa sach bhi bayan ho raha hai... good job.. all d best.
Bahut hi pyara likha hai sonu bhaiyaa.. :)
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