१८ साल के आमिर को बना दिया गया था आतंकवादी
परवाज़ रहमानी की कलम से
जब वह सिर्फ 18 साल का था
वो गरीब माँ बाप का इकलौता बेटा था उम्र 18 साल पुरानी दिल्ली की घनी आबादी में एक कमरे के मकान में रहता था फ़रवरी 1998 की बीस तारीख उसके और उसके छोटे से परिवार के लिए ज़िन्दगी का सबसे बर्बाद करने वाला दिन साबित हुई जब पुलिस वालों ने उसे अचानक पकड़ लिया वैन में डाला आँखों में पट्टी डाली और ले गए जब पट्टी खुली तो उसने खुद को तिहाड़ जेल के एक अँधेरे कमरे में पाया उसके खिलाफ हत्या आतंकवाद और देश के खिलाफ युद्ध करने के बीस मुक़दमे कायम किये गए उस पर चार्ज लगाया गया के उसने दिसम्बर 1996 से अक्तूबर 1997 तक यानी दस महीने में बीस स्थान पर बम धमाके किये 18 मामलों में अदालत ने उसे बरी कर दिया है लेकिन चौदह साल के बाद पिछले महीने जनवरी में जब वो जेल से बाहर आया तो उसका खानदान बर्बाद हो चूका था सदमे से बाप की मौत हो चुकी थी और माँ गूंगी हो गयी थी अब उसकी उम्र ३२ साल है दिल्ली के आमिर नाम के इस मासूम लड़के की कहानी टू सर्कल डाट नेट और फर्स्ट पोस्ट इंडिया डाट काम के ज़रिये से उर्दू प्रेस में तो आई है मगर तथाकथित मुख्यधारा की मीडिया ने इसे इस काबिल नहीं समझा इसलिए के इसमें कोई कारोबारी फायेदा नहीं था या फिर मीडिया ने सोचा हो के जो कुछ हुआ है स्टेट पालिसी के मुताबिक हुआ.
हास्यास्पद आरोप से उपजी कहानी का दर्द
अलबत्ता अब अंग्रेजी दैनिक हिन्दू के विद्या सुब्रमण्यम ने 7 फ़रवरी और टाइम्स आफ इंडिया के इन्द्राणी बासु ने 9 फ़रवरी को पेपर में कुछ नए सिरे से इस स्टोरी को लिखा है और इसे बहुत अहम् बताया है स्टोरी जितनी दर्दनाक है उस पर लगाये गए इलज़ाम और मुक़दमे उतने ही हास्यपद हैं जो एक दसवी क्लास के छात्र पर पुलिस ने लगाये थे आमिर के वकील एन दी पंचोली जो बड़े कानूनविद हैं और सिविल राइट्स कार्यकर्त्ता भी हैं कहते हैं "मैं ने अपने ३५ साल के वकालत के करियर में ऐसा मुक़दमा नहीं देखा " हालाँकि स्टेट की धूर्तता कोई नई चीज़ नहीं पुलिस और खुफिया एजेंसियों के हाथों बहुत से मुस्लिम नौजवान इस दरिन्दगी का शिकार हो चुके हैं ये सिलसिला आज भी पूरे जोर-शोर से जारी है लेकिन आमिर पर लगाये गए इलज़ाम और इकठ्ठा किये गए साबुत बहुत ज्यादा हास्यपद हैं ये साबुत ऐसे हैं के कोई अनपढ़ मगर नेकदिल नागरिक भी उनमे से किसी एक सबूत पर भी यकीन नहीं कर सकता जैसा के होता आया है-अन्याय की शुरआत पुलिस ने की, न्याय की कुर्सी पर बैठने वालों ने इस अन्याय का नोटिस न लेकर दूसरा अन्याय किया, तीसरा अन्याय वकीलों ने इस केस को लेने से इनकार करके किया और मीडिया ने इसकी तरफ तवज्जो न देकर चौथा अन्याय किया
फिर लोगों की बेरुखी जानलेवा
लेकिन सबसे बड़ा अन्याय आमिर की मिल्लत के लोगों ने किया आमिर को पुलिस के ले जाने की खबर के फैलते ही उसके माँ बाप की मदद करना या दिलासा देना तो दूर उसके रिश्तेदारों दोस्तों जान-पहचान वाले और पास-पड़ोस वालों ने उसके माँ बाप से मिलना जुलना भी छोड़ दिया और ऐसा आमिर के मामले में ही नहीं हुआ अक्सर ऐसा ही होता है इस तरह के मामले में जब भी कोई मुस्लिम नौजवान का नाम आता है तो उसके जान पहचान वाले उसके खानदान के लोग उससे किनारा कर लेते हैं यानी मजलूम पर एक के बाद जो दूसरी मुसीबतें आती हैं उनमे सबसे बड़ी मुसीबत यही है जो मजलूम के खानदान के लिए सबसे अधिक दुखदायी होती है ये सूरते हाल कम या ज्यादा पुरे देश में पायी जाती है यानी पुलिस तो सिर्फ शक के आधार पर उठाती है मगर मिल्लत के लोग पुरे यकीन के साथ बायकाट करते हैं मजलूमों के बच्चों को स्कूल से निकाल दिया जाता है हालाँकि ये सब खुद को पुलिस या स्टेट की ज्यादती से अपने आप को बचाने के लिए किया जाता है लेकिन मिल्लत के ये लोग अपने रवैय्ये से ये ज़ाहिर करते हैं बल्कि बदनियतों को दावत देते हैं के इन तरीकों से हमें आसानी से कुचला सकता है क्यूंकि हम कमज़ोर मिल्लत के बुजदिल लोग हैं हमारे अन्दर डर और खौफ फैलाने के लिए यही काफी है के बेक़सूर मुस्लिम नौजवानों को गिरफ्तार कर लिया जाए या किसी मकान पर जा कर महज़ पूछ-ताछ कर ली जाए यकीन नहीं आता के ये अल्लाह और आखिरत पर ईमान रखने वाली मिल्लत के लोग हैं.
अहले सियासत का ढब
क्या इसका ये मतलब नहीं है के बेक़सूर नौजवानों की गिरफ़्तारी के नतीजे में अगर उनका करियर और खानदान तबाह हो जाता है तो इस तबाही में मुस्लिम मिल्लत के लोग भी ज़िम्मेदार होते हैं मुस्लिम लीडरशिप को इस सूरतेहाल पर लाज़मी तौर पर फ़ौरन तवज्जो देनी चाहिए एक तरह से ये पुलिस और जांच एजेंसियों के साथ सहयोग भी होगा अगर कोई व्यक्ति सही मायनों में मुजरिम है या किसी के बारे में ये ख्याल हो की उसने ये हरकत की होगी तो पुलिस और स्टेट के साथ सहयोग करना मुसलमानों का कर्तव्य है लेकिन अगर ऐसा नहीं है जैसा के 99 प्रतिशत मामलों में देखा जा रहा है तो शुरू में ही शक के दायरे में आने वाले व्यक्ति का बचाव और उनकी क़ानूनी मदद मिल्लत का फ़र्ज़ है मिल्लत के अन्दर आत्मविश्वाश और हौसला पैदा करना वक़्त की सबसे पहली ज़रूरत है मुस्लिम अवाम को बताया जाए के कोई मुलजिम उस वक़्त तक मुजरिम नहीं बन सकता जब तक अदालत उसे कसूरवार न ठहरा दे उसके बाद भी उपरी अदालतों के दरवाज़े उस के लिए खुले रहते हैं लेकिन मिल्लत को डर और खौफ में मुब्तला करने के इन आयातित तरीकों पर अगर मिल्लत के लोग इस तरह खामोश और ला-ताल्लुक बने रहे तो याद रखना चाहिए के ये आरामपसंदी मुसलामनों के लिए महँगी साबित होगी .
इसे हिन्दू में भी पढ़ें
(लेखक उर्दू के वरिष्ठ पत्रकार हैं दिल्ली में एक अखबार के सम्पादक हैं )
आमिर अपनी माँ के साथ पुरानी दिल्ली के घर में चित्र साभार: हिन्दू |
परवाज़ रहमानी की कलम से
जब वह सिर्फ 18 साल का था
वो गरीब माँ बाप का इकलौता बेटा था उम्र 18 साल पुरानी दिल्ली की घनी आबादी में एक कमरे के मकान में रहता था फ़रवरी 1998 की बीस तारीख उसके और उसके छोटे से परिवार के लिए ज़िन्दगी का सबसे बर्बाद करने वाला दिन साबित हुई जब पुलिस वालों ने उसे अचानक पकड़ लिया वैन में डाला आँखों में पट्टी डाली और ले गए जब पट्टी खुली तो उसने खुद को तिहाड़ जेल के एक अँधेरे कमरे में पाया उसके खिलाफ हत्या आतंकवाद और देश के खिलाफ युद्ध करने के बीस मुक़दमे कायम किये गए उस पर चार्ज लगाया गया के उसने दिसम्बर 1996 से अक्तूबर 1997 तक यानी दस महीने में बीस स्थान पर बम धमाके किये 18 मामलों में अदालत ने उसे बरी कर दिया है लेकिन चौदह साल के बाद पिछले महीने जनवरी में जब वो जेल से बाहर आया तो उसका खानदान बर्बाद हो चूका था सदमे से बाप की मौत हो चुकी थी और माँ गूंगी हो गयी थी अब उसकी उम्र ३२ साल है दिल्ली के आमिर नाम के इस मासूम लड़के की कहानी टू सर्कल डाट नेट और फर्स्ट पोस्ट इंडिया डाट काम के ज़रिये से उर्दू प्रेस में तो आई है मगर तथाकथित मुख्यधारा की मीडिया ने इसे इस काबिल नहीं समझा इसलिए के इसमें कोई कारोबारी फायेदा नहीं था या फिर मीडिया ने सोचा हो के जो कुछ हुआ है स्टेट पालिसी के मुताबिक हुआ.
हास्यास्पद आरोप से उपजी कहानी का दर्द
अलबत्ता अब अंग्रेजी दैनिक हिन्दू के विद्या सुब्रमण्यम ने 7 फ़रवरी और टाइम्स आफ इंडिया के इन्द्राणी बासु ने 9 फ़रवरी को पेपर में कुछ नए सिरे से इस स्टोरी को लिखा है और इसे बहुत अहम् बताया है स्टोरी जितनी दर्दनाक है उस पर लगाये गए इलज़ाम और मुक़दमे उतने ही हास्यपद हैं जो एक दसवी क्लास के छात्र पर पुलिस ने लगाये थे आमिर के वकील एन दी पंचोली जो बड़े कानूनविद हैं और सिविल राइट्स कार्यकर्त्ता भी हैं कहते हैं "मैं ने अपने ३५ साल के वकालत के करियर में ऐसा मुक़दमा नहीं देखा " हालाँकि स्टेट की धूर्तता कोई नई चीज़ नहीं पुलिस और खुफिया एजेंसियों के हाथों बहुत से मुस्लिम नौजवान इस दरिन्दगी का शिकार हो चुके हैं ये सिलसिला आज भी पूरे जोर-शोर से जारी है लेकिन आमिर पर लगाये गए इलज़ाम और इकठ्ठा किये गए साबुत बहुत ज्यादा हास्यपद हैं ये साबुत ऐसे हैं के कोई अनपढ़ मगर नेकदिल नागरिक भी उनमे से किसी एक सबूत पर भी यकीन नहीं कर सकता जैसा के होता आया है-अन्याय की शुरआत पुलिस ने की, न्याय की कुर्सी पर बैठने वालों ने इस अन्याय का नोटिस न लेकर दूसरा अन्याय किया, तीसरा अन्याय वकीलों ने इस केस को लेने से इनकार करके किया और मीडिया ने इसकी तरफ तवज्जो न देकर चौथा अन्याय किया
फिर लोगों की बेरुखी जानलेवा
लेकिन सबसे बड़ा अन्याय आमिर की मिल्लत के लोगों ने किया आमिर को पुलिस के ले जाने की खबर के फैलते ही उसके माँ बाप की मदद करना या दिलासा देना तो दूर उसके रिश्तेदारों दोस्तों जान-पहचान वाले और पास-पड़ोस वालों ने उसके माँ बाप से मिलना जुलना भी छोड़ दिया और ऐसा आमिर के मामले में ही नहीं हुआ अक्सर ऐसा ही होता है इस तरह के मामले में जब भी कोई मुस्लिम नौजवान का नाम आता है तो उसके जान पहचान वाले उसके खानदान के लोग उससे किनारा कर लेते हैं यानी मजलूम पर एक के बाद जो दूसरी मुसीबतें आती हैं उनमे सबसे बड़ी मुसीबत यही है जो मजलूम के खानदान के लिए सबसे अधिक दुखदायी होती है ये सूरते हाल कम या ज्यादा पुरे देश में पायी जाती है यानी पुलिस तो सिर्फ शक के आधार पर उठाती है मगर मिल्लत के लोग पुरे यकीन के साथ बायकाट करते हैं मजलूमों के बच्चों को स्कूल से निकाल दिया जाता है हालाँकि ये सब खुद को पुलिस या स्टेट की ज्यादती से अपने आप को बचाने के लिए किया जाता है लेकिन मिल्लत के ये लोग अपने रवैय्ये से ये ज़ाहिर करते हैं बल्कि बदनियतों को दावत देते हैं के इन तरीकों से हमें आसानी से कुचला सकता है क्यूंकि हम कमज़ोर मिल्लत के बुजदिल लोग हैं हमारे अन्दर डर और खौफ फैलाने के लिए यही काफी है के बेक़सूर मुस्लिम नौजवानों को गिरफ्तार कर लिया जाए या किसी मकान पर जा कर महज़ पूछ-ताछ कर ली जाए यकीन नहीं आता के ये अल्लाह और आखिरत पर ईमान रखने वाली मिल्लत के लोग हैं.
अहले सियासत का ढब
क्या इसका ये मतलब नहीं है के बेक़सूर नौजवानों की गिरफ़्तारी के नतीजे में अगर उनका करियर और खानदान तबाह हो जाता है तो इस तबाही में मुस्लिम मिल्लत के लोग भी ज़िम्मेदार होते हैं मुस्लिम लीडरशिप को इस सूरतेहाल पर लाज़मी तौर पर फ़ौरन तवज्जो देनी चाहिए एक तरह से ये पुलिस और जांच एजेंसियों के साथ सहयोग भी होगा अगर कोई व्यक्ति सही मायनों में मुजरिम है या किसी के बारे में ये ख्याल हो की उसने ये हरकत की होगी तो पुलिस और स्टेट के साथ सहयोग करना मुसलमानों का कर्तव्य है लेकिन अगर ऐसा नहीं है जैसा के 99 प्रतिशत मामलों में देखा जा रहा है तो शुरू में ही शक के दायरे में आने वाले व्यक्ति का बचाव और उनकी क़ानूनी मदद मिल्लत का फ़र्ज़ है मिल्लत के अन्दर आत्मविश्वाश और हौसला पैदा करना वक़्त की सबसे पहली ज़रूरत है मुस्लिम अवाम को बताया जाए के कोई मुलजिम उस वक़्त तक मुजरिम नहीं बन सकता जब तक अदालत उसे कसूरवार न ठहरा दे उसके बाद भी उपरी अदालतों के दरवाज़े उस के लिए खुले रहते हैं लेकिन मिल्लत को डर और खौफ में मुब्तला करने के इन आयातित तरीकों पर अगर मिल्लत के लोग इस तरह खामोश और ला-ताल्लुक बने रहे तो याद रखना चाहिए के ये आरामपसंदी मुसलामनों के लिए महँगी साबित होगी .
इसे हिन्दू में भी पढ़ें
(लेखक उर्दू के वरिष्ठ पत्रकार हैं दिल्ली में एक अखबार के सम्पादक हैं )
2 comments: on "कौन लौटाएगा उसके १४ साल जो निर्दोष ने जेल में गुज़ारे"
अभी कुछ दिनों पहले इटली के एक जहाज पर तैनात वहाँ के नेवी कर्मियों ने केरल के पास समुद्र में दो भारतीय मछ्वारों को सोमालियाई समुद्री डाकू समझ मार डाला ! अभागे मछ्वारों का कसूर सिर्फ इतना था की उनकी चमड़ी सोमालियाई लुटेरों से मिलती थी ! पता नहीं अब उनके अभागे परिवारों में कोई रोटी का जुगाड़ करने वाला है भी या नहीं ! वे जरूर सोचते होंगे कि उन सोमालियाई डाकुओं की करनी का फल किसे भरना पडा, अगर वे हरामखोर सोमालयाई लुटेरे समुद्र में ऐसा लूट का आतंक नहीं मचाते तो उन अभागे मछ्वारों को क्यों अपनी जान से हाथ धोना पड़ता ! काश कि ये सोमालियाई लुटेरे इस घटना से कुछ सबक ले पाते !
बेहद दुखद है....
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रचना की न केवल प्रशंसा हो बल्कि कमियों की ओर भी ध्यान दिलाना आपका परम कर्तव्य है : यानी आप इस शे'र का साकार रूप हों.
न स्याही के हैं दुश्मन, न सफ़ेदी के हैं दोस्त
हमको आइना दिखाना है, दिखा देते हैं.
- अल्लामा जमील मज़हरी