बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

शनिवार, 11 फ़रवरी 2012

बिहार में नीतीश के विकास की झलक

 संदीप मौर्य की क़लम से


बिहार में इन दिनों लूट मची है। लूट के तरीके भी अजीबोगरीब हैं। अजीबोगरीब इस मायने में कि करोड़ों रुपये का घोटाला हो जाता है और किसी को इसकी भनक तक भी नहीं लगती। आज हम जिस घोटाला की बात कर रहे हैं वह बिहार राज्य प्रशासनिक सुधार मिशन से जुड़ा है। ब्रिटेन सरकार के डीएफ़आईडी विभाग की सहायता से बिहारी बाबूओं को सशक्त बनाने की योजना चलाई जा रही है। इसी योजना के तहत सरकार ने उन्हें लैपटाप उपलब्ध कराने का निर्णय लिया। इस योजना के तहत प्रत्येक बाबू को 60 हजार रुपये दिये गये। सबसे अहम बात यह कि सरकार ने उन्हें कम्प्यूटर का प्रशिक्षण दिलाने के लिये डीओईएसीसी नामक संस्थान से समझौता किया। इस समझौते के तहत सरकार ने सभी जिलों में संस्थान के जरिये कम्प्यूटर प्रशिक्षण की व्यवस्था की। अब बेचारे बाबू लोग को कम्प्यूटर क्लास करने से रहे। उन्हें तो बस लैपटाप लेने की हड़बड़ी थी। इसलिये बेचारे बाबू लोगों ने कुछ ले देकर फ़र्जी सर्टिफ़िकेट बनवा लिया और लैपटापधारी बन गये।सरकार की यह योजना चल रही है और हर महीने कम्प्यूटर प्रशिक्षण के नाम पर प्रति माह करीब 2 करोड़ 55 लाख रुपये लूटाये जा रहे हैं। लूटाये इसलिये कि कम्प्यूटर प्रशिक्षण केवल कागजी हो रहा है।
ग्रामीण सड़कों के मामले में बिहार सरकार किस कदर फ़िसड्डी रही है, उसका एक नमूना सरकारी आंकड़े ही दे रहे हैं। वैसे सबसे बड़ी बात यह है कि यदि सरकार ने अपने उपलब्धि पत्र में 4712 किलोमीटर सड़क का निर्माण कराया है और इसके लिये 3478 करोड़ रुपये खर्च किये गये हैं तो इस हिसाब से प्रति किलोमीटर सड़क के निर्माण में सरकार को करीब 80 से 90 लाख रुपये खर्च करने पड़े हैं। अब यदि इस आंकड़े के हिसाब 4712 किलोमीटर का 22 फ़ीसदी अलग कर दें तो कुल मिलाकर 3675 किलोमीटर सड़कें कागज पर बनीं और इसके लिये सरकारी खजाने से 2940 करोड़ रुपये की निकासी की गई है। अब वैसे भी बिहार में सुशासन का राज है, इसलिये कोई इस सरकार से 2940 करोड़ रुपये के हिसाब की जानकारी तो मांगेगा नहीं। कम से कम सूबे में रसूख वाले मीडिया यानी अखबार और टेलीविजन चैनलों वालों से तो इसकी उम्मीद नहीं की जानी चाहिये।
क्या बिहार में सुशासन इसी का नाम है?
बिहार में विकास का आलम यह है कि यहां 58 फ़ीसदी बच्चे कूपोषण के शिकार हैं। 80 फ़ीसदी का आंकड़ा उन बच्चों का है जिनकी उम्र 5 वर्ष से कम है। बांका और सासाराम जिले में सरकारी तफ़्तीश के दौरान यह सच सामने आया है कि करीब डेढ लाख छात्र-छात्राओं ने फ़र्जी नामांकन के आधार पर सरकारी साइकिल और पोशाक की राशि हड़प ली। मानव विकास संसाधन विभाग के सूत्रों की मानें तो पूरे बिहार में यह संख्या करीब 12 लाख है। सबसे बड़ा सवाल यह कि 12 लाख फ़र्जी छात्रों का नामांकन किसने और कैसे कर दिया।
बिहार देश का पहला राज्य है, जहां सबसे पहले भूमि सुधार के प्रयासों को शुरु किया गया। जमींदारी उन्मूलन के प्रयास सबसे पहले यही शुरु हुए और फ़िर भूदान के प्रणेता संत विनोबा भावे को वास्तविक कामयाबी भी बिहार में ही मिली।नीतीश सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल के पहले बिहार के महादलित भूमिहीनों को आश्वस्त किया था कि सरकार उन्हें रहने के लिये 3 डिसमिल जमीन देगी। सरकार की यह घोषण चुनाव जीतने के साथ ही खत्म हो गई। आज हालत यह है कि सरकार अभीतक केवल 7 जिलों में करीब 373 महादलित भूमिहीनों को ही 3 डिसमिल जमीन का पर्चा दे सकी है।सरकार एक ओर कहती है कि गरीबों के लिये उसके पास जमीन नहीं है और दूसरी ओर बड़े-बड़े तथाकथित उद्योगपतियों को बियाडा की ओर से बेशकीमती जमीन दी जा रही है।
सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई सूचना में अपराध अनुसंधान विभाग ने बताया कि सूबे बिहार में महिलाओं के अपहरण व दहेज हत्या के मामले काफी बढ़ गए हैं. 2005 में महिलाओं के अपहरण के 854 व दहेज हत्या के 1044 मामले दर्ज किए गए. इसी तरह 2006 में अपहरण के 925 व दहेज हत्या के 1006, 2007 में अपहरण के 1184 व दहेज हत्या के 1091, 2008 में अपहरण के 1494 व दहेज हत्या के 1233, 2009 में अपहरण के 1997 व दहेज हत्या के 1188, 2010 में अपहरण के 2552 व दहेज हत्या के 1307 मामले और 2011 के अगस्त माह तक अपहरण के 1856 व दहेज हत्या के 953 मामले दर्ज हो चुके हैं. ये तो सरकारी आंकड़े हैं. सूबे के लोग अच्छी तरह जानते हैं कि यहां आधे से अधिक मामले दर्ज होते ही नहीं है. खासकर महिलाओं से जुड़े मामले तो और भी दर्ज नहीं हो पाते हैं.पटना अपराध के लिहाज़ से अव्वल रहा. ज़िले में हत्या की 304, अपहरण की 283 और दुष्कर्म की 50 घटनाएं दर्ज की गईं. दुष्कर्म की सबसे ज़्यादा घटनाएं कटिहार में दर्ज हुईं तो अपहरण के लिहाज़ से पटना और मुज़फ्फरपुर अव्वल रहे.
बिहार में अभी भी जनवितरण प्रणाली अस्तित्वविहीन हो चुकी है!सवाल यह नहीं है कि सड़े गेहूं को क्यों जला दिया गया, सवाल यह है कि जब बिहार 1 करोड़ 47 लाख परिवार(मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के अनुसार) बीपीएल परिवार की श्रेणी में शामिल हैं, फ़िर गेहूं सड़ कैसे गया, उसे समय से वितरित क्यों नहीं किया गया?भारत सरकार द्वारा गरीबों को कम कीमत पर वितरित करने के लिये वर्ष 2009-10 में आवंटित गेहूं दिसंबर 2011 में भी नहीं बंट सका और सड़ गया। सड़े गेहूं के निशान को छिपाने के लिये सरकारी अधिकारियों ने उसे जलाने की कोशिश की, लेकिन सरकार का यह पाप छुप नहीं सका। पिछले दिनों राजधानी पटना के मनेर प्रखंड में एसएफ़सी यानी राज्य खाद्य निगम के गोदाम परिसर में जब गेहूं जलाया जा रहा था, तब आम लोगों ने सरकार की पोल खोल दी.







बिहार के अररिया सदर अस्पताल में ओटी के निकट एक मां हाथ से नली पकड़कर अपने बच्चे को आक्सीजन दे रही है। कमिश्नर के अस्पताल का निरीक्षण कर ने के तीन दिन बाद का यह मंज़र है। फोटो जागरण से साभार
(लेखक-परिचय:
जन्म:२२ अक्टूबर १९८६ को, मगध के अरवल जवार में.
शिक्षा: पटना विवि से पत्रकारिता जनसंचार में उपाधि
सम्प्रति: हिंदुजा समूह में अधिकारी
संपर्क:फेसबुक )




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हमको आइना दिखाना है, दिखा देते हैं.
- अल्लामा जमील मज़हरी

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