हे वीर! तुझे आखिरी विदा
शहरोज़ की कलम से
मैं मुक्तिधाम हूं .रविवार (१२ फरवरी) सुबह से ही मेरे हाथ काँप रहे थे। मेरे आंगन के बरगद, पीपल और नीम भी मौन थे। हरमू (नदी) की हवाएं भी कानों के पास आकर बुक्का फाड़ रो पड़ी । अशुभ की आशंका हमें डरा रही थी। धूप का रंग भी गमों सा धूसर। जबकि नियति की विडंबना ·कहिए, मेरी बाहें शवों का दाह करती हैं। पर दोपहर से पहले ही जैसे किसी ने मुझे झकझोरा अरे! मुक्तिधाम तू रोता है। देख तेरी बाहों में आज वीर आया है। हां। सीमा सुरक्षा बल के सेकंड इन कमांड राजेश शरण। नक्सलियों से लड़ते हुए वह शहीद हो गए। राम नाम सत्य है.....इसे सुनने के कान अभ्यस्त हैं। फिर राजेश शरण अमर रहे के नारे ने चौंकाया । शोक से लदा फंदा काफिला पहुंच ही गया। बीएसएफ और झारखंड पुलिस के जवान। पत्रकार लेखकों का हुजूम। शहर के आम नागरिक । मैं सामना नहीं कर सका । उनकी छलछलाती आंखों में महज बिछोह का दर्द नहीं था। उसमें कहीं प्रशासनिक चूक, समाज व प्रबुद्ध जनों के दोहरे चरित्र भी नजर आए। मैंने आंखें मूंद लीं। लेकिन अटल खड़े पेड़ों का साहस चूक गया। वे झर झर बहने लगे। आंगन में पतियां बिखर गईं। बाहें फैला दी मैंने। देश के लाल को सीने से लिपटा लिया। तिरंगे से लिपटे और फूलों से आच्छादित शहीद राजेश। जवानों ने कतारें लगाईं । शहीद को सशस्त्र सलामी दी।
होश मैंने 1913 में संभाला। ढेरों लोगों की अंत्येष्ठि हुई। लेकिन आज ऐसा क्यों। रह रह कर होंठों में कम्पन । पांव थरथराते। पापा....पापा...मेरे पापा को ला दो...पापा को उठा दो.....उस मासूम ईशान का क्रंदन। अपने मामा रीतेश की गोद में छटपटाता हुआ नन्हा बच्चा। मैंने भी चोरी चोरी कई आंखों में टटोला। किसी की हिम्मत उस ओर देखने की नहीं थी। उस अबोध के विलाप का जवाब कोई देगा। लेकिन हे प्रभु! मुझे क्षमा करना! शहर की तरह ही मेरी आंखें भी जार जार हैं। लेकिन छाती थोड़ा चौड़ी भी। उस जवान ने उग्रवादियों से लोहा लिया। उनसे संघर्ष करते हुए वीरगति को प्राप्त हुआ। मैंने शोक का मौन ग्रहण कर लिया। राजेश के पापा प्रेमशरण सत्संगी की तरह। लेकिन जब भंग होगा तो....। स्वेटर पर बेतरतीब सा लटकता मफलर। कभी शून्य, तो कभी खुद से बतियाती उनकी आंखें। चेहरे की रेखाएं थोड़ी पिघली हुई। हे ईश्वर इस बुजुर्ग में ऐसा धैर्य। चिता सजा दी गई है। पार्थिव शरीर को कन्धा देने सी होड़ । हर कोई अंतिम बार अपने जांबाज को देखना चाहता है। छोटे भाई राजेश शरण ने ईशान को गोद में लिया। मुखाग्रि दे दी। धीरे धीरे चिता की ज्चाला बढऩे के साथ ही भावनाओं के ज्वार ने सभी को घेरे में ले लिया। दर्द जब अतिरेक पर हो तो अभिव्यक्त नहीं हो पाता। मासूम ईशान बुजुर्ग सा अभी चुप है। वहीं बुजुर्ग पिता के मासूम कदम डग डग....।
भास्कर के लिए लिखा गया
7 comments: on "शहीद राजेश शरण को सलाम!"
देश के ऐसे वीरों को हमारा सलाम ... जय हिन्द
शहीद को नमन..
तुझे नमन जाँबाज़ जवान
है कृतज्ञ ये हिंदुस्तान
शहरोज़ भाई आँखें और दिल दोनों भर आया ,,जब भी ऐसी कोई ख़बर पढ़ती हूँ एक अजीब सी बेचैनी घेर लेती है ,,या अल्लाह सब को बख़ैरियत रखना
शहीद को नमन.......
शत शत नमन करता हूं अमर शहीद राजेश शरण को.अक्सर हमे शहीदो को श्रद्धांजलि देना पडता है,आखिर क्यों?क्यों हमारे जवान ही शहीद हो रहे हैं?ाउर उनकी शहादत पर कोई मानवाधिकारवादी क्यों नही रोता?क्यों उन पर होने वाले हमलो और उन्हे समाज में ब्वाहर रहकर मदद करने वालों की जांच के लिये याचिकाओं की बाढ नही आती?क्यों बटला हाऊस में शहीद हुये मोहन चंद शर्मा की शहादत पर सवाल उठते है?क्यों नेता उस बट्ला हाऊस एनकाऊंटर को वोट बटोरने का फार्म्यूला मान कर उसे विवाद में ला रहे है?आखिर कब तक़ ऎसा ही चलता रहेगा?कब खतम होगा नक्सलियों का खूनी तांडव?कब तक़ उन्हे बाहर से यंहा तक़ विदेशों से भी मदद मिलती रहेगी?आखिर कब तक़ बच्चे पापा को ला दो कह कर हमे रोने पर मज़बूर करेंगे?आखिर कब तक़?
साथियो! मदद करें दो कमेन्ट दिख ही नहीं रहे हैं.स्पैम में भी नहीं हैं.पहले वहाँ मिल जाते तो उसे पब्लिश कर देते थे.
शत-शत नमन.....उन्हें....उन सबको....जो मादरे-वतन की खातिर अपनी जान को कुर्बान करते हैं....!!
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न स्याही के हैं दुश्मन, न सफ़ेदी के हैं दोस्त
हमको आइना दिखाना है, दिखा देते हैं.
- अल्लामा जमील मज़हरी