
तक़सीम चौक, इस्तांबुल में एक महिला मित्र के साथ लेखक .
निशांत कौशिक तुर्की से लौट कर
यूरोपीय मध्यकाल से सतत चली आ रही पूर्व-पश्चिम की बहस, तानपीनार और ओरहन पामुक के उपन्यासों...
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चार नज़्म
फ़ैज़ी रेहरवी की क़लम से
1.
मैं गया कहाँ, बस यहीं रहा,
न रुका कभी, बस चला किया
मेरी ज़िन्दगी थी तेरे लिए,
मेरी लाश तो मुझको सौंप दो
वो सफ़र के जो कोई, कभी न था
वो डगर जो अब तक चली नहींवो रुका...
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पहली फिल्म सोनचांद की शूटिंग जल्द
शहरोज़ की क़लम से
भारतीय सिनेमा में आदिवासी पहचान और अभिव्यक्ति को मुखर करने के लिए वंदना टेटे और ग्लैडसन डुंगडुंग ने मिलकर बिर बुरू ओम्पाय मीडिया एंड इंटरटेनमेंट एलएलपी नामक फिल्म निर्माण...
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(यहाँ पोस्टेड किसी भी सामग्री या विचार से मॉडरेटर का सहमत होना ज़रूरी नहीं है। लेखक का अपना नज़रिया हो सकता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान तो करना ही चाहिए।)