बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

बुधवार, 23 अक्टूबर 2013

हिंदी साहित्य को जाति व धर्म से निकलना होगा














फ्रैंक हुज़ूर @ शहरोज़




रांची के सेंट जेवियर कॉलेज के छात्र रहे मनोज कुमार  अब फ्रैंक हुज़ूर बन चुके हैं। लंदन में इनके लेखन के दीवानों की कमी नहीं हैं। क्रिकेटर से राजनेता बने इमरान खान पर लिखी उनकी किताब 'इमरान वर्सेस इमरान: द अनटोल्ड स्टोरी' बेस्टसेलर हो चुकी है। पिछले वर्ष आई 'इमरान खान द फाइटर' भी अंग्रेजी जगत में खूब चर्चा में रही। यह युवा लेखक कभी 'हिटलर इन लव विद मडोना' नाटक के कारण विवादों में आया था। इन दिनों पोर्न सिनेमा पर केंद्रित अंग्रेजी व हिंदी में हिंदी युग्म  से आई उनकी औपन्यासिक कृति 'सोहो : जिस्म से रूह तक का सफर' ने शोहरत की नई बुलंदी तय की है। इधर फोन पर उनसे लंबी बातचीत हुई। कहा कि रांची शहर उन्हें खूब याद आता है। सेंट जेवियर जैसा कॉलेज कैंपस उन्होंने कहीं नहीं देखा।

छह महीने के थे कि मां गुजर गईं: मां की गोद महज छह माह नसीब हुई। उसके बाद उनका देहांत हो गया। मां के ममत्व से छुटपन से ही वंचित रहा। इमरान वाली पहली किताब मां को ही समर्पित की है। पटना में रह रहे पिता से सालों साल मुलाकात नहीं हो पाती है। इधर के पांच वर्षों में मैं मुंबई, दिल्ली, लाहौर व लंदन में डोलता रहा हूं। पिता लेखक बनने के फैसले से असंतुष्ट थे। वह मुझे आईएस या आईपीएस देखना चाहते थे। लेकिन अब मेरे लेखन की अहमियत को समझने लगे हैं।

रांची में हुआ मैच्योर: 92 में पहली बार कविता लिखी, उसे याद करते हुए। शुरुआत से ही अभिव्यक्ति का माध्यम अंग्रेजी रहा।मनोज खान के नाम से इंग्लिश में कविताएँ  पत्र-पत्रिकाओं में शाया हुई। लेकिन मुझे लगा कि अंदर में एक लेखक सांस ले रहा है, उसे तवज्जो देना चाहिए। जेवियर की रिच लाइब्रेरी ने मेरे मानस को गहरे तक प्रभावित किया। मैंने जमकर यहां की दुर्लभ किताबों का फायदा उठाया। सच कहूं, तो मेरा स्टंडर्ड यहीं मैच्योर हुआ।

हिटलर इन लव विद मैडोना पर मिली धमकियां: मेरे नाटक 'हिटलर इन लव विद मैडोना' को काफी पसंद किया गया। पर उसपर विवाद भी  हुआ। मेरे पुतले जलाए गए।  पुस्तक तीन वर्षों के लिए प्रतिबंधित कर दी गयी।  दरअसल मैंने देश में मौजूद धार्मिक कट्टरता को दिखाने की कोशिश की थी। इस कट्टरता के पीछे एक राजनीतिक दल का हाथ रहा है। न सिर्फ मुझे बल्कि नाटक के कलाकारों को भी उस दल के कार्यकर्ताओं ने धमकियां दीं।

इमरान ही क्यों:  बचपन से क्रिकेट का दीवाना रहा हूं। इमरान की जिंदगी ने प्रभावित किया। सियासत में आने के बाद भी आम जन के प्रति उनके सरोकारों को देख मैं चकित हुआ। दर्जनों बार इमरान व जेमिना से मिलने के लिए लंदन और पाकिस्तान के चक्कर लगाए। चार सौ पेज की फाल्कन एंड फाल्कन, लंदन से छपी ' इमरान वर्सेस इमरान' में इमरान की जिंदगी के बहाने पाक की वर्तमान राजनीतिक व सामाजिक स्थितियों का भी चित्रण है। इसके उर्दू संस्करण की रिकार्ड बिक्री हुई। हिंदी में जल्द ही आने वाली है।

झारखंड पर भी लिखेंगे: सपा प्रमुख मुलायम सिंह पर लिखने का मन बना चुके हैं फ्रैंक। बिहार व झारखंड पर कहते हैं कि यहां विकास का जितना प्रचार है, हकीकत उतना नहीं। हां! बदलाव जरूर आया है। लेकिन विकास की सही तस्वीर बननी बाकी है। झारखंड व बिहार की बदहाली पर खूब ध्यान जाता है। बेचैनी भी होती है। कल के दिनों में इनपर भी जरूर लिखूंगा।

हिंदी के वाल्तेयर राजेंद्र यादव: उर्दू शायर फैज अहमद फैज बेहद पसंद हैं। हिंदी लेखकों में राजेंद्र यादव का लेखन खूब भाता है। राजेंद्र जी हिंदी के वाल्तेयर हैं। लेकिन अंग्रेजी साहित्य में गालिब की वुस्अत यानी विस्तार और फैलाव है। इंद्रधनुषी रंग है उसमें। ऑस्कर वाइल्ड और मार्कोज जैसा कल्पनाशील और धाकड़ रचनाकार हिंदी में नहीं हुआ। हिंदी समाज धर्म और जाति जैसे फिजुल बातों में बंटकर लेखन का बंटाधार कर रहा है। कुछ अपवाद सभी जगह हैं, उनमें एक हैं, राजेंद्र यादव।

खुशवंत का हास्य पसंद: मिड नाइट चिल्ड्रेन में सलमान रुश्दी की प्रतिभा तो दिखती है, पर सटैनिक वर्सेस में आकर वह डगमगा जाते हैं। अरुंधति राय निसंदेह गंभीर लेखक हैं। उनके लेखन व संघर्ष दोनों का मैं कायल और प्रशंसक हूं। खुशवंत सिंह भारतीय अंग्रेजी लेखन के अहम स्तंभ हैं। उनके हास्य-व्यंग्य  का जवाब नहीं। चेतन भगत चमकते हुए भारत की तस्वीर दिखा रहे हैं। कैफे और कॉल सेंटर की जमात उनके पाठकों में है। जबकि समूचा देश इंडिया और भारत में बंटा हुआ है। महज दो फीसदी लोग उस चमकते चेहरे में शामिल हैं।



 फ्रैंक हुजूर : परिचय
जन्म: 21 जनवरी 1977 को बक्सर (बिहार) में
शिक्षा: सेंट जेवियर कॉलेज रांची व दिल्ली से
सृजन : नाटक 'हिटलर इन लव विद मडोना, बायोग्राफी 'इमरान वर्सेस इमरान: द अनटोल्ड स्टोरी, 'इमरान खान द फाइटर और औपन्यासिक कृति 'सोहा:जिस्म से रूह तक का सफर
संप्रति: स्वतंत्र लेखन
संपर्क:  frankhuzur@gmail.com 

(चर्चित युवा लेखक फ्रैंक हुज़ूर  से शहरोज़ की बातचीत भास्कर के झारखंड संस्करणों में 23 अक्टूबर 2013 के अंक में प्रकाशित )   








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1 comments: on "हिंदी साहित्य को जाति व धर्म से निकलना होगा"

ALBELA KHATRI ने कहा…

सार्थक पोस्ट ........

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