बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

मंगलवार, 29 अक्टूबर 2013

ब्लास्ट का दोषी साबित होने पर कर दूंगा भाई का क़त्ल

फ़ोटो : मीर वसीम एक विचारधारा  ने कैसे बदल दिया रंग-रोगन करने वाले मज़दूर का रंग पटना ब्लास्ट के चार आरोपियों के गाँव हेड कोचा सिठियो से धुर्वा से लोदमा जानेवाली सड़क सोमवार को बेहद खामोश थी। जगह-जगह समूह में युवा व बुजुर्ग जरूर खड़े मिले।...
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शनिवार, 26 अक्टूबर 2013

अज़ीज़ नाज़ां की क़व्वाली आपने सुनी ही है, पढ़िए उनकी संगिनी की ग़ज़लें

  मुमताज़ नाज़ां की आठ ग़ज़ल 1.हवा ए सर्द से चिंगारियां अक्सर निकाली हैं मेरे महबूब की यारो अदाएं भी निराली हैंचलो देखें हक़ीक़त रंग इन में कैसे भरती है तसव्वर में हज़ारों हम ने तस्वीरें बना ली हैंमोहब्बत का दफीना जाने किस जानिब है पोशीदा हज़ारों...
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बुधवार, 23 अक्टूबर 2013

हिंदी साहित्य को जाति व धर्म से निकलना होगा

फ्रैंक हुज़ूर @ शहरोज़ रांची के सेंट जेवियर कॉलेज के छात्र रहे मनोज कुमार  अब फ्रैंक हुज़ूर बन चुके हैं। लंदन में इनके लेखन के दीवानों की कमी नहीं हैं। क्रिकेटर से राजनेता बने इमरान खान पर लिखी उनकी किताब 'इमरान वर्सेस इमरान: द...
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मंगलवार, 22 अक्टूबर 2013

दंतेवाड़ा के दौर में

अदनान कफ़ील की क़लम से  दूर क्षितिज के पार उदित हुआ है अंतर्मन में सहसा एक विचार सोच रहा हूँ कुछ तो होगा, दूर क्षितिज के पार निर्मम धागों से अब तक है, गुथी हुई यह काया भाग रहा हूँ कब से जाने, फिर भी हूँ भरमाया समय पाश से बच न...
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रविवार, 20 अक्टूबर 2013

विकास की अंधी दौड़ में आम छत्तीसगढ़िया ग़ायब

ज़ुलेख़ा जबीं की क़लम से आदिवासी और स्त्रियों के बहाने तेजी से विकसित होते भारत में भौतिक विकास तो चरम की तरफ है मगर नागरिक विकास में भारत लगातार पिछड़ता जा रहा है। आज से 12 बरस पूर्व (लगभग 1करोड़ 55लाख 98 हजार की आबादी वाले छग में 66...
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बुधवार, 9 अक्टूबर 2013

गीतकार पिता पर कवयित्री बिटिया का लिखना

प्रेम शर्मा के गीतों की फुलवारी का खिल उठना ऋतुपर्णा मुद्राराक्षस की क़लम से  प्रेम शर्मा कबीरपंथी गीतकार और पढ़ने-लिखने के बेहद शौक़ीन।  घर के माहौल का असर ही था कि विज्ञान की छात्रा होने के बावजूद साहित्य-पठन-पाठन में...
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सोमवार, 7 अक्टूबर 2013

सुकून का लम्‍हा कि जागती सी एक रात

रश्‍मि शर्मा की  दस कविताएँ अभि‍शप्‍त आत्‍माओं की नींदफि‍र बीती एक रातध्रुव तारे से आंख मि‍लातेचांद को बादलों तलेदेखते ही देखते छुप जातेतुम्‍हारी भेजी नींद कोदेखा रूठ कर दूर जातेऔर अब सुबहआंखों की कालि‍मा मेंढूंढ रही हूंएक सुकून...
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गुरुवार, 3 अक्टूबर 2013

केशव तिवारी की कविताएँ

  डरडर कहीं और थामैं कहीं और डर रहा थाडर उस जर्जर खड़ेपेड़ की छाँव में थाऔर मैं धूप से  डर रहा था दुनिया भर की तमामपवित्र किताबेंभय और आतंक सेभरी पडी थींऔर मैंअपने सबसे डरे समय मेंउन्ही को पढ़ रहा था।   मैं इन ठंडी किताबों...
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(यहाँ पोस्टेड किसी भी सामग्री या विचार से मॉडरेटर का सहमत होना ज़रूरी नहीं है। लेखक का अपना नज़रिया हो सकता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान तो करना ही चाहिए।)