बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

बुधवार, 27 जुलाई 2011

२५ वर्षों से निकाल रहा धोबी हस्तलिखित अख़बार

मुक्तिबोध का मेहतर गौरी शंकर रजक  गुंजेश दुमका से  सब जानते हैं कि झारखंड भारत गणराज्य का एक राज्य है। उनमें कुछ जानते होंगे कि दुमका इस राज्य की उपराजधानी है। लेकिन ज़्यादातर लोगों को...
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स्खलित होता समाज -- अपने ही हाथों में

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गुरुवार, 14 जुलाई 2011

आतंक के विरुद्ध जिहाद!

देश के लिए कुर्बान मुजाहिदीनों को सलाम! पाठक चौंक रहे होंगे । मैं क्या बेवकूफाना हरकत कर रहा हूँ.सच मानिए देश में हुई अब तक की तमाम आतंकी घटनाओं में  उनसे जूझते हुए,  लड़ते हुए जामे-शहादत पी जानेवाले वो तमाम जांबाज़ मुल्क...
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शनिवार, 9 जुलाई 2011

मैन ऑफ इटर अब बन गया शिवभक्त

हस्तरेखाएं देख अब दूसरे का भविष्य बांच रहे हैं मनातू  मौआर सतर के  दशक  में बोलती थी तूती आदमखोर के नाम से कुख्यात इस सामंत पर लगे थे बंधुआ मजदूरी कराने के आरोप गांववालों पर लगाए कर और जुर्माने जमीन हड़प कर खड़ा किया था साम्राज्य सैयद शहरोज कमर, मनातू से लौटकर कलाइयों पर रुद्राक्ष का कलेवा, गले में दमकती अनगिनत मालाएं। लेकिन ...
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बुधवार, 6 जुलाई 2011

बिलकुल एक-सी होती हैं लड़कियाँ

         संध्या नवोदिता की क़लम से चार कविताएँ  जिस्म ही नहीं हूँ मैंजिस्म ही नहीं हूँ मैं कि पिघल जाऊँ तुम्हारी वासना की आग में क्षणिक उत्तेजना के लाल...
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सोमवार, 4 जुलाई 2011

किसका कसूर है कि कैसा निज़ाम ए दस्तूर है .संदर्भ फारबिसगंज

क्या बिहार में मुसलमान होना गुनाह है ?????? संदीप मौर्य की क़लम से आज के बदलते दौर में यह सवाल संभवतः कई सवालों को जन्म देता है। मसलन क्या भारत वाकई में धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र नहीं है? अथवा क्या भारत के मुसलमानों को जीने का अधिकार...
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(यहाँ पोस्टेड किसी भी सामग्री या विचार से मॉडरेटर का सहमत होना ज़रूरी नहीं है। लेखक का अपना नज़रिया हो सकता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान तो करना ही चाहिए।)