बेरुखी के साथ सुनना दर्दे दिल की दास्तां
वह कलाई में तेरा कंगन घुमाना याद है।
वक्ते रुख्सत अलविदा का लफ्ज कहने के लिए
वो तेरे सूखे लबों का थरथराना याद है।
26 जनवरी की सुस्त शाम आहिस्ता आहिस्ता मोहब्बत के शबनम में घुलती चली गई। दिलोदिमाग में पैवस्त होते हुए शब्दों ने रूह को जमकर सुकून बख्शा। इन बातों की एक खास वजह थी, गजल गायकी के पर्याय...
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अजानों का भजनों से है रिश्ता पुराना
गिरिडीह से 40 किमी दूर खड़गडीहा में आप ज्योंही दाखिल होते हैं, यह एहसास मजबूत होता है कि अजानों का भजनों से है रिश्ता पुराना। यहीं आपका परिचय मुल्क की उस साझा विरासत से होता है, जिसका एक सिरा संत साईं बाबा, कबीर, गुरुनानक, बुल्लेशाह तो दूसरा सिरा रहीम, रसखान और रसलीन की जोगियाना व कलंदराना परंपरा तक...
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शाहनवाज मलिक की क़लम से
उत्तर प्रदेश स्थित सिद्धार्थनगर जिले के दो गांव अल्लापुर और भगवानपुर देश के अन्य गांवों की तरह होते हुए भी एक खास पहचान रखते हैं। अल्लापुर की लगभग पूरी आबादी हिंदू है, वहीं भगवानपुर में 90 फीसदी मुसलमान परिवार हैं। इन गांवों के सिर्फ नाम ही नहीं, निवासियों के रीति-रिवाज, विचार और काम भी सांप्रदायिक सद्भाव की अद्भुत...
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रांची। ओरमांझी प्रखंड के कुटे बाजार से जब दायीं ओर सर्पीली सड़क मुड़ती है, तो आजादी के बाद हुए विकास की कलई खुल जाती है। यह भी पता चलता है कि हम अपनी विरासत को संजोए रख पाने में कितने असमर्थ साबित हुए हैं। यह गांव है खुदिया लोटवा, 8 जनवरी 1858 को देश की मुक्ति के लिए कुरबान हुए शहीद भिखारी का गांव। उनकी मजार और उनके परिजन इस गांव की तरह ही बदरंग हैं।...
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(यहाँ पोस्टेड किसी भी सामग्री या विचार से मॉडरेटर का सहमत होना ज़रूरी नहीं है। लेखक का अपना नज़रिया हो सकता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान तो करना ही चाहिए।)