बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

गुरुवार, 27 जनवरी 2011

ग़ज़लों की गुलाम हुई रांची

बेरुखी के साथ सुनना दर्दे दिल की दास्तां वह कलाई में तेरा कंगन घुमाना याद है। वक्ते रुख्सत अलविदा का लफ्ज कहने के लिए वो तेरे सूखे लबों का थरथराना याद है।   26 जनवरी की सुस्त शाम आहिस्ता आहिस्ता मोहब्बत के शबनम में घुलती चली गई। दिलोदिमाग में पैवस्त होते हुए शब्दों ने रूह को जमकर सुकून बख्शा। इन बातों की एक खास वजह थी, गजल गायकी के पर्याय...
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बुधवार, 19 जनवरी 2011

झारखंड के साईं बाबा या कहिये कबीर

अजानों का भजनों से  है रिश्ता पुराना गिरिडीह से 40 किमी दूर खड़गडीहा में आप ज्योंही दाखिल होते हैं, यह एहसास मजबूत होता है कि अजानों का भजनों से  है रिश्ता पुराना। यहीं आपका परिचय मुल्क की उस साझा विरासत से होता है, जिसका एक सिरा संत साईं बाबा, कबीर, गुरुनानक, बुल्लेशाह तो दूसरा सिरा रहीम, रसखान और रसलीन की जोगियाना व कलंदराना परंपरा तक...
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रविवार, 16 जनवरी 2011

भगवानपुर में मुसलमान अल्लापुर में हिंदू

शाहनवाज मलिक  की क़लम से   उत्तर प्रदेश स्थित सिद्धार्थनगर जिले के दो गांव अल्लापुर और भगवानपुर देश के अन्य गांवों की तरह होते हुए भी एक खास पहचान रखते हैं। अल्लापुर की लगभग पूरी आबादी हिंदू है, वहीं भगवानपुर में 90 फीसदी मुसलमान परिवार हैं। इन गांवों के सिर्फ नाम ही नहीं, निवासियों के रीति-रिवाज, विचार और काम भी सांप्रदायिक सद्भाव की अद्भुत...
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रविवार, 9 जनवरी 2011

शहीदों का गांव, आज भी बदहाल

रांची। ओरमांझी प्रखंड के कुटे बाजार से जब दायीं ओर सर्पीली सड़क मुड़ती है, तो आजादी के बाद हुए विकास की कलई खुल जाती है। यह भी पता चलता है कि हम अपनी विरासत को संजोए रख पाने में कितने असमर्थ साबित हुए हैं। यह गांव है खुदिया लोटवा, 8 जनवरी 1858 को देश की मुक्ति के लिए कुरबान हुए शहीद भिखारी का गांव। उनकी मजार और उनके परिजन इस गांव की तरह ही बदरंग हैं।...
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(यहाँ पोस्टेड किसी भी सामग्री या विचार से मॉडरेटर का सहमत होना ज़रूरी नहीं है। लेखक का अपना नज़रिया हो सकता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान तो करना ही चाहिए।)