(भारत सरकार के एक महत्वपूर्ण विभाग में अधिकारी
रमेश राज आनंद का जन्म १२ अगस्त १९६० को उ प्र के
मुज़फ्फर नगर में हुआ .आप भूगोल में स्नातकोत्तर हैं ।
जंग लगे पत्थर आपका कविता संग्रह है ।)
इश्क़ रहज़न न सही इश्क़ के हाथों फिर भी
हमने लुटती हुई देखि हैं बरातें अक्सर
हमसे इक बार भी जीता है न जीतेगा कोई
वो तो हम जान के खा लेते हैं मातें अक्सर
उनसे पूछो कभी चेहरे भी पढ़े हैं तुमने
जो किताबों की किया करते हैं बातें अक्सर
हमने उन तुंद हवाओं में जलाएं हैं चिराग़
जिन हवाओं ने उलट दी हैं बिसातें अक्सर
रमेश राज आनंद का जन्म १२ अगस्त १९६० को उ प्र के
मुज़फ्फर नगर में हुआ .आप भूगोल में स्नातकोत्तर हैं ।
जंग लगे पत्थर आपका कविता संग्रह है ।)
इश्क़ रहज़न न सही इश्क़ के हाथों फिर भी
हमने लुटती हुई देखि हैं बरातें अक्सर
हमसे इक बार भी जीता है न जीतेगा कोई
वो तो हम जान के खा लेते हैं मातें अक्सर
उनसे पूछो कभी चेहरे भी पढ़े हैं तुमने
जो किताबों की किया करते हैं बातें अक्सर
हमने उन तुंद हवाओं में जलाएं हैं चिराग़
जिन हवाओं ने उलट दी हैं बिसातें अक्सर
1 comments: on "रमेश राज आनंद की ग़ज़ल"
shukriya shahroz bhai,aapke zariye achha padhne ko mil raha hai.han agar word verificatin ka tag hata den to behtar hoga
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रचना की न केवल प्रशंसा हो बल्कि कमियों की ओर भी ध्यान दिलाना आपका परम कर्तव्य है : यानी आप इस शे'र का साकार रूप हों.
न स्याही के हैं दुश्मन, न सफ़ेदी के हैं दोस्त
हमको आइना दिखाना है, दिखा देते हैं.
- अल्लामा जमील मज़हरी