(मुराद नगर में १९ फ़रवरी १९७४ को जन्मे जाकिर दिल्ली में
एक विज्ञापन एजेंसी में कॉपी राईटर हैं .विज्ञान में स्नातक
इस युवा रचनाकार ने हिन्दी में स्नातकोत्तर करने के बाद
जामिया मिल्लिया से जन -संचार और सर्जनात्मक लेखन
में डिप्लोमा हासिल किया ।)
सपनों पर प्रतिबन्ध नहीं
अच्छा -बुरा
छोटा -बड़ा
कलर या ब्लैक एंड व्हाइट
जैसी मर्ज़ी देखो
आँखें तुम्हारी हैं
और नींद भी
सपने भी तो तुम्हारे ही हैं
साकार हों ये जिद क्यों
जिंदगी को नींद में नहीं
जगी हालत में देखो
सपनों से उलट
लेकिन खूबसूरत हैं
सपने तालाब हैं
और जिंदगी
संघर्षों के बहाव में
बहने वाली
नदी का नाम है .
6 घंटे पहले
2 comments: on "जाकिर हुसैन की कविता"
A well thought,Well carved and full of life realities...................good work!!! Keep up the good show......looking for the next!!!!
sapne waqyi sapne hote hain sabke jine ka sahara ab kam se kam un par to patibandh na hi lage behatar hai
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रचना की न केवल प्रशंसा हो बल्कि कमियों की ओर भी ध्यान दिलाना आपका परम कर्तव्य है : यानी आप इस शे'र का साकार रूप हों.
न स्याही के हैं दुश्मन, न सफ़ेदी के हैं दोस्त
हमको आइना दिखाना है, दिखा देते हैं.
- अल्लामा जमील मज़हरी