बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

बुधवार, 25 मई 2016

आईआईटीयन चंद्रशेखर बने स्वामी पशुपतिनाथ


















 सैयद शहरोज़ क़मर की क़मर से

सनातन परंपरा की अलौकिकता के महाकुंभ सिंहस्थ उज्जैन में देश-दुनिया की विभिन्न रंगत अकार ले रही है। श्रद्धालुओं से घिरे साधु-संतों में कई ऐसे हैं, जो कभी बिजनेस मेन रहे, तो कोई बड़े सरकारी अफसर। सिद्धवट मंगलनाथ के पास बेतरतीब बढ़ी हुई दाढ़ी में भगवावस्त्र धारे एक युवा से भेंट होती है, जो स्कूल-कॉलेज के छात्र-छात्राओं के बीच अप दीपो भव: का प्रचार-प्रसार कर रहे थे। बीच-बीच में जब उन्होंने धाराप्रवाह अंग्रेजी में समाज और राजनीति पर टीका-टिप्पणी की, तो उनकी विद्वता का पता चला। पता यह भी चला कि आईआईटी कानपुर से 2003 में पासआउट यह चंद्रशेखर राजपुरोहित हैं। जिनका नया परिचय है स्वामी पशुपतिनाथ, पता देश-दुनिया का कोई भी कोना, जहां धर्म की भेड़चाल से तंग लोग अध्यात्मिक शांति तलाश रहे हों। बहुत ही मिन्नत के बाद यह युवा संन्यासी धीमे-धीमे लहजे में अपने बारे में बताना शुरू करता है। संकोच के इस दायरे में भी कई ऐसी बातें ज्ञात होती हैं, जो भौतिकवादी अंधकार में धवल मार्ग प्रशस्त करती हैं। वह युवा पीढ़ी से निराश नहीं। कहते हैं, अध्यात्मिक प्रगति समय के साथ परवान चढ़ती है। ईश्वरज्योति से आलोकित इस युवा संन्यासी का शेष समय नाभिकीय संरचना पर केंद्रित पुस्तक लिखने में गुजरता है। यूं उन्हें सियासत की वर्तमान उग्रता से बहुत चिढ़ है। खासकर धर्म के नाम पर विश्व में हो रही हिंसक घटनाएं उन्हें विचलित करती हैं। भारतीय संदर्भ में उन्होंने संघ पर आरोप लगाया है कि वो हिंदुओं की कई समाजिक और समाजिक संस्थाओं को खत्म करने पर तुला है। पर उन्हें विश्वास है कि उसके कट्‌टरवादी हिंदुत्व का जवाब आम भारतीय ही जल्द देंगे।

चित्तौड़गढ़ के राजपुरोहित रहे पूवर्ज
चंद्रशेखर उर्फ स्वामी पशुपतिनाथ के पूवर्ज चित्तौड़गढ़ राजघराने के राजपुरोहित रहे हैं। लेकिन चंद्रशेखर ने आईआईटी कानपुर से बीटेक इंजीनियरिंग की। शुरुआती पढ़ाई गुजरात के बड़ौदा और राजस्थान के पाली से की। जौधपुर से इंटर करने के बाद इनका चयन आईआईटी कानपुर के लिए हो गया। कानपुर से इंजीनियरिंग करने के बाद चंद्रशेखर ने इंडस्ट्रीयल पाटर्स के इंपोर्ट-एक्सपोर्ट का बिजनेस शुरू किया।

2006 में बनाई राजनीतिक पार्टी
मानस में उमड़ते-घूमड़ते समाजिक परिवर्तन के ज्वार के कारण चंद्रशेखर का मन व्यवसाय से उचाट हो गया। इस बीच उनकी मुलाकात मुंबई और कानपुर के पांच आईआईटीयंस अजित शुक्ला, अमित बिसेन, संघगोपालन वासुदेव, धीरज कुंभाटा और तन्मय राजपुरोहित से हुई। सभी ने मिलकर 2006 में लोक परित्राण नामक राजनीतिक दल का गठन किया। तमिलनाडु में विस चुनाव भी लड़े, पर हार गए।
अंत में अध्यात्म ही बना आश्रय
चंद्रशेखर सदैव शांति की खोज में लगे रहे। अचानक देश-भ्रमण पर निकल गए। कहते हैं कि उन्हें कोई सच्चा गुरु नहीं मिला। उन्होंने पशुपतिनाथ को ही अपना गुरु स्वीकार कर तपस्वी का भेष धारण कर लिया। उनका कहना है कि उन्होंने भैरवनाथ का साक्षात दर्शन किया है। वह सभी कुंभों के अलावा देश के नगर-कस्बों का भ्रमण करते रहते हैं। उद्देश्य एक ही है, युवाओं का अध्यात्म से परिचय कराना।


भास्कर के लिए लिखा गया








Digg Google Bookmarks reddit Mixx StumbleUpon Technorati Yahoo! Buzz DesignFloat Delicious BlinkList Furl

9 comments: on "आईआईटीयन चंद्रशेखर बने स्वामी पशुपतिनाथ "

QuickBooks Error Support Number ने कहा…

Nice Blog !
Our team at QuickBooks Customer Service remains accessible 24/7 around the clock in an unprecedented moment of history.

Unknown ने कहा…

Nice Blog !
Our technical team at QuickBooks Support Phone Number makes sure to give you immediate relief from issues like QuickBooks Error 213.

ESLAM UWK ने कहा…

تقدم لك شركة استار وود مجموعة متنوعة من الاثاث المكتبي بمختلف الموديلات المودرن و الكلاسيك افضل شركة اثاث مكتبي في مصر تناسف الشركة الكثير من الشركات العاليمة .

एक टिप्पणी भेजें

रचना की न केवल प्रशंसा हो बल्कि कमियों की ओर भी ध्यान दिलाना आपका परम कर्तव्य है : यानी आप इस शे'र का साकार रूप हों.

न स्याही के हैं दुश्मन, न सफ़ेदी के हैं दोस्त
हमको आइना दिखाना है, दिखा देते हैं.
- अल्लामा जमील मज़हरी

(यहाँ पोस्टेड किसी भी सामग्री या विचार से मॉडरेटर का सहमत होना ज़रूरी नहीं है। लेखक का अपना नज़रिया हो सकता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान तो करना ही चाहिए।)