बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

शनिवार, 29 अगस्त 2015

कैसे बढ़ी मुसलमानों की आबादी और हिंदुओं की घटी































रक्त रंजित गोधरा, रस रूप मंथन करे
शव की उड़ती धूल, शिव का महिमा मंडन करे



गुंजेश की क़लम से

ठीक है, मेरी गणित कमज़ोर है। लेकिन फिर भी मैं समझना चाहता हूँ कि जब किसी हिन्दू घर में कोई मुसलमान बच्चा पैदा नहीं हो सकता तो फिर, मुसलमानों की आबादी बढ़ी कैसे, और कैसे हिंदुओं की घटी। 2001 में हिंदुओं की आबादी 82.75 करोड़ थी जो 2011 में 96.63 करोड़ हो गई है। फिर सरकार इसे घटा हुआ क्यों बता रही है? क्या वृद्धि में प्रतिशत कमी जनसंख्या में भी कमी है? 2001 के मुक़ाबले 2011 में 13 करोड़ से ज़्यादा हिन्दू बढ़े हैं। वहीं 2001 में आबादी का 13.4 प्रतिशत हिस्सा रहे मुसलमानों की आबादी 2001 में 13.8 करोड़ थी जो अब 3.42 करोड़ बढ़ कर 17.22 करोड़ हो गई है। इस लिहाज से देखा जाय तो 2001 से 2011 के बीच जहां मुसलमों की आबादी में 24.78 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है वहीं हिन्दू भी इस अवधि में 15.7 प्रतिशत बढ़े हैं। जनसंख्या में 2.3%, 1.7%, 0.7%, 0.4% की हिस्सेदारी रखने वाले धर्मावलंबी जो क्रमशः ईसाई, सिख, बौद्ध, जैन हैं की संख्या में भी क्रमशः 15.5%, 8.4%, 6.1% और 5.4 की बढ़ोतरी हुई है। तो गज़ब देश के देश भक्त नागरिकों, एक बात तो पक्की है कि किसी भी कौम की संख्या कम नहीं हुई है, प्रतिशत वृद्धि में कम-बेसी हुआ है। देश की जनसंख्या बढ़ी है तो इसमें हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध, जैन सबका योगदान है और अभूतपूर्व योगदान है।
इतना ही नहीं, एक आंकड़ा देखिये। यह दशक वार जनसंख्या में प्रतिशत वृद्धि का आंकड़ा है। जो यह भी बताता है कि हिन्दू बनाम मुसलमान आबादी में प्रतिशत वृद्धि के मुक़ाबले में, हिन्दू कभी आगे नहीं रहे, मतलब यह ब्रेकिंग न्यूज़ वाला मामला नहीं है। ये आंकड़े साथ ही यह भी बताते हैं कि दशक दर दशक, हिन्दू बनाम मुसलमान आबादी में प्रतिशत वृद्धि का अंतर लगातार काम होता जा रहा है।

वर्ष 1961 की जनगणना के मुताबिक, 1951 के मुक़ाबले मुस्लिम आबादी में 32.49% की वृद्धि हुई थी तो हिन्दू आबादी में 20.76 % की। 1971 में 61 के मुक़ाबले मुस्लिम आबादी में 30.92 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी और हिन्दू आबादी 23.68 की औसत से बढ़ी थी। 1981 में 71 के मुक़ाबले मुस्लिम आबादी 30.78 प्रतिशत की दर से बढ़ी तब हिन्दू आबादी की बढ़ोतरी दर 24.07 प्रतिशत थी। 81 के मुक़ाबले 1991 में हिन्दू आबादी 22.71 प्रतिशत से बढ़ी तो मुस्लिम आबादी की वृद्धि दर 32.88% रही थी। 2001 में हिन्दू आबादी 19.92 प्रतिशत की रफ्तार से बढ़ी, 1991 के मुक़ाबले, तो इस दौरान मुस्लिम आबादी में वृद्धि दर 29.52 प्रतिशत रही। 2001 के मुक़ाबले 2011 में हिन्दू आबादी की वृद्धि दर 16.76 प्रतिशत रही तो मुस्लिम आबादी में यह 24.60 दर्ज़ की गई। तो जिम्मेदार नागरिकों अगर हम पिछले 50 साल के आंकड़ों का विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि मुस्लिम आबादी के प्रतिशत वृद्धि में भी कमी आ रही है। लेकिन, बहुमत वाले भाई लोगों जनगणना 2011 के आंकड़ों से आप लोगों को चिंतित तो होना चाहिए क्योंकि सेक्स रेशिओ (लिंगानुपात) के पेरामीटर पर देखें तो मुसलमाओं में जहां 951 महिला प्रति हज़ार पुरुष है, हिंदुओं में यह 939 महिला प्रति हज़ार पुरुष है।


अब आइये, गणित के जंजाल से निकल कर सामाजिक विज्ञान के समर में चलें। पहली बात जो सरकारी विज्ञापन से चलने वाले देश के प्रमुख हिन्दी समाचार पत्र आपको नहीं बताएँगे वह यह कि ये आंकड़े ऐसे क्यों हैं? क्या धर्म आधारित जनगणना का कोई ताल्लुक सीधे धर्म से है भी? क्या जनसंख्या के बढ़ने का सीधा ताल्लुक, यह एक मात्र ताल्लुक धर्म से है? यह इसके कुछ अधिक गहरे सामाजिक आर्थिक कारण हैं। फिलहाल मैं सच्चर कमेटी के द्वारा उठाए गए समस्याओं और उसके सुझावों पर नहीं जाऊंगा। पर एक ज़रा पढ़िये कि द हिन्दू अख़बार को दिये बयान में अंतरराष्ट्रीय जनसंख्या विज्ञान संस्थान, मुंबई के प्रोफेसर और जनसंख्याविद P. Arokiasamy क्या कहते हैं। P. Arokiasamy कहते हैं कि यह एक सामान्य रुझान है। शिक्षा का सत्र बढ़ने और परिवारों की जरूरतों में बदलाव की वजह से जनसंख्या की वृद्धि दर में कमी आना स्वाभाविक और उम्मीद के मुताबिक है। उन समुदायों में जो ज़्यादा शिक्षित हैं और जिनतक स्वास्थ्य सुविधाओं की बेहतर पहुँच है, वहाँ जनसंख्या वृद्धि दर में कमी आई है। P. Arokiasamy केरल का उदाहरण हमारे सामने रखते हैं और बताते हैं कि केरला में मुसलमानों की जनसंख्या वृद्धि दर पूरे राज्य में किसी और समुदाय के मुक़ाबले सबसे कम है। मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना....


आखिर मैं इन आंकड़ों पर इतना लंबा क्यों लिख रहा हूँ, क्योंकि मैं डरा हुआ हूँ, क्योंकि मुजफरनगर अभी बांकी है, क्योंकि इस देश में अभी बीजेपी की सरकार है, जो आरएसएस, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की राजनीतिक इकाई है, आरएसएस जो भारत को एक हिन्दू राष्ट्र की तरह देखना चाहता है, और अभी अभी मैं जमशेदपुर को जलते- झुलसते महसूस किया है। मैं सोच रहा हूँ कि सरकारें और संस्थाएं आंकड़ों से जो प्रामाणिकता हासिल करती हैं, उससे कैसे बचा जाय। खास तौर से, ऐसे गज़ब देश में। जहां दो लोग आपसी बातचीत में भी अपनी बात मनवाने के लिए तुरंत किसी तीसरे अंजान व्यक्ति से कंसेंट लेते भी नहीं घबराते हैं ; क्यों भाई साहब सही कह रहा हूं न !!, और यह सिर्फ इसलिए होता है कि बंदे के पास इतना पेशेंस नहीं होता कि वह अपनी बात के पक्ष में जिरह कर सके। यह राजनीति का “फैसला ऑन द स्पॉट काल” है, यह राजनीति का आरएसएस काल है। अभी तो सिर्फ आंकड़े आए हैं। अब गली मोहल्लों में चर्चा भी पहुंचेगी कि हिन्दुत्व पर खतरा है। हिन्दू अपनी संख्या न भी बढ़ाएँ तो भी हिंदुओं को मुसलमानों की संख्या कम करने पर सोचना होगा, ऐसी बातें फैलाई जाएंगी। मैं डरा हुआ हूँ कि नेक लेकिन असहिष्णु लोगों से भरा यह समाज इन अफवाहों से कैसे लड़ेगा, अफवाहों से लड़ेगा या अफवाहों के चक्कर में लड़ेगा। मैं डरा हुआ हूँ इसलिए क्योंकि 60 प्रतिशत साक्षारता वाले देश में, किसी भी बात को धार्मिक उन्माद और फिर दंगों का रूप दिया जा सकता है। सरकार और मीडिया को जिस तैयारी के साथ ऐसे आंकड़े जारी करने चाहिए वो तैयारी नहीं की गई, जनता तक पूरी और साफ-साफ जानकारी नहीं दी गई। मोटा-मोटी जानकारी, ऐसे मामलों में नीमहकीम से भी ज़्यादा ख़तरनाक हो सकती है। इसलिए मैं अपील करता हूँ, अगर आप वाक़ई हिन्दू या मुसलमान होकर सोचते हैं तो इन आंकड़ों के हिस्ट्री, जियोग्राफी, एकोनोमिक्स, पोलिटिकल साइंस, फ़िजिक्स, केमेस्ट्री सबके बारे जानिए फिर राय बनाइए।वरना मत सुनिए कि कौन सी सरकार कौन सा आंकड़ा जारी कर रही है।




(रचनाकार -परिचय:
जन्म: बिहार झरखंड के एक अनाम से गाँव में 9 जुलाई 1989 को
शिक्षा: वाणिज्य में स्नातक और जनसंचार में स्नातकोत्तर महात्मा गांधी अंतर राष्ट्रीय हिंदी विश्व विद्यालय, वर्धा से। प्रभात खबर व भास्कर से संबद्ध रहे।
सृजन: अनगिनत पत्र-पत्रिकाओं व वर्चुअल स्पेस में लेख, रपट, कहानी, कविता
संप्रति: हिंदुस्तान के भागलपुर संस्करण के संपादकीय विभाग से संबद्ध
संपर्क: gunjeshkcc@gmail.com )


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2 comments: on "कैसे बढ़ी मुसलमानों की आबादी और हिंदुओं की घटी "

Unknown ने कहा…

Parshansiye h ye lekh kintu mere anusaar sarkar se Iss lekh men bhi shikhsha badhao desh bacho andolan ka nara dia ja sakta thha.
Mere anusaar kuchh % conversion ki wajah se bhi ghatti badhti hain

Unknown ने कहा…

Parshansiye h ye lekh kintu mere anusaar sarkar se Iss lekh men bhi shikhsha badhao desh bacho andolan ka nara dia ja sakta thha.
Mere anusaar kuchh % conversion ki wajah se bhi ghatti badhti hain

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