
शहनाज़ इमरानी की कविताएं
हथोड़े की आवाज़ गूंजती है एक वक़्त ऐसा भी था जब दरख्त लोगों का सारा सच सुनते थे दरख्तों के तनों में बने लकड़ी के कानों में सब कहा करते थे दरख्तों के पास अनगिनत राज़ जमा हो गए थे और वो कुल्हाड़ियों से नहीं डरते...
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अमित राजा की क़लम से कहानी: बारह साल का बुड्ढा
हालांकि देश के बीसियों मनभावन जगहों की मैंने सैर की है। मगर जमशेदपुर का महज़ चार दिनों का प्रवास स्मृति में अजीब तरह से चस्पां हो गया है। जमशेदपुर की सैर से...
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अभिषेक तिवारी का कार्टून साभार
शहरोज़ की दो अख़बारी फूलझड़ी
कहीं सच तुम बदल तो नहीं जाओगे
भैया की धडक़नें इनदिनों शहर के मौसम की तरह बदल रही हैं। दरअसल उनकी प्रेयसी पर खतरे के बादल मंडराने लगे हैं। इसके लिए भाप...
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ब्लॉगर्स की कविताओं की रंगत बेशुमार @ शब्द संवादसैयद शहरोज क़मर की क़लम से
'अपने दुपट्टे को बांध दूंगीउस पक्की सडक़ के कि नारे वालेबरगद की ऊंची शाख पर परचम की तरह।' इसे पढ़ते हुए...
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