बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

शुक्रवार, 31 जनवरी 2014

मुल्क की पहली पसमांदा मुस्लिम महिला राज्य सभा में
















 कहकशां परवीन के रांची स्थित घर  में जुमा मुबारक  ही बनकर आया

हाजी जैनुल हक  रांची के  पहले डिप्टी मेयर बने तो उनके  विजयी जुलूस में एक नन्ही सी बच्ची इठला-इठलाकर खूब नारे लगा रही थी। तब उसके  अब्बू मो. सगीर उद्दीन ने पूछा, बेटा क्या तुम भी ऐसा बनना चाहती हो। कक्षा छह में पढऩे वाली बच्ची का  चेहरा लाल हो गया। वह जोर से बोली, 'जी! अब्बू।'  रिसालदार नगर, डोरंडा की  यह बच्ची कहकशां परवीन आज जदयू के  टिकट पर बिहार से राज्यसभा सांसद निर्वाचित हुई हैं। वह राज्य सभा में पहुँचने वाली प[पहली पसमांदा मुस्लिम महिला हैं.  वहीं नानी के घर पर रहकर पढ़ाई कर रही उनकी बेटियां स्कूल से खिलखिलाती हुई घर में दाखिल होती हैं.  बड़ी बेटी अक्सा नसीम छठवीं में पढ़ती हैं उसकी  आइएस बनने की  तमन्ना है।  वहीं तीसरी की छात्रा छोटी बेटी तूबा नसीम आइपीएस बनना चाहती हैं।
सगीर के घर  फातिमा मंजिल में शुक्रवार सच में जुमा मुबारक  बनकर आया। मोहल्ले से लेकर खानदान के लोग यहां जुटे हैं। मिठाइयों को खाने व खिलाने का  कमपटीशन है मानो। पप्पू गद्दी, बिलाल नईम, शादाब, नादिया, अफीफा सभी उत्साहित हैं। वहीं कहकशां की अम्मी हबीबा की खुशी उनके  आंचल से बार-बार लिपट जाने को बेताब है। कहती हैं, कहकशां बचपन से ही पढऩे में तेज थी। दो बेटे और दो बेटियों को तालीम देने में हमने कोई कोताही नही बरती। न ही किसी तरह का भेदभाव किया। बड़ी बेटी होने के  कारण कहकशां लाडली जरूर रही, पर उसने उसका गलत फायदा नही उठाया। रांची में उसे 1988 में तालीमी अवार्ड से नवाजा गया। वहीं रांची वीमेंस कालेज से उसने उर्दू में अव्वल नंबरों से ऑनर्स किया। शादी के बाद वह भागलपुर, बिहार चली गई। पर उसके शौहर डॉ. नसीम उद्दीन ने उसकी सामाजिक  रुचियों को पंख ही दिया। कहंकशां भागलपुर की मेयर बनी। फिर बिहार महिला आयोग की अध्यक्ष। बीच में कहलगांव उपचुनाव में जदयू के  टिकट पर उसने चुनाव भी लड़ा। बहुत ही कम मतों से जीत का खिताब उससे दूर रहा। लेकिन अब तो उनकी  बेटी संसद में बोलेगी, यह सुनकर उनके  ललाट पर रेखाएं बन खुशियां बिखर जाती हैं।
आसमान में सितारे जड़ सकती हैं लडकियां
फोन पर बात करते हुए कहकशां के  आत्मविश्वास को  महसूस किया जा सकता है। कहती हैं कि तालीम से ही उजियारा आता है। क़ौम , राज्य, देश का  विकास होता है। लड़कियों को  मौक़ा  मिले तो वह कल्पना चावला जैसे आसमान में सितारे जड़ सकती हैं। अपने इस सफ़र के लिए वो अपने शौहर के साथ और उनकी हौसला अफ़ज़ाई को नहीं भूलती हैं. वहीँ माँ-बाप के साथ सुसराल से मिले सहयोग को भी याद करती हैं. कहती हैं कि कभी किये नेक कामों का असर या दुआएं आपकी कामयाबी का सबब ज़रूर बनती हैं. उन्होंने बिहार के सीएम नीतीश कुमार की खूब प्रशंसा की. रांची का जिक्र आने पर चहकती हैं, बहुत याद आता है अपना शहर।

दैनिक भास्कर के पहली फ़रवरी 2014 के अंक में प्रकाशित 




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1 comments: on "मुल्क की पहली पसमांदा मुस्लिम महिला राज्य सभा में "

Arun sathi ने कहा…

सराहनीय पहल

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- अल्लामा जमील मज़हरी

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