बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

रविवार, 20 अक्तूबर 2013

विकास की अंधी दौड़ में आम छत्तीसगढ़िया ग़ायब














ज़ुलेख़ा जबीं की क़लम से

आदिवासी और स्त्रियों के बहाने
तेजी से विकसित होते भारत में भौतिक विकास तो चरम की तरफ है मगर नागरिक विकास में भारत लगातार पिछड़ता जा रहा है। आज से 12 बरस पूर्व (लगभग 1करोड़ 55लाख 98 हजार की आबादी वाले छग में 66 लाख 36 हजार औरतें, और 67लाख 11 हजार मर्द ) जब एक राज्य के रूप में छत्तीसगढ़ का उदय हुआ, तो उसकी बड़ी वजह भूगर्भीय खनिज संपदा के साथ ही इस क्षेत्र की विशेष सामाजिक, सांस्कृतिक पहचान के साथ ही यहां की आदिवासी बहुलता भी थी। छत्तीसगढ़ की 32 फीसद आबादी आदिवासियों की है। विकास के नाम पर राज्य में आदिवासियों/आम जनता खासकर औरतों की जमात को जिस तरह लाठी, गोली और फौज से दबाया जा रहा है, जिस तरह से औरतों/बच्चियों पर किए जा रहे उत्पीड़न, शोषण, हिंसा व अत्याचारों में नित नए आपराधिक (नौकरशाही, राजनीतिज्ञों) आयाम जुड़ रहे हैं, सरकारी हिंसा के खिलाफ़ उठने वाली हर आवाज को देशद्रोह के नाम पर जिस तरह खामोश किया जा रहा है, राज्य में जिस तरह भू-गर्भीय संसाधनों की लूट खसोट मची है, और खूनी अ-सामाजिक तत्वों की जो नस्ल पैदा की जा रही है उसे देखकर यही लगता है कि आने वाले कई दशक आदिवासियों के खात्मे और अगली पीढ़ीयों के लिए संकट भरे होंगे।

प्रदेश के लिए कृषि तीन चैथाई आबादी का जीवनआधार है। यह अकल्पनीय लगता है कि राज्य की नदियों का पानी खेती को सींचने के बजाए उद्योगों के लिए मुनाफा पैदा कर रहा है और इसके लिए खनिजों की अंधाधुंध खुदाई करके जंगलों की जैव विविधता का खात्मा किया जा रहा है।  राज्य में करीब 70,000 मेगावाट बिजली उत्पादन के लिए एमओयू किए जा चुके हैं, ताप विद्युत परियोजनाएं निर्माणाधीन हैं।  (जबकि 2012 की केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण की रिपोर्ट के मुताबिक 2022 में पीक लोड 5800 मेगावाट अनुमानित है.) इसके लिए 70,000 एकड़ जमीन, 33करोड़टन कोयला, खनन के लिए 1.5 हेक्टेयर वनभूमि,  और 2669 घनमिलियन पानी प्रतिवर्ष खर्च होगा जिससे राज्य मंे 5.33 लाख हेक्टेयर जमीन की सिंचाई हो सकती है (कमेटी आन इन्टीग्रेटेड इंफ्रास्ट्रक्चर डेव्हलपमेंट रिपोर्ट-छग सरकार) यहां विकास का मतलब बड़े बड़े विद्युत प्लांट, इनके अफसरों के लिए आलीशान रिहाइशी कांप्लेक्स,चमचमाती चैड़ी सड़कें, आलीशान शापिंग माल, हर समय उपलब्ध रहने वाली बिजली, उससे चलने वाले उपकरण, सभी चीजें आसानी से मुहैया कराई जा रही है. ताकि अमीरों को मुनाफा कमाने के रास्ते फराहम किए जा सकें। इसके लिए थोक में लोगों को जबरदस्ती उनकी जमीन, जंगल, जल से उन्हें बेदखल किया जा रहा है, जो विरोध कर रहे हैं उन्हें नक्सली, राजद्रोही बताकर खामोश करने की कोशिशें की जा रही हैं, जो इससे भी नहीं डरते उन्हें फर्जी मुठभेड़ों में मार गिराया जा रहा है। इन परिवारों की औरतों से निपटने के लिए उनपे शारीरिक, मानसिक उत्पीड़न, यौन शोषण, बलात्कार, हत्या जैसे औज़ार इस्तेमाल किए जा रहे हैं.

आइये देखें छग में जन विकास का सच दिखाती सरकारी रिपोर्टस क्या कहती हैं
जीडीपी में पिछड़ापन-छत्तीसगढ़ का प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद 2012 में 46.743 था जबकि इसके साथ ही वजूद में आए उत्तराखंड का प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद 79.940रुपए है। तमाम दावों के बावजूद हकीकत ये है कि 2000 में नए बने 3 राज्यों में छत्तीसगढ़ दूसरे नंबर पर है, जबकि देश का औसत प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पादन 61,564 रु है। ये और बात है कि छग के सकल घरेलू उत्पादन की विकासदर अच्छी है लेकिन अर्थशास्त्रियों के मुताबिक अगर हम पिछडे हुए हैं तो केवल विकासदर (18.36)अधिक होने से कुछ नहीं होगा।
सर्वाधिक मदद पाने के बावजूद गरीबों का बढ़ना-  रिजर्व बैंक के मुताबिक देश में सर्वाधिक आर्थिक मदद (1,540रु) पाने वाले राज्यों में छत्तीसगढ़ भी शामिल है लेकिन राज्य में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाली जनसंख्या बढ़ती ही जा रही है।  रिजर्व बैंक के ताजा आंकड़ों के मुताबिक केंद्र से झारखंड (1,556) और उड़िसा(1,688) के साथ ही छग (1,540) को भी प्रतिवर्ष प्रतिव्यक्ति यह अनुदान मिलता है। उक्त तीनों राज्यों को प्रति व्यक्ति औसत अनुदान सबसे अधिक दिया जाता है, मगर छग में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाली आबादी का ग्राफ बढ़ता ही जा रहा है। वर्तमान में छग की 40.1 फीसदी जनसंख्या गरीबी रेखा के नीचे वास कर रही है जबकि राज्य में वनसंपदा तथा प्राकृतिक संसाधन भरपूर हैं. राज्य में  38,200मिलियनटन कोयला है। 30,500मिलियनटन लौह अयस्क है। 30,500 मिलियनटन चूना पत्थर है,  600 मिलियनटन डोलोमाइट है। 96 मिलियनटन बाक्साइट है। इन सबके अलावा राज्य में हीरा, एलेक्जेंड्राइट, सोना और कोरंडम भी प्रचूर मात्रा में उपलब्ध है। छग सरकार का दावा है कि सरकारी राजस्व का सिर्फ 32 फीसदी प्रशासन पे खर्च किया जाता है। बाक़ी का 68फीसदी विकास पे खर्च किया जाता है। लेकिन हकीकत में सरकार का ये दावा छग की (40.01फीसदी) गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की लगातार बढ़ती जनसंख्या के सामने कोरा झूठ साबित हो रहा है. (जबकि इस समय देश में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाली आबादी महज 27.5फीसद है).
पीडीएस की स्थिति- एनएसएस के आंकड़ों के मुताबिक जहां 2004-05 में केवल आधे गरीब परिवारों से पास ही बीपीएल कार्ड था।  वहीं इस बरस के दौरान छग में आधा अनाज ही लोगों तक ही पहुंचता था. जिस राज्य की कम से कम दो तिहाई आबादी गरीबी में जी रही हो उस राज्य की विधानसभा में 23 करोड़पति विराजमान हों और 37 लाख गरीब परिवारों के लिए सस्ते अनाज की योजना राज्य में गरीबी की व्यापकता को व्यक्त करती है।
वित्तीय समावेशन में पिछड़ापन- वित्तीय सेवाओं के मामलें में छत्तीसगढ़ अच्छी हालत में नही है अर्थशास्त्र की भाषा में कहें तो वित्तीय समावेशन के नजरिए से छग राष्ट्रीय औसत से काफी नीचे है। हकीकत ये है कि राज्य के रहवासियों की बैंक, बीमा, पेंशन तक में पहुंच औसत से काफी कम है.(अंतिम पांच में) देश के सभी राज्यों में छग की रेटिंग 32 वीं है और सूचकांक 27 है. यानि राज्य में प्रति 100 लोगों में 27 लोगों की ही पहुंच वित्तीय सेवाओं तक है. विशेषज्ञों का मानना है कि छग में वित्तीय संस्थाओं तक मात्र 27फीसदी लोगों की पहुंच है तो सरकारी योजनाओं को उन तक कैसे पहंचाया जा सकता है? मतलब साफ है छग वर्तमान विकास के माडल के साथ अपना सामंजस्य नहीं बैठा पा रहा है।


बाल अपराध में देश का पांचवां राज्य
देखा जाए तो राज्य में हो रहे विकास की लहर बच्चों तक नहीं पहुंची है और वे इस विकसित समाज में अमानवीय अत्याचार के शिकार हैं।  जिसमें राजधानी रायपुर का नाम देश में आठवें नबर पे लिया जा सकता है। और छ.ग बाल अपराधों में देश में पांचवे नंबर पर है। केंद्रीय अपराध अनुसंधान ब्यूरों की रिपोर्ट पे नजर डालें तो 2012 में बच्चों के खिलाफ विभिन्न थानों में दर्ज अपराधों की संख्या 1881 हैं। (जिसमें शिशु हत्याएं, बलात्कार, हत्या, अपहरण, आत्महत्या के लिए उकसाना, परित्याग करना, देह व्यापार के लिए बच्चियों की खरीद-फरोख्त और भू्रण हत्या शामिल है- इनमें अकेले राजधानी रायपुर में 204 अपराध और एजुकेशन हब कहलाने वाले दुर्ग में 268 अपराध दर्ज हुए हैं) राज्य में हो रहे इन बाल अपराधों के 10.2 फीसदी मामलों की जांच अभी तक बाकी है।
 बेटियों की क़त्लगाह  बनता छग
यूनाइटेड नेशंस के मुताबिक दुनिया में औरतों के साथ की जाने वाली हिंसा में भारत 5वें नंबर पे है। पाकिस्तान जैसे देश से भी पीछे है. छग में बलात्कार की बढ़ती हिंसा पर नजर डालें तो 2010 में 1012 बलात्कार के प्रकरण विभिन्न थानों में दर्ज किए गए (बावजूद इसके कि एफआईआर करवाना कितना मुश्किल है) जहां पीड़िताएं गुमनाम हो चुकी हैं या मौत को गले लगा चुकी है और उनके अपराधी आजाद घूम रहे हैं, ऐसे आंकड़े सरकार के पास नहीं हैं। ज्यादा दिन नहीं बीते हैं जब एक होनहार महिला खिलाड़ी को उसके ही कोच की बदनीयती का शिकार बनना पड़ा। बात खुलने पर कोच पर अपराध दर्ज होना तो दूर उसे बचाने की सरकारी स्तर पर सरगर्मियां किसी से छुपी नहीं है। उच्च शिक्षा में महिलाओं के शोषण का आलम ये है कि इकलौती सेंटरल यूनिवर्सिटी में एक महिला व्याख्याता कुलपति द्वारा शारीरिक, मानसिक शोषण किए जाने की गुहार पिछले दो वर्षों से लगातार लगा रही है मगर आज तक संबंधित थाने ने उनकी एफआईआर नहीं लिखी और न ही किसी तरह की जांच शुरू की गई। राष्ट्रपति तक मामला सुबूतों और गवाहों सहित पहुंचाया गया मगर राज्य के मुख्यमंत्री के प्रिय और केंद्र सरकार के चहेते कुलपति आज भी अपने पद में रौब के साथ बने हुए हैं। शोधार्थी छात्राओं के साथ होने वाले यौन शोषण में जिस तरह बढ़ोतरी हो रही है उससे तो लगता है कि बहुत जल्द राज्य महिला शिक्षार्थियों के यौन शोषण में भी अव्वल नंबर की श्रेणी में गिना जाने लगेगा।

2011 की जनगणना के मुताबिक जहां देश में औरतों का अनुपात प्रति 1000मर्दा की तुलना में 940 है।  वहीं छग का औसत 991 लेकिन राज्य के बड़े शहरों में यह जसं 956 हैं. तो 0-6बरस की उम्र का लिंगानुपात यहां 964 और 932 है. (रायपुर,बिलासपुर,दुर्ग कोरबा,रायगढ़ ). जबकि ग्रामीण इलाकों में 1000 पे 1004 औरतें हैं. तो वहीं 0-6 बरस उम्र की बच्चियों की संख्या आज भी 972 है.(बस्तर, दंतेवाड़ा, महासमुंद, राजनांदगांव, धमतरी, कांकेर, जशपुर) मतलब साफ है राज्य के बड़े शहरों में तथाकथित विकास का उन्माद बेटियों का खात्मा करने पे उतारू है. यानि आदिवासी (विकास की नजर में असभ्य)आज भी अपनी बेटियां को जिन्दा रखने में गर्व महसूसते हैं। ताजा आंकड़े यही दिखा रहे हैं कि राज्य के बड़े शहरों की तुलना में छोटे शहरों में बेटियों का अनुपात ज्यादा है। बेटियों को भ्रूण  में मार डालने का सभ्य धंधा इन बड़े शहरों में पिछले एक दशक से खूब फलफूल रहा है यहां बंगाल और उड़िसा की बेटियां के भ्रूण  भी चिंहाकित करके मार दिए जाते हैं। नालियों में मिलने वाले स्वस्थ्य मादा भ्रूण  की तादाद भी कुछ कम नहीं, .(सुबूतों के साथ शिकायतों के बावजूद)मजाल है जो सरकार ने ऐसे किसी भी सेंटर पे आज तक कोई कड़ी कार्रवाई की हो।

बलात्कार -नेशनल क्राइम रिसर्च ब्यूरो की 2012 की रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में हर दिन तीन औरतें बलात्कार का शिकार होती हैं। औरतों के साथ बलात्कार की घटनाओं की अपराधदर 8.41 फीसद से राज्य देश में सातवें स्थान पे चमक रहा है। 2013 के ताज़ा आंकड़ों पे नजर डालें तो राज्य 2012 में कुल 1034 औरतें बलात्कार की शिकार हुई हैं (350 औरतों के अपहरण के मामले और 980 घरेलू हिंसा में पति/रिश्तेदारों द्वारा प्रताड़ना के मामले दर्ज किए गए) जबकि 2011 में 1053 औरतें बलात्कार की शिकार दर्ज की गई। यहां भी एजुकेशन हब कहलाने वाले दुर्ग जिले (शहरी)में बलात्कार का क्राइम रेट 13.50 है तो राजधानी रायपुर में ये दर 11.76 है. शीलभंग की कोशिश में पिछले बरस 1601दर्ज मामलों के साथ यह राज्य देश में सातवें नंबर पे हैं. और इसका दुर्ग शहर पांचवे नंबर पे दर्ज है।
हत्या-राज्य में महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा का ये आलम है कि सालभर(2012) में हत्या के 320 से ज्यादा मामले दर्ज किए गए जिसमें महिलाओं की संख्या सबसे ज्यादा है अकेले रायपुर में 97 मामले थानों में दर्ज हुए जिसमें 34 महिलाओं का कत्लेआम किया गया।
आदिवासी बालाओं के साथ हिंसा- चूंकि छग मातृपधान सत्ता वाला आदिवासी बहुल राज्य है यहां आदिवासी महिलाओं के साथ चिंहाकित अलग तरह की हिंसा चिंतित करने वाली है जैसे- छग के बस्तर संभाग (संपूर्ण आदिवासी )का कांकेर जिला के नरहरपुर ब्लाक के झालियामारी गांव के एक प्राइमरी आदिवावी कन्या आश्रम जहां 46 छात्राएं ( 5से 12 वर्ष की)रहती हैं- पिछले 2 बरस से यहां की 11 बच्चियांे के साथ वहीं के शिक्षाकर्मी और चैकीदार बलात्कार, यौन शोषण करते हुए, मारपीट कर किसी से न बताने के लिए उन्हें धमकाते रहे हैं। औचक निरीक्षण में पहुंची स्थानीय कलेक्टर से आश्रम की पीड़ित बच्चियों ने अपने साथ की जा रही घिनौने अपराध की जानकारी दी तब मामला बाहर आया और आनन फानन में सिर्फ चैकीदर की गिरफतारी की गई और शिक्षा कर्मी फरार घोषित हो गया. अधिकारी स्तर पर कोई जवाबदेही, जिम्मेदारी या कार्रवाई अब तक निल है। इसके साथ ही आदिवासी औरतों के साथ यहां तैनात राज्य एवं केंद्र सरकार के सेना बल द्वारा विभत्स यौन हिंसा व उत्पीड़न की घटनाएं अंजाम दी जाती है. साथ ही हिरासत में इन औरतों के साथ बलात्कार यौन उत्पीड़न, शोषण राज्य में कोई मुददा ही नहीं है. पुलिस हिरासत में, एसपी की मौजूदगी में सोनी सोरी के गुप्तांगों में पत्थर घुसेड़े गए जिसपर न महिला आयोग और न अदालतें सुनवाई करने को तैयार हैं।

2008-2009 के आंकड़ों के मुताबिक 20 हजार आदिवासी लड़कियां सरगुजा और जशपुर जिलों से गायब हो चुकी हैं। राज्य से 3000 लड़कियां की गुमशुदगी का इकरार खुद सरकार 2 बरस पहले ही विधानसभा में कर चुकी है लेकिन अभी तक इनमें से ज्यादातर अपने परिजनों तक नहीं पहुच पाई हैं। राज्य से मानव तस्करी व्यवस्थित तरीके से जारी है जिसमें बड़ी तादाद औरतों और नाबालिग बच्चियों की है मगऱ इन्हें रोकना तो दूर पिछले नौ बरसों में सरकार इनके ठेकेदारों और दलालों पर भी हाथ नहीं डाल पाई है क्योंकि इन गिरोंहों के सरगना छग और दिल्ली में बैठे रसूख वाले (गैर आदिवासी)मंत्री और राजनीतिज्ञ हैं।

 38.47फीसदी बच्चे कुपोषण के शिकार

कुपोषण के मामले में देश के पूर्वाेत्तर राज्यों के हालात छग से बेहतर है। बच्चों में खून की कमी का आंकड़ा 2012 में 70 फीसदी था।  केंद्र सरकार के आंकड़े देखें तो छग में 38.47फीसदी बच्चे कुपोषण के शिकार हैं. जबकि देश में सबसे कम 2फीसद कुपोषण अरूणाचल प्रदेश में दर्ज की गई है.(जबकि इन राज्यों को गरीब/पिछड़ा माना जाता है) लेकिन कुपोषण और एनीमिया के मामलों छग उनसे पिछड़ा हुआ है।
स्वास्थ्य- एओआई की रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में स्वास्थ्य सुविधाओं की बड़ी कमी है.. रिपोर्ट में साफ लिखा है कि ग्रामीण इलाकों के वंचित तबकों में भी औरतों और बच्चियों के स्वास्थ्य के लिए सरकारी सुविधाओं की बड़ी कमी सामने आई है। दंतेवाड़ा जिले के सिर्फ 59 गांवों में ही प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र हैं।  सरकारी अस्पतालों में बढती अव्यवस्था, भ्रष्टाचार, डाक्टरों की लापरवाही, स्वास्थ्य सुविधाओं और संसाधनों की कमी के चलते मरीजों की मौत के मामले बढ़े हैं. रायपुर के गरियाबंद में 36 मरीजों की मौत जिसमें आधी संख्या औरतों की है चिंता करने लायक है।
सरकारी नेत्र शिविरों में आए दिन गरीब बूढ़ों के अंधे होने की खबर अब किसी को नहीं चैंकाती हैं। पिछले बरस करीब 70 लोग अंधे हो गए और 4 की मौत हो गई।
 नेशनल इंस्टीटयूट आफ न्यूट्रीशन के मुताबिक 18से 29 वर्ष के भारतीयों को 2,320 कैलोरी भोजन की रोज जरूरत पड़ती है, लेकिन छग में 1900 कैलोरी भोजन भी एक छत्तीसगढ़िया को मयस्सर नहीं है। यहां राज्य सरकार अपने नागरिकों को पर्याप्त कैलोरी युक्त भोजन भी नहीं दे पा रही है। जबकि मंत्रियों के बाहर निकलते हुए पेट फट पड़ने को बेताब हैं. ऐसे में पति को परमेश्वर मानने वाले समाज में जहां 80 फीसदी गरीबी है उस राज्य में औरतों को कितना कैलोरी में भोजन मिलता होगा इसकी सिर्फ कल्पना ही की जा सकती है।
गए बरस राज्य के बस्तर जैसे (धुर आदिवासी) इलाकों में रेडक्रास जैसी संस्था पे सरकार ने रोक लगा दी है। इन इलाकों में सरकारी सुविधाओं की बेहद कमी की वजह से कुपोषण, एनीमिया, औरतों की स्वास्थ्य समस्याओं के कारण मौतों की संख्या बढ़ी है। यह इलाका माओवाद से प्रभावित है और सरकार जहां एक तरफ आपरेशन ग्रीनहंट जैसे कार्यक्रम चला रही है वहीं सलवा जुड़ुम जैसी जन मिलेशिया द्वारा उद्योगपतियों के हित में आदिवासियों का सफाया कर रही है।  अतः पहले से ही यहां स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी रही है तब भी यहां काम कर रही संस्थाओं को भी भगाया जा रहा है. ’’डाक्टरर्स विदाउट बार्डर’’ और ’’रेडक्रास’’ पर 2011 पर माओवादियों का इलाज करने का आरोप लगाकर रोक लगा दी गई है।

शिक्षा-79फीसदी आदिवासी आबादी वाले दंतेवाड़ा जिले की साक्षरता दर देश में सबसे कम है वहीं जिले के 1220 में से 700 गांवों में विद्यालय नहीं हैं, यहां के 600 से भी अधिक गांवों के तीन लाख से भी ज्यादा लोग पिछले नौ बरसों में सशस्त्र संघर्ष की वजह से विस्थापित हो चुके है। राज्य में प्रायमरी स्तर की कक्षा में पढ़ने वाले आदिवासी बच्चों में से 16 हजार 386 बच्चे प्रतिवर्ष ड्राप आउट होते हैं, तो अनुसुचित जाति के 2हजार 582 बच्चे स्कूलों से बाहर हो जाते हैं। यही नहीं ओबीसी के 7हजार 60 बच्चे और सामान्य वर्ग के 2हजार 243 बच्चे स्कूल छोड़ देते हैं। मात्र प्राथमिक स्तर पर हमारे नौनिहाल इतनी बड़ी मात्रा में स्कूल से बाहर जा रहे हैं तो इनके कारणों की पड़ताल करना ही जरूरी नहीं है बल्कि उन विसंगतियों को दूर किया जाना भी जरूरी है जिनकी वजह से ये बच्चे बाहर का रास्ता नाप रहे हैं।  शिक्षा विकास का पहला कदम है और उस पहले कदम के लिए राज्य में मजबूत जमीन अब तक नहीं बन पा रही है।
रोजगार- रोजगार गारंटी योजना के तहत सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 2012-13 में राज्य में 43 लाख 92 हजार 789 परिवारों के पास मनरेगा जाब कार्ड था। जिसमें से 27 लाख 26 हजार 377 परिवारों ने काम मांगा था। कुल26 लाख 26 हजार 54 परिवारों को काम मिल सका। उनमें से भी पूरे 100 दिनों का काम महज 2 लाख 39 हजार 43 परिवारों को ही मिल पाया। गौरतलब है कि इस कानून के सामाजिक और आर्थिक पहलू हैं। एक तरफ जहां इससे ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार बढ़ेगा जिसका सीधा फायदा उस परिवार को पहुंचेगा। जब घर में पैसा आएगा तो भोजन के साथ ही परिवार की मूल जरूरतें पूरी होंगी. कितनी हास्यास्पद बात है कि जिन कुल परिवारों के पास मनरेगा जाब कार्ड था (जबकि मजदूरी 155रू प्रति दिन थी) अगर सभी को 100 दिन की काम और मजदूरी मिलती तो उक्त परिवारों के पास (68,08,83,69.000)अड़सठ अरब रूपए आते।  अगर कार्य मांगने वाले सभी 27,26,377 परिवारों को 100दिनों का रोजगार दिया जाता तो छग में बयालीस अरब(42,25,43,500) रूपए आते.मगर सिर्फ 2,39,430 परिवारों को ही 100 दिनों का काम मिल पाया अतः सिर्फ तीन अरब रूप्ए (3,67,41,66,500)ही राज्य में आ पाए मगर भ्रष्ट नौकरशाही ने वो भी आज तक पूरी तरह मजदूरों तक नहीं पहूंचाए हैं।

कृषि- राज्य बनने के बाद कृषि रकबे में लगभग 10 लाख हेक्टेयर की कमी आई है और इतने ही किसान भूमिहीनों और सीमांत श्रेणी में शामिल हो कर गरीबी रेखा से नीचे की श्रेणी में जा चुके हैं। धान का कटोरा कहलाने वाला छग आज देश के अठारह राज्यों की सूची में अठारहवें नंबर पे है। विकास करते देश भारत के लिए ये कम शर्मनाक बात है कि 2001की जनगणना में जहां छग में कुल कामकाजी लोगों में किसानों की जनसंख्या 44.54 फीसदी थी वह 2011 में घट कर 32.88 फीसदी रह गई. जबकि इसके विपरीत खेतीहर मजदूरों की जनसंख्या में आश्चर्य करने लायक बढोत्तरी हो गई।  2001 में जहां कुल कार्मिकों में 31.94 फीसद खेतिहर मजदूर थे लेकिन 2011 में इन्हीं खेतिहर मजदूरों की जनसंख्या बढकर 41.80 फीसद हो गई। जिससे लाखों किसान मजदूर बन गए. भारत सरकार की कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी)  की अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक छत्तीसगढ़ की इस हालत की जिम्मेदार राज्य सरकार की नीतियां है।

केंद्र सरकार द्वारा आबंटित बजट- केंद्र सरकार, सुरक्षा संबंधी व्यय योजना के तहत नक्सल उन्मूलन अभियानों पर राज्य सरकारों(वर्तमान में वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित 9 राज्यों अर्थात आंध्र प्रदेश, बिहार, छग झारखंड मप्र महाराष्ट उड़िसा) द्वारा किए गए व्यय की प्रतिपूर्ति करती है।  पिछले दस वर्षा के दौरान सुरक्षा संबंधी व्यय योजनांतर्गत उक्त राज्यों को 2002.03 से लेकर 2011.12 तक 811.09 करोड़ रूपए जारी किए गए हैं। इसके अलावा इस अभियान के लिए मुहैया कराई गई हवाई उड़ानों पर साल 2010-11 में 16.10 करोड  और 2011-12 में 13.30 करोड रूपए खर्च किए गए हैं।  इसके साथ ही पुलिस थानों के निर्माण और सुदृढीकरण ( ‘Construction/fortification of Police Stations’  )स्कीम के तहत नक्सल प्रभावित उक्त राज्यों को साल 2010-11 में 10 करोड और साल 2011-12 में 210 करोड रूप्ए खर्च किए गए हैं। इन्हीं 9 राज्यों में Special Infrastructure Scheme    के तहत साल 2008-09 में 9999.92 लाख, साल 2009-10 मे 3000 लाख , साल 2010-11 में 13000 लाख तथा 2011-12 में 18582.01 लाख रूपए दिए गए हैं. यानि  नक्सल प्रभावित 9 राज्यों में विगत 4 बरसों में Special Infrastructure Scheme   के तहत 445.81 करोड़ रूप्ए खर्च किए जा चुके हैं।
इसके अलावा केंद्र सरकार द्वारा शत प्रतिशत वित पोषण से नक्सल प्रभावित राज्यों लिए विशेष अवसंरचना योजना शुरू की गई है जिसके तहत 11वीं पंचवर्षीय योजना अवधि के दौरान इस योजना में 500 करोड़ रूपए आबंटित किए गए हैं. 2008-09 में 100 करोड़,2009-10 मे 300 करोड़, और 2010-11 में 100 करोड़ रूप्ए जारी किए जा चुके हैं।
इसके यही नहीं नक्सलवाद से निपटने के लिए गृह मंत्रालय का नक्सल प्रबंधन प्रभाग लोगों को हिंसा छोड़ने के जारी विज्ञापन में पिछले दो बरसों में 10 करोड़ 80 लाख रू. जारी कर चुका है।  (2010-11 मंे 570 लाख और 2011-12 में 510.19लाख रू.)गौरतलब है कि 1 अपे्रल 2008 को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने आतंकी और सांप्रदायिक हिंसा में मारे जाने वाल लोगों के परिजनों को मुआवजा देने के लिए एक योजना शरू की जिसके तहत आतंकी घटना या सांप्रदायिक हिंसा में मारे जाने वाले एवं गंभीर रूप से घायल होने वाले लोगों के परिजनों को 3 लाख रूप्ए राहत राशि देने का प्रावधान है। (केंद्र सरकार की यह योजना 22 जून 2006से नक्सली हिंसा में मारे जाने वाले लागों के परिजनों पर भी लागू है.) मगर जमीनी हकीकत ये है कि छग में किसी भी आदिवासी परिवार (महिला/पुरूष)को इस मद से कोई राशि नहीं दी गई है।

राज्य बनने के पहले से ही आदिवासियों के खात्मे की साजिश-
गौरतलब है कि छग में आदिवासियों की जनसंख्या कम करने की साजिश राज्य बनने से पहले केंद्र की एनडीए सरकार ने शुरू कर दी थी। 2001 की जनगणना में बस्तर के 564 गांव और जशपुर के 300 गांवों को वीरान बता कर उनकी गणना ही नहीं की गई थी। आज फिर 2011 की जगणना के आंकड़ों पे सवाल उठ रहे हैं।  शुरूआती आंकड़ों के मुताबिक़ छग राज्य की जनसंख्या में 22.59फीसदी वृद्धि हुई है। जहां एक तरफ कबीरधाम(मुख्यमंत्री की कांस्ट्वेंसी) की जसं में 40.06 फीसद,(रायपुर 34.59,बिलासपुर 33.02 फीसद) की वृद्धि हुई है वहीं धुर आदिवासी बस्तर के सुकमा में जसं वृद्धिदर 8.09 फीसदी,दंतेवाड़ा 11.09, बीजापुर 8.76, जशपुर14.65, कांकेर 15.01फीसदी वृद्धि दिखाई गई है. यानि आदिवासी बहुल सुकमा की तुलना में कबीरधाम की जनसंख्या 5 गुना बढ़ी है। जनगणना के इन आंकड़ों ने राज्य सरकार के विकास कार्यक्रमों पे भी सवालिया निशान लगा दिया है।
राजनीति में भागीदारी- छग देश के उन चुनिंदा राज्यों में है जहां औरतें श्रम में बराबर की भागीदार होने की वजह से निर्णयों में उनकी भागीदारी है. साथ ही चूड़ी प्रथा जैसी सशक्त सांस्कृतिक परंपरा भी छग की धरती में मौजूद है जो यहां की औरतों को मर्दा की हिंसक श्रेष्ठता और खराब शादीशुदा जिंदगी से निजात दिलाने में सहायक है।  ये और बात है कि बाहर से आए गैर छत्तीसगढ़िया सवर्ण धनाडय व्यापारी वर्ग की अय्याश प्रवृत्ति की वजह से यह स्वस्थ्य परंपरा भी औरत विरोधी दिखाई पड़ने लगी है। महिला प्रधान आदिवासी संस्कृति का द्योतक होने के बावजूद छग की राजनीति में औरतों की मौजूदगी उतनी सशक्त नहीं है जितनी होनी चाहिए। यहां महिला नेतृत्व पर पुरूषिया प्रभुत्व की वजह से नेतृत्व में  औरतों की तादाद नगण्य हैं। जबकि बहुसंख्यक आदिवासी नेतृत्व को महज चुनाव जिताने का जरिया मान लिया गया है लेकिन जीतने के बाद भी इन औरतों को वो जगह नहीं दी जा रही है. जिसकी वे हकदार हैं. महिला नौकरशाहों के साथ दुव्र्यवहार यहां आम बात है.( 32फीसदी आदिवासी बहुत राज्य में एकमात्र आदिवासी महिला मंत्री है जो अपना दूसरा कार्यकाल पूरा करेंगी.)
चंद अमीरों की अय्याशी के लिए जब सारे वंचित तबक़े समाज सुनियोजित तरीके से हाशिए में ढ़केले जा रहो हैं,  तब उनकी औरतों के हालात बेहतर कैसे हो सकते हैं? राज्य में औरतें मर्दो के कांधों से कांधा मिलाकर देश विकास में कृषि, खेल (अंतर्राष्ट्रीय) जगत में शिक्षा से लेकर भारतीय सीमा पर अपनी भागीदारी दर्ज करा चुकी है। ऐसे में तेजी से विकास की ढ़लान उतरते देश, धनाडय समाज और सरकारों को-औरत होने के गुणों सहित, उनकी संपूर्ण इंसानी/संवैधानिक हक़ों की हिफ़ाज़त, संरक्षित और सुरक्षित करने की जिम्मेदारी उठानी ही पडे़गी. वर्ना वर्तमान से भी तेजी से आगामी पीढ़ियों का लहू राज्य की धरती सिंचित करेगा और सरकारें माओवादी हिंसा की आड़ में अपनी जनसंहारक अमानवीय नीतियों की पर्दादारी नहीं कर पाएंगी।
राज्य में बढ़ाई जा रही नौकरशाहों, व्यापारियों, सवर्ण राजनीतिज्ञों और सरकारी हिंसा के तौर तरीकों से आदिवासी, दलित, महिला विहीन छग की कल्पना भी रोंगटे खड़े कर देती है। इसके अलावा राज्य में एक तरफ दक्षिण पंथियों की नफरत की राजनीति के तहत धर्मान्तरण के झूठे प्रचार और चर्च वर्सेस आरएसएस के राजनैतिक विद्वेष की आड़ में झूठे प्रचार द्वारा हिंसक हमलों का बढ़ाया जा रहा है,(इसाई अल्पसंख्यकों के खिलाफ) दूसरी तरफ मुस्लिम अल्पसंख्कों के खिलाफ कुत्सित पूर्वाग्रह आधारित मानसिकता से सरकारी स्कीमों से उन्हें दूर रखते हुए उनके नागरिक अधिकारों का हनन पिछले 12 बरसों से बदस्तूर जारी है।  रहे उनके बच्चे तो वे किसी गिनती में ही नहीं है।  राज्य की विधानसभा (पिछले दो टर्म से) में इकलौते मुस्लिम विधायक (कांग्रेस) हैं। छत्तीसगढ में विकास के इस चरित्र को देखते हुए बक़ौल जनकवि गोरख पांडेय के मुताबिक़ अब यहां आमजन का भविष्यगान होगा--
सुनो कि हम दबे हुओं की आह इन्क़लाब है.
खुलो कि मुक्ति की खुली निगाह इन्क़लाब है.
उठो कि हर गिरे हुओं की राह इन्कलाब है.
हमारी ख़्वाहिशों का नाम इन्क़लाब है.
हमारी ख़्वाहिशों का सर्वनाम इन्क़लाब है.
हमारी कोशिशों का इक नाम इन्क़लाब है.
हमारा आज एकमात्र काम इन्क़लाब है.

’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’
(लेखिका-परिचय:
जन्म:9 अगस्त 1977, बिलासपुर (छत्तीसगढ़) में
शिक्षा: अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर तथा पत्रकारिता व जनसंचार में उपाधि
सृजन: मानवाधिकार पर प्रचुर लेखन-प्रकाशन, देशबंधु में कुछ वर्षों नियमित रिपोर्टिंग, कई पत्र-पत्रिकाओं में लेख प्रकाशित  
संप्रति: कई प्रमुख महिला संगठनों में सक्रिय और स्वतंत्र लेखन
संपर्क:Jabi.Zulaikha@gmail.com)
 

Digg Google Bookmarks reddit Mixx StumbleUpon Technorati Yahoo! Buzz DesignFloat Delicious BlinkList Furl

1 comments: on "विकास की अंधी दौड़ में आम छत्तीसगढ़िया ग़ायब "

rumman faridi ने कहा…

bahot hi saargarbhit vishleshanatmak evam mahatwapurn lekh. lekhika ka adhyayan aur aur aankdo ka sankalan vishay k anurup hai

एक टिप्पणी भेजें

रचना की न केवल प्रशंसा हो बल्कि कमियों की ओर भी ध्यान दिलाना आपका परम कर्तव्य है : यानी आप इस शे'र का साकार रूप हों.

न स्याही के हैं दुश्मन, न सफ़ेदी के हैं दोस्त
हमको आइना दिखाना है, दिखा देते हैं.
- अल्लामा जमील मज़हरी

(यहाँ पोस्टेड किसी भी सामग्री या विचार से मॉडरेटर का सहमत होना ज़रूरी नहीं है। लेखक का अपना नज़रिया हो सकता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान तो करना ही चाहिए।)