बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

सोमवार, 23 सितंबर 2013

सर्वधर्म समभाव वाया राजनीति @ नमो

मुज़फ्फ़र नगर फ़साद : दंगे में ख़ाक -राख हुए अपने घर को ताकता एक मासूम साभार इंडियन एक्सप्रेस

संदर्भ अनंतमूर्ति

समय अब ज्यादा क्रूर है। संकट गहरे हैं। बोलने की आज़ादी पर पहरे हमेशा रहे हैं। लेकिन देश में लोकतंत्र की गहरी जड़ों को डिगा पाना बेहद मुश्किल रहा। अब उसके ही बहाने उसे ही समूल नष्ट करने की कोशिशें तेज़ हैं। जबकि मित्रो! वाद-विवाद ही संवाद का वाहक रहा है। इसमें कुतर्क की गुंजाइश नहीं रहती। वैचारिक मतभेद हमेशा रहे हैं, रहेंगे। लेकिन तब कोई गाली-गलौज पर उतर नहीं आता था। देश के एक प्रतिष्ठित लेखक जवानी में नेहरु की आलोचना करते रहे। कुछ बड़े हुए तो इंदिरा उनके ज़द में रहीं। कभी उनके विरुद्ध अमर्यादित बर्ताव किसी ने नहीं किया। अब जबकि धुर दक्षिण पंथी एक नेता और उसके समर्थकों के सपने के पूरे हो जाने की स्थिति आने पर लेखक ने देश छोड़ देने की बात कही तो एक लम्पट तबका उनकी माँ-बहन करने में वीरता समझने लगा। दरअसल उनके ज़ेहन में हिटलर का जर्मनी रहा होगा। जब कई लेखक देश छोड़ कर चले गए थे। प्रतिकार का अपना ढंग है। क्या हम विश्व के उस नादिरशाही या हिटल शाही दौर में तो नहीं लौट रहे? क्या मोदियाबिंद अब डेंगू की तरह फैल रहा है। कि जिसमें सिर्फ एक ही रंग नज़र आता है।

मित्रो ! आप जिस राज्य में विकास का ढिंढोरा पीट रहे हैं। ज़रा उसके आगे-पीछे भी नज़र घुमा लीजिये। अभी कुछ दिन पहले "Times of India" ने ख़बर दी कि निवेशकों के लिए उड़ीसा बेहतर राज्य साबित हो रहा, वहीं गुजरात लगातार नीचे जा रहा है। सर्वाधिक प्रति व्यक्ति आय में हरियाणा एक नंबर पर है। सबसे अधिक नौकरियों में आन्ध्र प्रदेश है। इधर अपने बिहार ने 2006-2010 की ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना के दौरान 10.9 प्रतिशत की दर से विकास किया जबकि गुजरात की दर 9.3 प्रतिशत रही। इस दौरान सिर्फ बिहार ही नहीं बल्कि हरियाणा, महाराष्ट्र और उड़ीसा भी विकास दर में गुजरात से आगे निकल गया।

दोस्तो! कभी एक अफसर ने कहा था की इंदिरा ही भारत हैं और भारत ही इंदिरा, तो उसकी भी खूब आलोचना हुई थी। लेकिन इंदिरा के चाहने वाले विरोधियों की मुखालिफ़त हिंसक ढंग से नहीं करते थे। आज ऐसा माहौल निर्मित किया जा रहा है कि आप मुझे मानिए, वरना आप देशद्रोही! मित्र ! यह नहीं चल सकता। आप बसद शौक़ किसी का समर्थन कर सकते हैं। ज़रूर कीजिये। लेकिन दुसरे को भी कहने का स्पेस दीजिये। आप मुल्क की बात छोड़िये गुजरात में भी 49 फ़ीसदी वोट इस विस चुनाव में भाजपा को कम मिला था। तो क्या आप उस आवाज़ को कुचल देंगे।
गुजरात नरसंहार की निंदा समूचे विश्व में हुई थी। सिक्ख विरोधी दंगे भी सिहरन पैदा कर देते हैं। मैं कांग्रेसी नहीं हूँ। लेकिन इत्ता जानता हूँ कि उसके लिए कांग्रेस नेताओं ने कई बार माफ़ी-तलाफ़ी की। अब मुज़फ्फर नगर। यहाँ भी उसी हिंसक मानसिकता ने खेल खेला, जो गुजरात और दिल्ली वाया भिवंडी @ मुंबई अराजक रहा है। दोस्तों ! यह ज़ेहनियत तालिबानी हो या संघी। धर्म की सियासत करने वाले यह तथाकथित हमारे सूरमा आम जन का भला यही करेंगे कि खून की बारिश के बाद रोटियाँ बांटने चले आयेंगे। भूल जाएंगे कि बादल का निर्माण उन्होंने ही किया था। आप लोकतंत्र का सम्मान करें !

आओ कि देश की प्राचीन वसुधैव कुटुम्बकम परंपरा आवाज़ देती है। आओ कि कबीर, तुलसी, बुल्ले शाह के नग्मे गूँज रहे हैं। वही तुलसी जिन्होंने कहा था, मांग के खईबो मसीद (मस्जिद ) में सोइबो! वही बुल्ले शाह जो बिस्मिल्लाह कह कर होली खेलने का एलान करते हैं। आओ हम उस नरेन्द्र के विवेक का स्मरण-व्यवहार करें, जो बाद में स्वामी विवेकनद बना। उसने कहा था, वेदान्ती मस्तिष्क और इस्लामी शरीर के संयोग से जो धर्म खड़ा होगा,वही भारत की आशा है।




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न स्याही के हैं दुश्मन, न सफ़ेदी के हैं दोस्त
हमको आइना दिखाना है, दिखा देते हैं.
- अल्लामा जमील मज़हरी

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