जगन्नाथ आज़ाद (5दिसंबर 1918-24 जुलाई 2004) |
जिन्ना की ख्वाहिश
पर लिखा
हुसैन कच्छी की क़लम से
वर्ष 2004 में उर्दू के मशहूर शायर जगन्नाथ आज़ाद के इंतक़ाल के बाद हिंदुस्तान और पाकिस्तान के साहित्यिक जगत में एक नयी बहस का आगाज़ हुआ कि दिवंगत शायर ने पाकिस्तान का पहला क़ौमी तराना (राष्ट्र गीत) लिखा था। तराना उन्होंने क़ायद-ए-आज़म मोहम्मद अली जिन्ना की ख्वाहिश पर लिखा था। 24 जुलाई, 2004 को जगन्नाथ आज़ाद की मौत हुई। उसके बाद उनकी जिंदगी में किया गया एक इंटरव्यू सामने आया, तो यह बात जाहिर हुई. उस वक्त तक बहुत कम लोगों को इसकी जानकारी थी.
आजाद कहते हैं कि जब पूरा उपमहाद्वीप बंटवारे से पहले की फसाद की लपेट में था, मैं लाहौर में रहता था और एक साहित्यिक पत्रिका से जुड़ा था. मेरे तमाम रिश्तेदार हिंदुस्तान जा चुके थे, मेरे लिए लाहौर छोड़ना बहुत तकलीफ देनेवाली बात थी. लिहाजा, मैंने लाहौर में ही ठहरने का फैसला किया.
दोस्तों ने मेरी हिफाजत का जिम्मा लेते हुए मुझे पर लाहौर में ही रहने के लिए जोर दिया. नौ अगस्त,1947 की सुबह रेडियो लाहौर में काम करनेवाले मेरे एक दोस्त ने मुझे तक यह पैगाम पहुंचाया कि कायदे आजम चाहते हैं कि पाकिस्तान का कौमी तराना उर्दू का बड़ा जानकार कोई हिंदू लिखे और इसके लिए उन्होंने आपका नाम तय किया है.
मुझे इतनी जल्द यह काम करना मुश्किल लगा, तो मेरे दोस्त ने मुझे कायल रहने के लिए कहा कि यह प्रस्ताव मुल्क की सबसे बड़ी शख्सीयत की जानिब से है, इसलिए इनकार न करें.
मैंने हामी भर ली. हालांकि, मैंने यह भी कहा कि इस वक्त लाहौर में मौलाना ताजवर नजीबाबादी, सैयद आबिद अली आबिद, सूफी गुलाम मुस्तफा तबस्सुम, अब्दुल मजीद सालिक, हफीज जालंधरी जैसी बड़ी हस्तियों सहित फैज अहमद फैज जैसे मुझसे सीनियर शायर हजरात की मौजूदगी में यह तराना मुझसे ही क्यों लिखवाना चाहते हैं, तो उन्होंने बताया कि कायदे आजम की यही ख्वाहिश है.
खैर, मैंने कम वक्त में एक तराना लिख कर उनके हवाले करके जिन्ना साहब की खिदमत में रवाना कर दिया, जिन्होंने उसे पसंद करके अपनी मंजूरी दे दी. इसे पहली बार रेडियो पाकिस्तान कराची में गाया गया, जो उन दिनों देश की राजधानी थी.
मैं बंटवारे के दिनों में लाहौर में ही था कि पंजाब के दोनों हिस्सों में हालात हद से ज्यादा खराब होते चले गये. मेरे दोस्तों ने मन के साथ मुझसे दरख्वास्त की कि अब मुझे हिंदुस्तान हिजरत कर जाना चाहिए, क्योंकि इन हालात में मेरी हिफाजत में वे असमर्थ महसूस कर रहे हैं. दोस्तों के मशविरे पर मैंने अमल किया और हिंदुस्तान चला आया!
जो तराना आजाद ने तैयार किया था, वह डेढ़ बरस तक पाकिस्तान के कौमी तराने के तौर पर प्रसारित होता रहा. कुछ लोगों का कहना है कि यही तराना 1954 तक इस्तेमाल में रहा, बाद में हफीज जालंधरी का तराना मंजूर होकर पाकिस्तान का कौमी तराना बन गया.
जिन्ना के इंतकाल के बाद से ही एक नये तराने की तहरीक शुरू हुई और अनेक शायरों के तरानों को जांचने परखने के बाद आखिर 1954 में हफीज जालंधरी का तराना मंजूर किया गया, जो अब पाकिस्तान का कौमी तराना है. जगन्नाथ आजाद और उनके तराने के समर्थन में 13 अगस्त, 2006 को पाकिस्तान के अंगरेजी अखबार डान (DAWN) में यौमे आजादी के एक दिन पहले मेहरीन एफ अली का लेख A Tune to die for शीर्षक से छपा था.
अपने लेख में मेहरीन लिखती हैं कि आजादी के पांच दिन पहले कायदे आजम ने लाहौर में रह रहे जगन्नाथ आजाद नाम के हिंदू जो उर्दू के शायर थे, को पाकिस्तान का कौमी तराना लिखने का प्रस्ताव दिया था और जो कायदे आजम की मंजूरी के बाद रेडियो पाकिस्तान से प्रसारित होता रहा.
तीन मई, 2009 को पाकिस्तान के एक दानिश्वर जहीर किदवई ने Wind mills नामी अपनी वेबसाइट में दर्ज किया कि आजादी के वक्त उनकी उम्र सात बरस की थी और उन्हें रेडियो पाकिस्तान से जगन्नाथ आजाद का लिखा तराना सुना जाना याद है. जहीर किदवई को तराने में शुरू की लाइनें ही याद हैं.
पांच जून को आदिल अंजुम ने अपनी वेबसाइट pakistaniat.com पर ब्लॉग कर इस विषय पर तफसील से लिखा है. आदिल अंजुम ने जगन्नाथ की जिंदगी पर रोशनी डाली है. ब्लॉग में जगन्नाथ की आवाज की रिकॉर्डिंग को शामिल करने से आदिल अंजुम की वेबसाइट को बहुत शोहरत मिली और फिर पाकिस्तान की सरकारी एयरलाइन पीआइए की मैगजान (पत्रिका) ‘हमसफर’ - (जुलाई-अगस्त 2009) में खुशबू अजीज का एक रिपोर्टनुमा लेख pride of pakistan छपा, जिसमें खुशबू ने इतिहास में कहीं गुम हो रहे इस वाकया को उजागर किया है.
हमसफर का यह अंक लाहौर-कराची उड़ान के दौरान जानी-मानी महिला पत्रकार बीना सरवर की नजर से गुजरा, जिन्होंने अखबार डान सहित दूसरी वेबसाइटों पर अपने ब्लॉग में आजाद के तराने को पाकिस्तान का पहला कौमी तराना बताया. अखबार डान में Archive में जाकर 19 सितंबर, 2009 को छपे उनके लेख Another Time Another Anthem को देख लीजिए.
ऐ सर ज़मीन-ए-पाक
दामन वो सिलगया हैं जो था मुद्दतों से चाक
अपना वतन हैं आज जमाने में सरबुलंद
पहुंचा सकेगा इसको न कोई भी अब गजंद
अब हमको देखते हैं अतारो यो या समाक
अब हुर्रियत की जुल्फ नहीं महवे पेचो ताब
दौलत है अपने मुल्क की बेहद्दों बेहिसाब
मगरिब से हमको खौफ न मशरिक से हमको बाक
अपने वतन में आज नहीं है कोई गुलाम
अपना वतन है राहे तरक्की पे तेजगाम
अब इत्र बेज हैं हवाएं थीं जहरनाक
ज़र्रे-ज़र्रे हैं आज सितारे से ताबनाक
रौशन है कहकशां से कहीं आज तेरी ख़ाक
तुन्दीये हासिदां पे है ग़ालिब तेरा सिवाकदामन वो सिलगया हैं जो था मुद्दतों से चाक
ऐ सर ज़मीन-ए-पाक
अब अपने अज्म को है नया रास्ता पसंदअपना वतन हैं आज जमाने में सरबुलंद
पहुंचा सकेगा इसको न कोई भी अब गजंद
अब हमको देखते हैं अतारो यो या समाक
ऐ सर ज़मीन-ए-पाक
उतरा है इम्तिहां में वतन आज, कामयाबअब हुर्रियत की जुल्फ नहीं महवे पेचो ताब
दौलत है अपने मुल्क की बेहद्दों बेहिसाब
मगरिब से हमको खौफ न मशरिक से हमको बाक
ऐ सर ज़मीन-ए-पाक
अपने वतन का आज बदलने लगा निजामअपने वतन में आज नहीं है कोई गुलाम
अपना वतन है राहे तरक्की पे तेजगाम
अब इत्र बेज हैं हवाएं थीं जहरनाक
((प्रभात ख़बर के लिए लिखा गया))
(लेखक-परिचय:
जन्म: 19 जुलाई 1949, झारखंड के रांची में
ज्ञान: उर्दू, हिंदी, अरबी, फ़ारसी और अंग्रेजी ज़बानों के अलावा अदब इतिहास, संस्कृति के जानकार
सृजन: पत्र-पत्रिकाओं में समय-समय पर कविता, व्यंग्य प्रकाशित। साथ ही खोजी रपट
संपर्क: +919334420618 )
1 comments: on "जगन्नाथ ने लिखा था पाक का पहला क़ौमी तराना"
सराहनीय प्रयास .सार्थक जानकारी भरी पोस्ट आभार तवलीन सिंह की रोटी बंद होने वाली है .महिलाओं के लिए एक नयी सौगात WOMAN ABOUT MAN
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- अल्लामा जमील मज़हरी