पंखुरी
सिन्हा की क़लम से
आख़िरी अट्टहास
अब वह आगे बैठी,
आख़िरी अट्टहास
अब वह आगे बैठी,
टेलीविज़न
के,
हँस
रही है,
एक
हँसी,
एक
बेहद राजनीतिक हँसी,
करती
हुई दिन का
हिसाब,
जैसे
लिखती हुई उसपर
अपना नाम,
हंसती
हुई दिन का
आखिरी अट्टहास,
दिन
की आखिरी हंसी,
हर
दिन हो जैसे
उठा पटक,
हर
दिन एक अभियान,
नहीं
हो कोई सम्मिलित
हंसी,
कोई
सचमुच साथ का
ठहाका,
और
उसे इज़ाज़त नहीं
लेनी हो,
बैठकर
टेलीविज़न के आगे
राजनीती करने के
लिए,
किसी
से,
हों
उसके कुछ बहुत
पैत्रिक अधिकार,
उस
पितृसत्ता में,
जिसमे
कार्यरत वह,
जिसका
हिस्सा वह,
इज़ाज़त
नहीं लेनी हो
उसे,
किसी
से,
राजनीती
करने के लिए,
टेलीविज़न
के आगे,
घर
में काम करने
वाली,
नौकरानी
की तरह,
जो
बैठती है घंटों,
टेलीविज़न
के आगे,
और
उठ नहीं पाती,
न
नहीं कहती,
मालिक
के दिए खाली
समय को,
न
और लोग भी
नहीं कहते,
लेने
वाले,
देने
वाले,
रिश्वत
खाने वाले,
खिलाने
वाले,
और
वो जिनसे ले
लिया जाता है,
बहुत
कुछ,
दर
किनार कर हक
उनका,
और
वो न नहीं
कह पाते,
पता
भी नहीं होता
उन्हें,
उनके
हक दरकिनार कर
दिए जाए हैं,
सिर
की एक हामी
के साथ,
मीठी
मुस्कुराहटों के साथ,
बातों
के बीच, ठहाकों
के बीच।
चौराहा
उस खनकती हुई धूप में,
उस खनकती हुई धूप में,
जहाँ
दिल है मेरा,
और
जख्मी भी,
इतना
निरंतर है वार
उनका,
सबका,
हर किसी का,
चौराहा
इतना खूबसूरत,
कि
जान दी जा
सकती थी,
अब
भी दी जा
सकती है,
अगर
यही मंज़ूर तुम्हे,
अगर
जान ही मेरी
चाहते हो तुम,
तो
उस चौराहे पे
मारना मुझे,
मेरे
घर से निकलकर,
पड़ने
वाली पहली लाल
बत्ती का चौराहा,
सब
कुछ शुरू होता
है वहां से।
मेरी पश्तो
मुझे तो बिल्कुल नहीं आती पश्तो,
न डोगरी, न कुमाऊँनी,
न गढ़वाली,
मुझे तो बिल्कुल नहीं आता,
पहाड़ चढ़ना,
कोई इल्म नहीं मुझे ढलान का भी,
न गुफाओं का, न कन्दराओं का,
वो लोग जो पाठ्यक्रम से ज्यादा जानते हों,
हिन्दुकुश और काराकोरम का भूगोल,
वो बता सकते हैं, खैबर और गोलन के रास्ते,
ऊंचाई कंचनजंघा की, शिवालिक की तराईयाँ,
और बता सकते हैं, एक से दूसरी जगह पहुँचने के तरीके,
उस एक से दूसरी जगह,
जिनके बीच सरहद पड़ती हो।
सियासी एक आवाज़
सियासी एक आवाज़
अगर आपसे ऐसी कुछ मांगें करती हो,
कि क़त्ल करना पड़े,
आपको अपना हर प्रेमी,
हर प्रेम,
और प्रेमी के होने का हर मंसूबा,
कुछ ऐसे नामांकन हों,
आपका प्रेमी बनते ही,
गुप्तचर सेवा में उसका,
आप ही पर नज़र रखने के लिए,
बताने के लिए तमाम घरेलू आदतें आपकी,
तो कैसे मुखातिब हुआ जाये,
इस सियासत से?
कब और कहाँ?
कैसे पेश की जाये बात अपनी?
(परिचय:
जन्म:18 जून 1975
शिक्षा:एमए, इतिहास, सनी बफैलो, पीजी डिप्लोमा, पत्रकारिता, पुणे, बीए, हानर्स, इतिहास, इन्द्रप्रस्थ कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय
अध्यवसाय: कुछ वर्ष प्रिंट व टीवी पत्रकारिता
सृजन: हंस, वागर्थ, पहल, नया ज्ञानोदय, कथादेश, कथाक्रम, वसुधा, साक्षात्कार, आदि पत्र-पत्रिकाओं और वेब पोर्टल में रचनायें।
'कोई भी दिन' और 'क़िस्सा-ए-कोहिनूर', कहानी-संग्रह, ज्ञानपीठ से प्रकाशित। कविता-संग्रह 'ककहरा', शीघ्र प्रकाश्य,
सम्मान: 'कोई भी दिन', को 2007 का चित्रा कुमार शैलेश मटियानी सम्मान, 'कोबरा: गॉड ऐट मर्सी', डाक्यूमेंट्री का स्क्रिप्ट लेखन, जिसे 1998-99 के यूजीसी, फिल्म महोत्सव में, सर्वश्रेष्ठ फिल्म का खिताब मिला। 'एक नया मौन, एक नया उद्घोष', कविता पर,1995 का गिरिजा कुमार माथुर स्मृति पुरस्कार के अलावा 1993 में, कक्षा बारहवीं में, हिंदी में सर्वोच्च अंक पाने के लिए, भारत गौरव सम्मान.
सम्प्रति:‘डिअर सुज़ाना’ शीर्षक कविता-संग्रह के साथ, अंग्रेज़ी तथा हिंदी में, कई कविताओं पर काम, न्यू यॉर्क स्थित, व्हाइट पाइन प्रेस की 2013 कविता प्रतियोगिता के लिए, 'प्रिजन टॉकीज़',
शीर्षक पाण्डुलिपि प्रेषित, पत्रकारिता सम्बन्धी कई किताबों पर काम।
संपर्क:sinhapankhuri412@yahoo.ca)
मेरी पश्तो
मुझे तो बिल्कुल नहीं आती पश्तो,
न डोगरी, न कुमाऊँनी,
न गढ़वाली,
मुझे तो बिल्कुल नहीं आता,
पहाड़ चढ़ना,
कोई इल्म नहीं मुझे ढलान का भी,
न गुफाओं का, न कन्दराओं का,
वो लोग जो पाठ्यक्रम से ज्यादा जानते हों,
हिन्दुकुश और काराकोरम का भूगोल,
वो बता सकते हैं, खैबर और गोलन के रास्ते,
ऊंचाई कंचनजंघा की, शिवालिक की तराईयाँ,
और बता सकते हैं, एक से दूसरी जगह पहुँचने के तरीके,
उस एक से दूसरी जगह,
जिनके बीच सरहद पड़ती हो।
सियासी एक आवाज़
सियासी एक आवाज़
अगर आपसे ऐसी कुछ मांगें करती हो,
कि क़त्ल करना पड़े,
आपको अपना हर प्रेमी,
हर प्रेम,
और प्रेमी के होने का हर मंसूबा,
कुछ ऐसे नामांकन हों,
आपका प्रेमी बनते ही,
गुप्तचर सेवा में उसका,
आप ही पर नज़र रखने के लिए,
बताने के लिए तमाम घरेलू आदतें आपकी,
तो कैसे मुखातिब हुआ जाये,
इस सियासत से?
कब और कहाँ?
कैसे पेश की जाये बात अपनी?
(परिचय:
जन्म:18 जून 1975
शिक्षा:एमए, इतिहास, सनी बफैलो, पीजी डिप्लोमा, पत्रकारिता, पुणे, बीए, हानर्स, इतिहास, इन्द्रप्रस्थ कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय
अध्यवसाय: कुछ वर्ष प्रिंट व टीवी पत्रकारिता
सृजन: हंस, वागर्थ, पहल, नया ज्ञानोदय, कथादेश, कथाक्रम, वसुधा, साक्षात्कार, आदि पत्र-पत्रिकाओं और वेब पोर्टल में रचनायें।
'कोई भी दिन' और 'क़िस्सा-ए-कोहिनूर', कहानी-संग्रह, ज्ञानपीठ से प्रकाशित। कविता-संग्रह 'ककहरा', शीघ्र प्रकाश्य,
सम्मान: 'कोई भी दिन', को 2007 का चित्रा कुमार शैलेश मटियानी सम्मान, 'कोबरा: गॉड ऐट मर्सी', डाक्यूमेंट्री का स्क्रिप्ट लेखन, जिसे 1998-99 के यूजीसी, फिल्म महोत्सव में, सर्वश्रेष्ठ फिल्म का खिताब मिला। 'एक नया मौन, एक नया उद्घोष', कविता पर,1995 का गिरिजा कुमार माथुर स्मृति पुरस्कार के अलावा 1993 में, कक्षा बारहवीं में, हिंदी में सर्वोच्च अंक पाने के लिए, भारत गौरव सम्मान.
सम्प्रति:‘डिअर सुज़ाना’ शीर्षक कविता-संग्रह के साथ, अंग्रेज़ी तथा हिंदी में, कई कविताओं पर काम, न्यू यॉर्क स्थित, व्हाइट पाइन प्रेस की 2013 कविता प्रतियोगिता के लिए, 'प्रिजन टॉकीज़',
शीर्षक पाण्डुलिपि प्रेषित, पत्रकारिता सम्बन्धी कई किताबों पर काम।
संपर्क:sinhapankhuri412@yahoo.ca)
1 comments: on "खनकती हुई धूप में, जहाँ दिल है मेरा"
सभी रचनाएँ अर्थ समेटे हुए बहुत बहुत बधाई
एक टिप्पणी भेजें
रचना की न केवल प्रशंसा हो बल्कि कमियों की ओर भी ध्यान दिलाना आपका परम कर्तव्य है : यानी आप इस शे'र का साकार रूप हों.
न स्याही के हैं दुश्मन, न सफ़ेदी के हैं दोस्त
हमको आइना दिखाना है, दिखा देते हैं.
- अल्लामा जमील मज़हरी