बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

सोमवार, 25 मार्च 2013

हवा में उड़ते खुश्क ज़र्द पत्ते की तरह

                      ख़ालिद ए ख़ान  की क़लम से  यूँ ही आई तुम हमेशा की तरह हवा में उड़ते खुश्क  ज़र्द  पत्ते की  तरह अनायास !ओठों पर वही बेतरतीब...
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गुरुवार, 21 मार्च 2013

आँखों में कोई अश्क न मुझमे लहू बचा .....

अजय पांडेय 'सहाब' की क़लम से  1. कुछ चीखती उदास सी शामों को छोड़कर  वो चल दिया कहीं सभी रिश्तों को तोड़कर  सब कुछ बिखर गया मेरा उसके फ़िराक में  वो जो चला गया मुझे रखता था जोड़कर  मिल भी गया तो देखिये...
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मंगलवार, 12 मार्च 2013

जगन्नाथ ने लिखा था पाक का पहला क़ौमी तराना

जगन्नाथ आज़ाद (5दिसंबर 1918-24 जुलाई 2004)               जिन्ना की ख्वाहिश  पर लिखा    हुसैन कच्छी की क़लम से वर्ष 2004 में उर्दू के मशहूर शायर जगन्नाथ आज़ाद के इंतक़ाल के बाद हिंदुस्तान...
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रविवार, 10 मार्च 2013

खनकती हुई धूप में, जहाँ दिल है मेरा

              पंखुरी सिन्हा की क़लम से आख़िरी अट्टहास  अब वह आगे बैठी, टेलीविज़न के, हँस रही है, एक हँसी, एक बेहद राजनीतिक हँसी, करती हुई दिन का हिसाब,...
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