बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

गुरुवार, 8 नवंबर 2012

रंज से इस कदर याराना हुआ @ QUICK बंदी

 

 

 

 

 

 

कमलेश सिंह की कलम  से 

Fear, Oh Dear!

मैं तो बस आप ही से डरता हूँ.
मैं कहाँ कब किसी से डरता हूँ.

मेरी दुनिया है रोशनाई में,
इसलिए रौशनी से डरता हूँ  

बहर-ए-आंसू हूँ बदौलत तेरी,
तेरी दरियादिली से डरता हूँ.

जब तेरा अक्स याद आता है,
मैं बहुत सादगी से डरता हूँ.

रंज से इस कदर याराना हुआ,
मिले तो अब खुशी से डरता हूँ.

मौत से डर नहीं ज़रा भी मुझे,
हाँ, इस जिंदगी से डरता हूँ.

जाने पहचाने थे हाथ औ खंजर,
कहता था अजनबी से डरता हूँ!

वस्ल की बात पर ख़मोशी भली,
हाँ से भी, और नहीं से डरता हूँ!

वो इक रात की गफ़लत ही थी,
मैं क्यूँ फिर चांदनी से डरता हूँ!

ये क्या किया कि आसमां वाले,
मैं तुम्हारी ज़मीं से डरता हूँ!

ग़म का बारूद छुपा सीने में,
फिर इक शोलाजबीं से डरता हूँ!

तेरे रुखसार पे एक नई गज़ल,
जो लिखी है उसी से डरता हूँ!

साँस गिनती की ही बची है मगर,
घर में तेरी कमी से डरता हूँ.

तुम्हारी याद के सहराओं में,
हर घड़ी तिश्नगी से डरता हूँ!

दिल लगाने का शौक है तुमको,
और मैं दिल्लगी से डरता हूँ!

साक़िया चश्म-ए-करम कायम रख,
होश में भी तुम्हीं से डरता हूँ!

जब से सब हो गए ईमां वाले,
मैं हर एक आदमी से डरता हूँ.
का किसी से कहें, काकिसि खुद ही,
हूँ काकिसि और काकिसि से डरता हूँ! 
रोशनाई: Darkness बहर: Ocean अक्स: Countenance रंज: Sorrow सहरा: Desert तिश्नगी: Thirst ईमां: faith काकिसि: तखल्लुस | کاکسی: تخللس Pen name
| खिर्द: Samajh | तिश्नालबी: parched lips | चारागर: Doctor | आज़ुर्दगी: being unwell
——————————————

Cut it!

हमको तुमने दुश्मन जाना, छोड़ो यार!
तुमको कौनसा था याराना, छोड़ो यार!
हो सकता है होना ही इक सपना हो,
जो था वो था भी या था ना छोड़ो यार!
लाख कहा पर पाल लिया आस्तीनों में,
उन साँपों को दूध पिलाना छोड़ो यार!
किसने कहा था रह-ए-इश्क आसां होगी,
बीच रास्ते स्यापा पाना छोड़ो यार!
अहद-ए-मुहब्बत अहल-ए-वफ़ा की बाते हैं,
भैंस के आगे बीन बजाना छोड़ो यार!
खुद को तो तुम रत्ती भर ना बदल सके,
बदलेगा क्या खाक ज़माना, छोड़ो यार!
कतरे-कतरे से तुम हमरे वाकिफ़ हो,
महफ़िल में हमसे कतराना छोड़ो यार!
रौनक-ए-बज़्म-ए-रिन्दां थी चश्म-ए-साकी,
बिन उसके क्या है मयखाना, छोड़ो यार!
पैंसठ साल से राह तकत है इक बुढ़िया,
वादों से उसको बहलाना छोड़ो यार!
चाहें भी तो कैसे भूलें ज़ख़्म सभी,
तुम तो उनपर नमक लगाना छोड़ो यार!
आँख-लगे को रात जगाना छोड़ो यार,
सपनों में यूं आना जाना छोड़ो यार!
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Triveni & a postscript

हर एक बात मेरी जिंदगी की तुमसे है
वो एक रात मेरी ज़िंदगी की तुमसे है
बाकी सब दिन तो इंतज़ार के थे 

अब कोई रास्ता बचा ही नहीं
जिधर देखो बस पानी ही पानी
इस तलातुम में खुदा क्या नाखुदा भी नहीं 
तुम थे तो चट्टानों से भी लड़ जाता था
तुम थे तो तूफानों से भी लड़ जाता था
आज खुद से भी सामना नहीं होता 

फिर वही रात तो आने से रही
लगी ये आँख ज़माने से रही
शमा बुझा दो, हमको अब सो जाने दो
_____
अमेरिका में बवंडर आया तो बिजली चली गई,
हमारे गाँव में बिजली आये तो बवंडर आ जाए!
~~

Dussehra. Ten taunts

एक हम नहीं थे काबिल तुम्हारे,
उस पे इतने थे बिस्मिल तुम्हारे!
दो घड़ी और रुकते तो हम भी,
देख लेते हद्द-ए-कामिल तुम्हारे!
तीन हर्फों का जुमला बस सच्चा,
बाकी किस्से हैं बातिल तुम्हारे!
चार दिन की है ये जिंदगानी,
इसमें दो दिन हैं शामिल तुम्हारे!
पांच ऊँगलियाँ डूबी हों घी में,
मुंह में शक्कर हो कातिल तुम्हारे
छः हाथ की ज़मीं ही तो मांगूं,
बाकी सेहरा-ओ-साहिल तुम्हारे!
सात सुर से बनी मौसिकी भी,
कुछ नहीं है मुकाबिल तुम्हारे!
आठ पहरों में रहते हो तुम ही,
रात, दिन भी हैं माइल तुम्हारे!
नौ लखा हार ना दे सके हम,
कर दिया नाम ये दिल तुम्हारे!
दस ये गिनती के हैं मेरे मसले,
बन गए जो मसाइल तुम्हारे!

Raavan


पेट को रोटी,
तन को कपड़ा,
सिर को छत,
बच्चों की शिक्षा अनवरत,
वादे,
यही हैं जो ४७ में हुए,
जो १४ में होंगे!
सबको बिजली,
सबको पानी,
सबको गैस,
गरीबी, बेरोज़गारी हटाओ,
मलेरिया भगाओ,
विदेशी हाथ काटो,
मजदूरों में ज़मीन बांटो,
देश की अखंडता,
संविधान की संप्रभुता,
जय जवान, जय किसान,
और वही पाकिस्तान,
नारे,
यही हैं जो ४७ में लगे,
जो १४ में लगेंगे!
आरक्षण, सुशासन,
शोषण, कुपोषण,
मरता जवान,
मरते किसान,
भ्रष्टाचार, कदाचार,
पूँजीवाद, समाजवाद,
अपराध, उत्पीड़न,
सांप्रदायिक सद्भाव,
चीज़ों के बढ़ते भाव,
मुद्दे,
वही हैं जो ४७ में थे,
यही हैं जो १४ में होंगे
रावण,
४७ में जलाया था,
आज जल रहा है,
१४ में भी जलाएंगे,
रावण वही है,
रावण जलता नहीं है!

(परिचय :
वरिष्ठ पत्रकार . शौक़िया शायरी . हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी में
जन्म : बिहार के भितिया, बांका में, 13 जनवरी को, साल 1973
शिक्षा : स्नातक व पत्रकारिता में डिप्लोमा
सृजन : प्रचुर लिखा, प्रकाशन व प्रसारण 
सम्प्रति: दैनिक भास्कर में स्टेट हेड
संपर्क:kamlesh.singh@gmail.com)


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2 comments: on "रंज से इस कदर याराना हुआ @ QUICK बंदी "

रीतू कलसी ने कहा…

kaun si rachna ke bare me baat karu sabhi hi Umda hai, Acha likhate hain kamlesh ji

kshama ने कहा…

Deewali bahut mubarak tha!

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न स्याही के हैं दुश्मन, न सफ़ेदी के हैं दोस्त
हमको आइना दिखाना है, दिखा देते हैं.
- अल्लामा जमील मज़हरी

(यहाँ पोस्टेड किसी भी सामग्री या विचार से मॉडरेटर का सहमत होना ज़रूरी नहीं है। लेखक का अपना नज़रिया हो सकता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान तो करना ही चाहिए।)