बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

रविवार, 3 अप्रैल 2011

ख़ुशी मिली इतनी कि मन में न समय समाय


धोनी के शहर में ऐसे मना जश्‍न


आखिर सपना सच हुआ! मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम में झारखंड के सपूत ने लगाया जीत का छक्का तो रांची झूम उठी। चिल्लाई, माही तूने रख ली धरती आबा की लाज! भारतीय सेना के इस सेनापति की अभी नगर वापसी नहीं हुई है। लेकिन विजयोल्लास की चांदनी से समूची राजधानी झिलमिल कर रही है।

डोरंडा, बरियातू, मेन रोड, अलबर्ट एक्का चौक, शहीद चौक, सर्जना चौक,कांके, रातू रोड, कर्बला चौक, कांटा टोली। किसकी चर्चा की जाए। समूचा शहर ही बिंदास होकर नाच रहा है। फुलझड़ियों सा मुस्कुराता, तो खुशियां भरे पटाखे से आसमान को गुंजायमान कर रहा है। नगरवासी द्वार पट खोल मार्गो पर निकल आए हैं।

हरेक हाथों में है अबीर गुलाल। उमंग और उल्लास भरी कांति उनके चेहरे से फूट फूट रही है। आज शनिवार की शाम मानो अरमानों का चांद लेकर आई। खुशियों का ज्वार ऐसा कि गगनचुंबी इमारतें भी शरमा जाए।

पलक झपकते ही चौक, चौबारे, सड़क, गलियों को अनगिनत बाइक्स, कारों ने घेर लिया। डोरंडा में ईद होली की तरह हुलस हुलस गलबहियां करते बुजुर्ग। तो हरमू और अशोक नगर में केक खाते, टॉफी चुभलाते चहकते बच्चे। अलबर्ट चौक की छटा ही निराली दिखी।

महावीरी पताका लहराते हुए दमकते युवा। लोगों का सैलाब यहीं उमड़ आया, जिनके चेहरे के गुलाल को बूंदें शबनमी करती रहीं। हर लम्हा इतिहास में दर्ज होने को बेकरार। समा ऐसा कि शब्दों को अपन लाख पिघलाएं उसे रूप नहीं दे सकते। न पुरुष, न कोई स्त्री। गालों पर तिरंगा की छाप लिए झूमती गाती गल्र्स हॉस्टल की लड़कियां।

शहीद अलबर्ट एक्का चौक पर भी न तो कोई बच्चा है, न बूढ़ा..। जीत से दिपदिपाते चेहरे ने सभी को युवा में तब्दील कर दिया है। इम्तियाज हुसैन भी हैं और प्रकाश जैन भी, हेमंत मुंडा हैं, तो प्रभात तिर्की भी, बलविंदर सिंह की मस्ती ही अलग है। न कोई हिंदू , न मुसलमान, न ईसाई और न ही कोई सिख..मजहब तो सबका देशभक्ति है भाई।

जोश की दीवानगी में एक दूसरे पर गिरते लदते, इधर से उघर चीखते चिल्लाते लोग। लेकिन किसी को किसी तरह का गुरेज नहीं। जबकि सभी आपस में अनजान हैं। लेकिन देखभक्ति के हार ने मानो सभी को फूलों की तरह गुंथ दिया हो। यहां न तो कोई अमीर है और न गऱीब..। जीत का खज़ाना पाकर सभी हुए हैं राजा।

ढोल पर दे दनादन की थाप देतीं हथेलियां, तो नगाड़े पर थिरकती पैरों की श्रृंखलाएं। सर्जना चौक से अलबर्ट एक्का की ओर आ रही भीड़ में से किसी ने नारा लगाया, ‘भारत माता की!’, तो जयकारे की गूंज ने शहर को हिला दिया। राजधानी में दीवाली है। भले लंका जीत कर राम धौनी की वापसी न हुई हो।

आतिशबाज़ी की फुलवारियों ने हर गली नुक्कड़ को आलोकित कर दिया है। राजधानी की सड़कें चीख़ चीख़ कर कह रही हैं, रांची के लाल तूने कर दिया कमाल! भारत की इस ऐतिहासिक जीत पर चमक चमक आसमान भी अपनी मुहर लगाता रहा।

भास्कर के लिए लिखा गया 

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5 comments: on "ख़ुशी मिली इतनी कि मन में न समय समाय"

Khare A ने कहा…

yesss ek dam sahi bat kahi aapne, in dino me mumbai me hun, i v also seen the celebration of mumbaikar, in their own style, its jsur awesome, i really enjoyd to be the part of this wonderful occation.

jai ho!

Kunwar Kusumesh ने कहा…

जीत की हार्दिक बधाई.

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

धौनी ने गजब ढा दिया।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

अब इस जीत पर इतना तो बनता है न ....बधाई

shikha varshney ने कहा…

जश्न की खूबसूरत बयानगी ..गर्व और खुशी संभाले नहीं संभल रही.

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