बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

मंगलवार, 12 अप्रैल 2011

अहले नज़र समझते हैं उसको इमाम इ हिंद

बेहद महत्वपूर्ण व्यक्तित्व .  भारतीय प्राचीन मानस में श्रधेय आज समूचा  राष्ट्र उनका जन्मोत्सव मना  रहा है.सभी को हार्दिक शुभकानाएं!
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1 comments: on "अहले नज़र समझते हैं उसको इमाम इ हिंद"

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न स्याही के हैं दुश्मन, न सफ़ेदी के हैं दोस्त
हमको आइना दिखाना है, दिखा देते हैं.
- अल्लामा जमील मज़हरी

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