बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलता। इससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलता। कई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.
maa par kendrit kavitaa me kavi kaa ek badaa chintan samane aataa hai. badhai... iss kavitaa k liye. kamal se kabhi mulaqat hogee hi. kyonki dilli aata hu to nbt jata hi jataa hu aksar.
कमाल की कवितायें एक ऐसे संसार का परिचय कराती हैं जहां निम्न मध्य वर्ग की चिंताएं हैं. समाज और देश की चिंता हैं.विसगतियों के प्रति एक गहर विषाद है ,दबते दबते उभरता आक्रोश है.
शहरोज़ साहब आपके मेल दोपहर ही मिल गयी थी.माफ़ी दें ज़रा ताखीर हुई आने में.वैसे आप ने यह अच्छा तरीका निउकाला है.खबर तो हो जाती है.मैं कहाँ आप लोगों की जमात में आ पता हूँ.
कहा जाता है कभी बरसाती रात में अस्सी बरस के बुद्ध ने यहां गंगा पार की थी, अब गांधी सेतु है. वैसे मैंने हाजीपुर को इस पार से ही महसूसा है, आपकी कविता में झलक भी दिख गई.
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14 comments: on "शहर आया कवि गाँव की गोद में"
Maa ko leke likhi rachana behad pasand aayi! Duniyame karodon maayen hoti hain,phirbhi wo ek ajooba bani rahti hai!
maa par kendrit kavitaa me kavi kaa ek badaa chintan samane aataa hai. badhai... iss kavitaa k liye. kamal se kabhi mulaqat hogee hi. kyonki dilli aata hu to nbt jata hi jataa hu aksar.
कमाल की कवितायें एक ऐसे संसार का परिचय कराती हैं जहां निम्न मध्य वर्ग की चिंताएं हैं. समाज और देश की चिंता हैं.विसगतियों के प्रति एक गहर विषाद है ,दबते दबते उभरता आक्रोश है.
माँ के लिए लिखी उनकी कविता ज़्यादा ध्यान इसलिए भी खींचती है कि उसका ट्रीटमेंट औरों से अलग है.अपनी सहजता में एक अलग संवेदना का सृजन करती है.
कमाल साहब की कविता हमें अच्छी लगी.बधाई !!
माँ कविता का ट्रीटमेंट अलग है.
एम.चौक और बी.चौक
अस्तित्व में आया
लोगों ने सोचा
हम अपनी सुविधा से
इन शब्दों का इस्तिमाल कर लेंगे.
kya kahna !!!
कमाल साहब ने माशा अल्लाह खूब अदब नवाज़ी की है.गाँव की मंज़र कशी एक कवी के बहाने या उस कवी की बेचैनी को जिस खुश उस्लूबी से उभारा है, भाई कमाल है कमाल !!
हम कह सकते हैं कि कमाल ने अपने नाम के तासीर को बरक़रार रखा है.खुदा उन्हें क़ायम दायम रखे आमीन !
शहरोज़ साहब आपके मेल दोपहर ही मिल गयी थी.माफ़ी दें ज़रा ताखीर हुई आने में.वैसे आप ने यह अच्छा तरीका निउकाला है.खबर तो हो जाती है.मैं कहाँ आप लोगों की जमात में आ पता हूँ.
तीनों कविताएँ अलग रंग लिए हुए ....माँ पर लिखी रचना को पाठक आत्मसात कर लेता है..
गाँव से आया कवि ...बहुत पसंद आई
तीनों कवितायें बहुत पसंद आयीं हैं...
विशेषकर माँ पर लिखी गयी कविता..
आभारी हूँ...
कहा जाता है कभी बरसाती रात में अस्सी बरस के बुद्ध ने यहां गंगा पार की थी, अब गांधी सेतु है. वैसे मैंने हाजीपुर को इस पार से ही महसूसा है, आपकी कविता में झलक भी दिख गई.
कमाल कि अभिव्यक्ति! बहुत खूब! बेहतरीन!
गजब का मेल हॆ इन तीनो कवितावो मे..
सर्वप्रथम मां हे तो दूसरी तरफ भारत मां की दो सतांन मुस्लिम ऒर हिन्दू..वाकई मजा आ गया
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