कोलकता
से सैयद शहरोज़ क़मर
मां काली के प्रति कोलकाता में आस्था की गुंजलक दीपावली के अनगिनत दीपों पर भारी है। मंदिरों के समूह दक्षिणेश्वर में पहुंचने वाले श्रद्धालुओं में धर्म और जाति से मुक्त क़तार समय की चिंता नहीं करती। मोहम्मद नबीरुल अख्तर सात वर्षों से यहां आ रहे हैं। धनतेरस पर पास लगी दुकानों से बर्तन खरीद रहे कमाल उद्दीन हर माह यहां आते हैं. चाँदी से बनाए गए कमल के फूल की हजार पंखुड़ियों पर भगवान शिव के ऊपर खड़ी हुई काली मां के दर्शन के इंतज़ार में द्वार पर मिले नबीरुल अपनी मित्र इति बसाक के साथ पहुंचे थे। इन दोनों के चेहरे पर धूप परमहंस की आध्यात्मिक ऊर्जा को अतिरिक्त बल दे रही थी। प्रमुख मंदिर भवतारिणी की आराधना करते-करते कहते हैं कि रामकृष्ण ने परमहंस की अवस्था पा ली थी. उसी तेज को प्राप्त करने दक्षिणेश्वर से कालीघाट समूचा शहर कालीमय हो चुका है. साल्ट लेक से पहुंची ऋषभ, पल्लव, शांभवी, सिमरन, अफ़साना, असलम की टोली को नवरत्न की तरह निर्मित 46 फुट चौड़ा तथा 100 फुट ऊँचा मंदिर उन्हें सांसारिक और आध्यात्मिक शिखर छूने को प्रेरित करता है. इधर हरे-भरे, मैदान पर स्थित इस विशाल मंदिर के चारों ओर भगवान शिव के बारह मंदिर के गुम्बद को अपने अपने मोबाइल में क़ैद करने की युवाओं में होड़ रही. छपरा से आई कामिनी देवी पाठक हुगली हो चुकी गंगा में स्नान करने बाद शुचिता मयी थीं. वे अपने कंप्यूटर इंजीनियर बेटे के पास दिवाली मनाने कोलकता आई ही हैं. कहती हैं मां काली के आशीर्वाद से ही उनके घर लक्ष्मी जैसी पोती आई है.
यहां
से कालीघाट के मार्ग पर हर सड़क
और गली पर मां के भक्त पंडाल
सजाने में तल्लीन मिले। कालीघाट
मंदिर आये बिना आप मां की पूजा
अधूरी मानी जाती है. इस
शक्तिपीठ में स्थित प्रतिमा
की प्रतिष्ठा कामदेव ब्रह्मचारी
(सन्यासपूर्व
नाम जिया गंगोपाध्यानिकल
बेहद हर्षितय) ने
की थी। मान्यता है कि माँ सती
के दायें पैर की कुछ अंगुलियां
इसी जगह गिरी थीं. अर्जेंटीना
से भारत घूमने आयीं मार्था
और इंजिलीना मंदिर से लौटी
थीं. कहा
कि फोटो नहीं ले सकी,
लेकिन मां की
प्रतिमा में सोने की बनी बाहर
तक निकली हुई जिव्हा अद्भुत
है. देवी
काली भगवान शिव के छाती पर पैर
रखी हुई हैं। उनके गले में
नरमुण्डों की माला है। उनके
हाथ में कुल्हाड़ी है। माता
काली की लाल-काली
रंग की कास्टिक पत्थर की मूर्ति
स्थापित है। शाम के धुंधलके
को हौले-हौले
तेज़ होते विद्युत प्रकाश
परास्त कर रहे थे. वहीं
उससे कहीं अधिक तेज़ पगों से
अपराजिता माता के दर्शन को
मंदिर में प्रवेश कर रही थी.
प्रमुख
ह्रदय स्थल स्प्लानेड के सड़क,
गलियारे या
सारिणी और कूचे हों हर और काली
पूजा का उजास। माँ के तेज के
उल्लस में समूचा महानगर आगोश
में. लगभग
50 से 60
हजार पंडाल।
शहर से ४० किमी पर बरासार व
मध्य ग्राम और नोहाटी की तरफ
जाने वाली बसें और रेल श्रद्धालुओं
से अटी. वहाँ
के पूजा पंडाल आकर्षक हैं ही,
बंगाली सिने
जगत की कई नामचीन नयिकाएँ
पंडाल के पट खोलने पहुँचने
वालीं थीं. लेकिन
पार्क स्ट्रीट के पास रौशनी
में नहाये इलाक़े को प्रीति
जिंटा ने और मनमोहक बनाया।
वो सेंट्रल कोल्कता यूथ असोसीएशन
के ३५ वर्ष पूरे होने पर भरे
मजमे से मुखातिब रहीं। यहाँ
मां के नौ रूप भक्तों को
स्नेहाशीष की बौछार करते रहे.
उनकी सेवा में
संस्था के एम क़मर, ज़ैद
खान, मुन्ना
वारसी, अनवर
आलम, आरज़ू
खान विशाल खटीक, ललित
अग्रवाल, दीपांकर
घोशाल, पार्षद
सुष्मिता भट्टाचार्य के साथ
आस्था की इस बेला में गंगा-जमनी
संस्कृति की तस्दीक़ करते रहे.
दैनिक
भास्कर के सभी संस्करणों में
11 नवंबर
2015 को
प्रकाशित
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