बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

बुधवार, 25 नवंबर 2015

दुनिया में कराटे का हिन्दुस्तानी नूर

आएशा कोच एमए अली, मां शकीला और भाई फारूक के साथ खतरनाक बीमारी और गरीबी आयशा के पंच के सामने बौने सैयद शहरोज़ क़मर कोलकता से न फल-दूध नसीब, न ही अन्य पौष्टिक आहार। पिता जैसी कर्मठता...
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गुरुवार, 12 नवंबर 2015

कोलकाता में एकता व आस्था की गुंजलक

कोलकता से सैयद शहरोज़ क़मर मां काली के प्रति कोलकाता में आस्था की गुंजलक दीपावली के अनगिनत दीपों पर भारी है। मंदिरों के समूह दक्षिणेश्वर में पहुंचने वाले श्रद्धालुओं में...
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