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: माणिक
बोस
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जनता
दरबार में झारखंड सीएम आवास पहुंचे
करीब पांच सौ लोग
उन्हें आश्वासन कम, डांट मिली अधिक
सैयद
शहरोज कमर की क़लम से
सीएम रघुवर हैं, दर्द को समझेंगे, इस आस में शनिवार को करीब पांच सौ लोग मुख्यमंत्री के जनता दरबार में पहुंचे थे। दरअसल सूबे में मुख्यमंत्री समस्याओं के निदान का अंतिम पड़ाव होता है, लेकिन ढेरों उम्मीदें सीएम आवास से खाली हाथ ही लौटीं। रांची के जालान रोड से आई थीं 79 वर्ष की लक्ष्मी देवी। उनकी झुर्रियों की तरह ही बेचैन उनकी समस्या है। नाती के सहारे सुबह दस बजे ही वह सीएम के द्वार पहुंच गई थीं। कुरेदने पर सुबकने लगती हैं। उन्होंने रमेश प्रसाद साहू को 2009 में किराए पर अपना दो कमरा गोदाम के लिए दिया। किराया तय हुआ सात हजार। जो उन्हें पूरा कभी न मिला। पर धमकी व गाली-गलौज जरूर मिली। किराएदार हटाने की गुहार वह 2011 से कोतवाली थाना, महिला आयोग से लेकर एसपी तक लगा चुकी हैं, पर अनसुनी रही। मुख्यमंत्री ने लक्ष्मी की सुनी, पर पालकोट गुमला से घिसट-घिसट कर चलकर आई मुक्ता कुमारी जैसे ढेरों लोगों को उनकी डांट भी सहनी पड़ी। उत्क्रमित हाईस्कूल शिक्षक नियुक्ति परीक्षा में 72 प्रतिशत अंक आने पर भी मुक्ता की नियुक्ति नहीं हुई। जैक का कहना है कि दोनों पैरों से नि:शक्तों के लिए सीट नहीं है। जनता दरबार में इससे पहले तीन बार वह आ चुकी हैं, कभी सीएम से रूबरू न हो सकीं। जब चौथी दफा मौका मिला, तो सीएम बोले, चलिए-चलिए आगे बढ़िये। आपकी बात सुन ली गई। सीएम के एसी कक्ष से बाहर चिलचिलाती धूप में जब मुक्ता पहुंची, तो बिफर पड़ी, इस हाल में तो बेटी बचाओ, कन्यादान योजना जैसी बातें फिजूल हैं। एक लाठी ठकठकाते चलती हुई पहुंची हया कुमारी व मुक्ता का दर्द साझा है।
इनके
दुख को विस्तार देती मिलीं,
मुजफ्फरपुर
में फिलहाल पिता शिवजी चौधरी
के साथ रह रहीं पूनम देवी।
उनका जमशेदपुर में हंसता-मुस्कुराता
घर-आंगन
था। बीएसएफ से रिटायर होकर
घर आए उनके पति की गोली मारकर
जमीन-विवाद
में उनके भाइयों ने ही हत्या
कर दी। भाभी- भतीजे
को घर से निकाल दिया। पूनम दो
बच्चे को लेकर कभी रांची में
बहन के पास, तो
कभी पिता के पास। सीएम ने कहा,
पुलिस से मिलिए।
यहां आकर भी एक विधवा व दो अनाथ
बच्चों का जीवन पेंडुलम की
तरह डोलता ही रहा। इधर,
उमा देवी
कहते-कहते
कांप जाती जरूर हैं कि उन्हें
उनके बेटे से ही जान का खतरा
है। पर उनका ममत्व पति त्रिवेणी
प्रसाद शर्मा को पुलिस में
शिकायत करने से मना करता है।
सीएम ने इन्हें भी घर पर ही
मामला सुलझा लेने की सलाह दी।
सीएम
चाय की चुस्कियां लेने की
मुहलत में थे, तभी
सुबोध गुप्ता जब अपने 18
साल के नि:शक्त
बेटे को उठाए कक्ष में दाखिल
हुए। बरियातू में चाय की दुकान
चलाकर वे किसी तरह चार नि:शक्त
बच्चों की परवरिश कर रहे हैं।
कई जगह उनके इलाज के लिए गए,
पर पैसे की कमी
हर कहीं रोड़ा बना।
बहाली
से वंचित हजारों जवान
राजेश
चौबे, नरेश
महतो और रवि कुमार जैसे हजारों
युवाओं ने 2011 में
जैप में बहाली के लिए परीक्षा
दी थी। लेकिन बोर्ड संख्या
दो और तीन का रिजल्ट तो आ गया।
जिस बोर्ड के अध्यक्ष शहीद
पुलिस अधिकारी अमरजीत बलिहार
थे, उसका
परिणाम ही नहीं निकल सका।
बलिहार की शहादत के बाद दूसरे
को यह दायित्व ही नहीं सौंपा
गया। बेहद उदास स्वर में राजेश
कहते हैं, सीएम
बोले इस बोर्ड का रिजल्ट अब
नहीं निकलेगा।
जमीन
पर दलालों का कब्जा
खोरहा
टोली की रेजिना बारला के पति
जॉन बारला ने चार कट्ठा जमीन
खरीदी, लेकिन
उसपर कब्जा अबतक नहीं हो सका।
उनके पति की मौत भी हो गई। मामला
कोतवाली थाना में दर्ज है।
सुमित लकड़ा के दादा ने 1933
में लालपुर
में जमीन खरीदी थी, लेकिन
अब किसी ने जाली दस्तावेज
बनाकर किसी और को बेच दिया।
बानो से पहुंची दलित महिला
कल्पना तमगड़िया के ललाट से
गिरता पसीना भी उनके होटल व
घर से बेदखल करने का दर्द बयान
ही तो था।
विस्थापन
की अलग कहानी
खादगढ़ा
बस स्टैंड से पहुंची करीब दो
सौ महिलाओं की एक ही फरियाद
थी, उन्हें
उनके आशियाने से बेघर न किया
जाए। नगर निगम सरकारी जमीन
पर निर्माण कराना चाहता है,
जहां पर ढेरों
लोग झुग्गियां बनाकर रह रहे
हैं। सीएम ने इन्हें भरोसा
दिया है कि उनके आवेदन पर विचार
किया जाएगा। अतिक्रमण के बहाने
उजाड़े गए कचहरी के दुकानदारों
की पीड़ा है कि उन्हें उजाड़
तो दिया गया, पर
वादे के बाद भी आजतक उन्हें
जगह नहीं दी गई। करीब सौ पारा
टीचर और दस खेल प्रशिक्षक की
मांग उनकी स्थायी बहाली की
थी। मुख्यमंत्री ने इन्हें
भी दिलासा ही दिया।
शहीद
के परिजन की पुकार
प्रदीप
कुमार सीआरपीएफ के जवान थे।
11 मार्च
2014 में
सुकमा छत्तीसगढ़ में नक्सली
हमले में शहीद हो गए। उनकी
पत्नी आशारानी व चार बच्चे
कुटे में रहते हैं। उन्हें
सरकार से न कुछ आर्थिक मदद
मिली, न
ही अनुकंपा नियुक्ति,
लेकिन नए सचिवालय
भवन के नाम पर उनके घर को लेने
की तैयारी सरकार जरूर कर रही
है। आशा बड़ी आशा लेकर पहुंची
थी। जब सीएम से मिलकर निकलीं,
तो खामोश थीं।
उनकी बहन उषा बोलीं, सीएम
ने कहा है मामले को देखेंगे।
दैनिक
भास्कर, रांची
के 20 जून
2015 के अंक
में प्रकाशित
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