बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

गुरुवार, 8 जनवरी 2015

धुलवा दिया सोफ़ा कि घर में अकर्मण्यता की खटमल न फैल जाए

मुनीश्वर बाबू अपनी लाडली बिटिया प्रीति (लेखिका) के साथ आज़ादी के योद्धा मुनीश्वर बाबू  उर्फ़ तेगवा बहादुर को यूँ याद किया बेटी ने प्रीति सिंह की क़लम से मॉर्निंग वॉक से लौटने के बाद वो उदास होकर बैठ गए थे. उनकी आंखों में आंसू...
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मंगलवार, 6 जनवरी 2015

कौन जानता है आज़ादी के योद्धा तेगवा बहादुर को

बिहार के पूर्व मंत्री व समाजवादी नेता मुनीश्वर प्रसाद सिंह   प्रीति सिंह की क़लम से "तेगवा बहादुर सिंह" के नाम से प्रसिद्ध मुनीश्वर प्रसाद सिंह का जन्म 29 नवम्बर 1921  को वैशाली जिला के महनार थाना के बासुदेवपुर चंदेल गांव...
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रविवार, 4 जनवरी 2015

ज़मीन का संघर्ष और संघर्ष की ज़मीन

बदलते समय में भूमिसंबंध , किसान और जनसुनवाई अपर्णा की क़लम से  भारत में लंबे समय समय से परंपरागत पेशे और विकास का झगड़ा चल रहा है और इस बात को साहित्य में भी कुछ लेखकों ने उठाया है . प्रेमचंद की प्रसिद्ध कृति ‘रंगभूमि’ में...
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शनिवार, 3 जनवरी 2015

रण जारी है ‘भेर’ के अस्तित्व के लिए

संघर्ष कर रहा है आखिरी सिपहसालार छेदी मिस्त्री लेखक के साथ छेदी मिस्त्री   कुंदन कुमार चौधरी की क़लम से कभी रणभेरी की आवाज से सेनाओं में जोश भर उठता था। उनकी भुजाएं फड़कने लगती थीं।...
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गुरुवार, 1 जनवरी 2015

अन्याय के ख़िलाफ़

  शहनाज़ इमरानी की कविताएं जंग अधूरी रह जाती हैकितना आसान है आगे बढ़नाअगर सामने रास्ते हैमगर रास्ते सब के लिये कहाँ होते हैंबाहर का सन्नाटा और अन्दर की खलबली मेंकुछ लोग चुनौती को स्वीकारते हैखेतों, कारखानों में कई करोड़किसान और मज़दूरकई...
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(यहाँ पोस्टेड किसी भी सामग्री या विचार से मॉडरेटर का सहमत होना ज़रूरी नहीं है। लेखक का अपना नज़रिया हो सकता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान तो करना ही चाहिए।)