फोटो:संदीप नाग |
बेलुर मठ का रंग अजूबा
सैयद शहरोज़ कमर की क़लम से
हुगली में सूरज
डूब रहा है। उसकी ज़र्दी ने स्नेहा चौधरी की सांवली रंगत को और
सुनहरा बना दिया है। स्नेहा स्वामी विवेकानंद के कमरे के सामने ध्यान
मग्न है। यह ज़र्दी उनके बिस्तर की चादर पर भी पसरी है। सिरहाने तकिये के
सहारे टिकी स्वामी की तस्वीर को टुक देखती स्नेहा की श्रद्धा और उल्लास को
दायें-बांये गुलदान में सजे ताज़ा फूल मोअत्तर कर देते हैं। यह खुशबू दुनिया
के सारे युवाओं को यहाँ खींच लाती है। स्नेहा गुहावटी से हैं। डॉ कविता और
दिनेश वर्मा देहरादून से आये हैं। वहीँ एनिमेशन फ़िल्म बनाने वाले अबीर
धनबाद से।
इस भवन में सदी के महापुरुष स्वामी विवेकानंद 1898 से अपनी अंतिम समाधि 4 जुलाई 1902 तक रहे। भवन के सामने आम्र-वृक्ष के नीचे आगंतुकों से मिलते थे। महज़ एक खाट ही उनका आसन होता था। इस पेड़ को अभी ईंट के तीन स्तंभ ने संभाले रखा है। यह दरख्त तुरंत युवा नरेन के विशाल व्यक्तित्व की तरह उभरता है। और विश्व के युवाओं को अच्छादित कर देता है। जबकि यह तीन पिलर स्वामी के परिवर्तन कारी विचारों को रौशन। इसकी दमक बेल्लुर मठ द्वार खुलने के इंतज़ार में खड़ी नौजवानों की असंख्य भीड़ में साफ़ दीखती है। उठो, जागो और तब तक रुको नहीं, जब तक तुम्हीं मजिल न मिल जाए। उनके इसी त्रिदृष्टि ने देस-दुनिया के युवाओं के चेहरे-मोहरे बदल दिए।
स्नेहा दिल्ली विवि से मॉस कॉम कर रही हैं, उन्हें
स्वामी जी का यह कथन हर समय प्रेरित करता है,अपने आप में विशवास करो, जो खुद
को नहीं जानता वो ही नास्तिक है।
डॉ कविता दून में मेडिकल प्रैक्टिस करती हैं, कहती हैं, विवेकानंद कहते थे: असफलताओं
की चिंता मत करो।यह होना है, लेकिन जीवन का सौन्दर्य यही तो है। स्वामी के
हवाले से बोलती हैं, जीवन में संघर्ष नहीं तो बेकार है। कामयाबी तभी मिलती
है। इसी सूत्र ने विपरीत हालातों में भी उन्हें हतोत्साहित नहीं किया। उनकी
पढाई के सामने आर्थिक अडचनें पार होती गयीं। वहीँ, धनबाद के अबीर कहते हैं,
उन्होंने स्वामी की एक बात गांठ बाँध ली है। वो कभी कमजोरी की चिंता नहीं
करते। हमेशा शक्ति का विचार करते हैं।
उत्सव सेनगुप्ता खड़गपुर से आये हैं।
रामकृष्ण परमहंस के प्राचीन मंदिर की सीढियां उतरते हुए, उनके पग में
विश्वस्त तेज है। इस मंदिर में परमहंस ने 1899 तक पूजा की। यहीं शारदा देवी और
विवेकानंद ने भी धुनी रमाई थी। उत्सव विवेकानंद को दोहराते हैं, स्नायु को
मज़बूत बनाओ। अपने पैर पर खड़े होने में ही कल्याण है।
हुगली किनारे दो नाव आकर रूकती है। वहीँ मुख्य द्वार
से फिर एक रेला अध्यात्म की चाह में मठ परिसर में प्रवेश करता है। यह लहर
सिर्फ हुगली की नहीं है, न ही महज़ धर्म का प्रवाह है। यहाँ आने वाले
गुरु-शिष्य परम्परा के एतिहासिक उदाहरण को नमन करने आये हैं। मुख्य मठ
में पूजा शुरू हो गयी है। सुबह पहली पूजा में स्थानीय भक्त होते हैं। लेकिन
अब तो पंजाब, बिहार और केरल के लोग भी हैं। इससे पहले माँ शारदा और ओम के
मंदिर में मत्था टेकना श्रद्धालु नहीं भूलते।
मोनिशा मंडल, बीए को गिला है
कि युवाओ के आदर्श विवेकानंद को समुचित ढंग से न समझा गया, न ही प्रचारित
किया गया। उन्होंने कहा कि स्वामी ने दलित संस्कृति-समाज को अहमियत दी। वे
हर चीज़ को तर्क की कसौटी से परखते थे। मोनिशा भी मिथ्या आचरणों और आडम्बरों
का विरोध करती हैं। आसनसोल की शर्मिष्ठा घोष बीकॉम में हैं। उनके लिए
विवेकानंद रोल मोडल हैं। कहती हैं, करो अपने मन की। अपनी इच्छा की। शनिवार
की सुबह यहाँ स्कूली बच्चों का जमावडा होगा। परिसर के अन्दर सड़कों की
मरम्मत की जा रही है। संग्रहालय के बाहर इसके सबब भीड़ है। रांची के ऋषभ को
किसी तरह जगह मिल गयी है। वो हर वर्ष यहाँ आते हैं। उन्होंने विवेकानंद को
पढ़ा ही नहीं, गुना भी है। इसका प्रभाव उनकी शिष्टता में साफ़ झिलमिलाता है।
बी-टेक के छात्र ऋषभ आनंद को स्वामी का विदेश में दिया पहला व्याख्यान शब्दश: याद है। प्रियंका शाह भी बी-टेक कर रही हैं। सिलीगुड़ी में रहती
हैं। उन्हें स्वामी जी की गुरु निष्ठा यहाँ खींच लाती है। उन्हीं के शहर के
नावेशेंदु पाल ने कुछ साहित्य खरीदा है। कहते हैं कि देश को जानने
के लिए ज़रूरी है। (बेलुर मठ से )
युवा दिवस पर दैनिक भास्कर के सभी संस्करणों में प्रकाशित 12.01.13
युवा दिवस पर दैनिक भास्कर के सभी संस्करणों में प्रकाशित 12.01.13
2 comments: on "हुगली किनारे विवेक का आनंद"
padhna achchha laga...
बेहतरीन लिखा है शहरोज जी...बधाई...उसी रोज आपको कॉल किया लेकिन आप नेटवर्क एरिया के बाहर थे उस वक्त.
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रचना की न केवल प्रशंसा हो बल्कि कमियों की ओर भी ध्यान दिलाना आपका परम कर्तव्य है : यानी आप इस शे'र का साकार रूप हों.
न स्याही के हैं दुश्मन, न सफ़ेदी के हैं दोस्त
हमको आइना दिखाना है, दिखा देते हैं.
- अल्लामा जमील मज़हरी