बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

बुधवार, 30 मई 2012

टूट कर तो पास था जीत कर बिख़र गया

पंजाब का दो काव्य आबा     देविंदर सिंह जोहल की क़लम से 1 एक पल ग़ुफ़ा में तेरी आंखों से पानी किस बात पे निकला कुछ पता ना चला ना तू ग़मगीन थी न हालात नमकीन थे बस मै बोल रहा था या शायद मेरा अपनापन खुल रहा...
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शनिवार, 5 मई 2012

अरुंधति राय ने दुनिया के सामने बदशक्ल भारत दिखलाया

अच्छा है कि हिंदी में कोई अरुंधति राय नहीं है  अजय तिवारी (सैयद शहरोज़ कमर से संवाद) डॉ. रामविलास शर्मा जैसे शिखर सामाजिक, सांस्कृतिक और आलोचक का  नवीनतम पाठ प्रस्तुत करने का आपको  श्रेय दिया जाता है। मुझे ऐसा...
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(यहाँ पोस्टेड किसी भी सामग्री या विचार से मॉडरेटर का सहमत होना ज़रूरी नहीं है। लेखक का अपना नज़रिया हो सकता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान तो करना ही चाहिए।)