पंजाब का दो काव्य आबा
देविंदर सिंह जोहल की क़लम से
1
एक पल ग़ुफ़ा में
तेरी आंखों से
पानी किस बात पे निकला
कुछ पता ना चला
ना तू ग़मगीन थी
न हालात नमकीन थे
बस मै बोल रहा था
या शायद
मेरा अपनापन खुल रहा था
किसी ग़ुफ़ा के दरवाज़े जैसा
दरीचे पे सूर्य का पहरा था
भीतर बुझ चुके दीप की महक थी
या लौ पे जल रहे मास की दुर्गंध
यकायक तेरी आवाज़ में
न जाने कहां से क्या आया
तेरॊ उंगलियाँ छुपा रही थी
या शायद सहला रही थी
आखों की सतह पे आए मोती
उसी एक पल में
तेरा हाथ
मेरे हाथ तक कैसे आया
बस पता ही न चला
बक्त का बह पल शायद
ग़ुफ़ा के गुम्बद में बंद था
मेरी आंख
तेरी आखों में कैसे उतर गई
शायद किसी पल का भी वकफ़ा नहीं था
मौसम का मिज़ाज एक तरफ़ा नहीं था
तू नदी नहीं थी
मैं पानी कैसे हो गया
तेरे होंठ कुछ कुछ खुले
जुबान शायद ज़रा सा लर्ज़ी
मेरी धड़कन तक आवाज़ आई
प्रेम जैसा कोई लफ्ज़ था या नहीं था
अहसास की इबारत थी
उसी पल दरवज़े पे थी
ताज़ा अतीत की दस्तक
वक्त के गुम्बद से मै यकायक बाहर था
अपनी हथेली पे
नमी के शिलालेख़ थे
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2
मौत की सौगात
मुझे याद से निजात दे
सकूं की एक रात दे
मैं हूं हादसों में जी रहा
मुझे मौत की सौगात दे
बदन में रूप क्या मिला
करूप दिल से हो गया
मुझे रंग भी बेरंग दे
मुझे जात भी कुजात दे
मुझे मंज़िलों का हुलास ना
मुझे रास्तों की प्यास है
लबों को नमीं की चाह नहीं
मेरी रूह को प्रभात दे
इधर भी मैं उधर भी हूं
तुझी का ही मैं घर भी हूं
रहूं पास ही जाना कहां
तू अहद की बस बात दे
मैं टूट कर तो पास था
मैं जीत कर बिख़र गया
मुझी से मुझ को छीन ले
मुझी से मुझ को मात दे
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पत्रकार विदुषी ऋतु कलसी के प्रति हम आभारी हैं. जिनकी बदौलत हमें जोहल साहब जैसे बुजुर्गवार सुगढ़ कवि और उनकी इतनी अच्छी कविता मिली.अनुवाद ऋतु का ही. वह कहती हैं: देविंदर जोहल एक सवेदनशील कवि हैं उनकी कविताएं रिश्तों के नाज़ुक अहसासों को खुबसूरत लफ़्ज़ों में अभिव्यक्त करती हैं
(कवि-परिचय
जन्म: 13 अप्रैल १९५७
सृजन: पंजाबी की पत्रिकाओं में कविताओं का प्रकाशन। कविता संकलन के प्रकाशन की तैयारी।
सम्प्रति: आल इंडिया रेडियो जालंधर में प्रोग्राम एग्जीक्यूटिव पद पर कार्यरत।)
6 comments: on "टूट कर तो पास था जीत कर बिख़र गया"
इन सुन्दर कविताओं को हम तक पहुँचाने के लिए आभार!
बहुत ही सुन्दर और प्रभावी कवितायें।
Behad sundar rachnayen hain!
्बेहतरीन कवितायें
एक अच्छी कविता मिली ... जोहल साहब कीकलम बोलती सी लगती है ... कलम हैं या आवाज़ ... उन्हें पढ़ने का अवसर केने के लिए धन्यवाद ...
behtareen rachna !
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- अल्लामा जमील मज़हरी