पंकज शुक्ल की क़लम से
फरवरी की पांचवीं तारीख़
वो जो हलचल है तेरे दिल में मेरी हरकत है,
मेरी जुंबिश ही तेरे हुस्न की ये बरकत है।
मेरी गुस्ताख़ नज़र ने तुझे फिर से देखा,
तू कुछ औऱ खिली, और रंगीं शफ़क़त है।
गुम हूं पास तेरे तू ही ढूंढती मुझको,
मेरे सीने में छिपी क्या ये तेरी हसरत है।
तेरे करीब हूं, फिर भी जुदा सी तू मुझसे,
मेरी तदबीर से संवरी ये किसकी किस्मत है।
तेरा ये गोरा रंग, फ़ितरत मेरी ये काली सी,
ना तू मंदिर में रहे फिर भी मेरी इबादत है।
2.
रात इक ख़्वाब सा ..
रात इक ख्वाब सा खटका इन आंखों में,
सहर के साथ ही क्यूं तू घर से निकली।
सुबह की धूप सी गरमी है तेरी सांसों में,
फिर कहीं दूर तू मुझसे बचके निकली।
गुजर न जाए ये लम्हा इसी उलझन में,
मेरे बालिस्त में क्यूं तेरी दुनिया निकली।
मेरे उसूल मेरी नीयत ही मेरा धोखा है,
तू कहीं दूर औ चाहत तेरी मुझसे निकली।
क्यूं रंगरेज हुआ मैं तेरी रंगत पाकर
मेरी हर जुंबिश में तेरी धड़कन निकली।
तेरे हुस्न की हसरत यूं पा ली मैंने
तेरे इनकार में भी अब हां ही निकली।
मेरी मदहोशी का ये असर है तुझ पर
सरे राह तू अब से तनकर निकली।
सहर के साथ ही क्यूं तू घर से निकली।
सुबह की धूप सी गरमी है तेरी सांसों में,
फिर कहीं दूर तू मुझसे बचके निकली।
गुजर न जाए ये लम्हा इसी उलझन में,
मेरे बालिस्त में क्यूं तेरी दुनिया निकली।
मेरे उसूल मेरी नीयत ही मेरा धोखा है,
तू कहीं दूर औ चाहत तेरी मुझसे निकली।
क्यूं रंगरेज हुआ मैं तेरी रंगत पाकर
मेरी हर जुंबिश में तेरी धड़कन निकली।
तेरे हुस्न की हसरत यूं पा ली मैंने
तेरे इनकार में भी अब हां ही निकली।
मेरी मदहोशी का ये असर है तुझ पर
सरे राह तू अब से तनकर निकली।
3.
फिर भूलूं, क्यूं याद करूं..
तुम ही छिटक के दूसरे का चांद हो गईं।
घनघोर घटाटोप से मुझको कहां था डर,
तुम ही चमक के दूर की बरसात हो गईं।
रक्खा बचा के ग़म को तेरे नसीब से,
इतनी मिली खुशी के इफ़रात हो गईं।
गाफिल गिरेह भी होकर था तो मेरा यक़ीन,
तुम क़ातिल के हाथ जाकर वजूहात हो गईं।
{कवि-परिचय: जन्म: मंझेरिया कलां (उन्नाव, उत्तर प्रदेश) में ।
शिक्षा:शुरुआती पढ़ाई जोधपुर और फिर गांव के प्राइमरी स्कूल में। कॉलेज की पढ़ाई कानपुर में। सिनेमा की संगत बचपन से। सरकारी नौकरी छोड़ पत्रकारिता सीखी.
फ़न की गर्दिश: अमर उजाला में तकरीबन एक दशक तक रिपोर्टिंग और संपादन। फिर ज़ी न्यूज़ में स्पेशल प्रोग्रामिंग इंचार्ज। प्राइम टाइम स्पेशल, बॉलीवुड बाज़ीगर, मियां बीवी और टीवी, बोले तो बॉलीवुड, भूत बंगला, होनी अनहोनी, बचके रहना, मुकद्दर का सिकंदर, तुम मुझे यूं भुला ना पाओगे, बेगम की महफिल, वोट फॉर खदेरन और वोट फॉर चौधरी जैसी टीआरपी विनिंग सीरीज़ का निर्माता-निर्देशक रहने के दौरान चंद बेहतरीन साथियों से मिलना हुआ। एमएच वन न्यूज़ और ई 24 की लॉन्चिंग टीम का हिस्सा। ज़ी 24 घंटे छत्तीसगढ़ का भी कुछ वक्त तक संचालन।
बतौर लेखक-निर्देशक पहली फीचर फिल्म "भोले शंकर" रिलीज़। फिल्म ने शानदार सौ दिन पूरे किए। बतौर पटकथा लेखक-निर्देशक 4 शॉर्ट फिल्में - अजीजन मस्तानी, दंश, लक्ष्मी और बहुरूपिया। चारों राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित और प्रशंसित। कई फिल्म फेस्टिवल्स में शामिल। विज्ञापन फिल्मों और कॉरपोरेट फिल्मों के लेखन और निर्देशन में भी सक्रिय।
ब्लॉग: क़ासिद
सम्प्रति: रीजनल एडीटर। नई दुनिया/संडे नई दुनिया।
संपर्क: pankajshuklaa@gmail.com }
बतौर लेखक-निर्देशक पहली फीचर फिल्म "भोले शंकर" रिलीज़। फिल्म ने शानदार सौ दिन पूरे किए। बतौर पटकथा लेखक-निर्देशक 4 शॉर्ट फिल्में - अजीजन मस्तानी, दंश, लक्ष्मी और बहुरूपिया। चारों राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित और प्रशंसित। कई फिल्म फेस्टिवल्स में शामिल। विज्ञापन फिल्मों और कॉरपोरेट फिल्मों के लेखन और निर्देशन में भी सक्रिय।
ब्लॉग: क़ासिद
सम्प्रति: रीजनल एडीटर। नई दुनिया/संडे नई दुनिया।
संपर्क: pankajshuklaa@gmail.com }
12 comments: on "तुम ही छिटक के दूसरे का चांद हो गईं।"
पढ़वाने का आभार, आनन्द आ गया।
GAZAB KI GAZALEIN HAR SHER SHANADAR
मैं तारे तोड़ भी लाता आसमा में जा कर
तुम ही छिटक के दूसरे का चाँद हो गईं
ये शेर तो बहुत ही खूबसूरत है ...
शुक्रिया प्रवीण पाण्डेय जी।
वंदना जी, आपकी तारीफ़ मेरा हौसला बढ़ाती है।
शारदा जी, बहुत बहुत शुक्रिया।
emotions are expressed in very nice way... specially i hv liked this one.. Mein tare bhi thod lata..........
itna achha padne ko mila mujhe Pankaj ji ko badhayee aur mere us mitr ko dhnywaad jisne mujhe ye link diya
प्रियंबदा जी, बहुत बहुत धन्यवाद।
नीरज पाल जी, शुक्रिया दोस्त। आपसे बातें करके भी अच्छा लगा। उन मित्र का नाम ज़रूर जानना चाहूंगा जो हमारे और आपके बीच सेतु बने। उनको भी धन्यवाद।
मैं तारे तोड़ भी लाता आसमा में जा कर
तुम ही छिटक के दूसरे का चाँद हो गईं
ye wakayi antar me utrnewala sher hai....... har rachna lajvab ..
sir bahut khubsurat sabdon ka prayog kiya hai aapne. feelings ko bahut feel karke likha ho jaise.
रजनी जी। बहुत बहुत आभार। चोट खाकर ही इंसान लिखना सीखता है शायद।
रवीना कश्यप। शुक्रिया रवीना। फीलिंग्स को फील करके लिखा है, क्या डॉयलॉग मारा है, अगली फिल्म में इस्तेमाल करने लायक है।
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