बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

मंगलवार, 27 सितंबर 2011

गुमनाम अर्थियों को मिला इंसानियत का कंधा

50 लावारिस शवों का खालिद ने किया एक साथदाह-संस्कार, पितृपक्ष में मिला मोक्ष [अस्पताल की मोर्चरी में छह माह से पड़े थे]  पचास अंत्येष्टियां एक साथ हुईं, लेकिन रोनेवाला कोई नहीं। ये बदनसीब मृत आत्माएं उनकी...
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गुरुवार, 22 सितंबर 2011

दलितों के क्रीमी लेयर का उच्छ्वास

छत्तीसगढ़ में राष्ट्रीय दलित सम्मलेन का तुष्टिकरण   संजीव खुदशाह की क़लम से  गत १७ सितंबर को छत्तीसगढ़ कि राजधानी रायपुर में देश भर के दलित जुटे.जातिगत भेदभाव एवं दलितों का प्राकृतिक संसाधनों में उनके अधिकार विषय...
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रविवार, 11 सितंबर 2011

तुम ही छिटक के दूसरे का चांद हो गईं।

पंकज शुक्ल की क़लम से फरवरी की पांचवीं तारीख़ वो जो हलचल है तेरे दिल में मेरी हरकत है, मेरी जुंबिश ही तेरे हुस्न की ये   बरकत है। मेरी गुस्ताख़ नज़र ने तुझे फिर से देखा, तू कुछ औऱ खिली, और रंगीं शफ़क़त है। गुम हूं पास तेरे...
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गुरुवार, 8 सितंबर 2011

प्रकृति के आदिम सम्मान का पर्व करमा

                                काराम चांडुः मुलुःलेना : जुड़ि दुमाङ साड़िताना                   अश्विनी ...
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मंगलवार, 6 सितंबर 2011

मुल्क के लाल कब तक रहें बदहाल !

  आज़ादी के संग्रामी व दुमका के पहले सांसद की विधवा के मार्फ़त  गुंजेश की क़लम से  यह सरायदाहा गाँव है. यहीं आज़ादी के नामवर सिपाही लाल हेंब्रम उर्फ़ लाल बाबा  ने विदेशी दासता के क्रूर दस्तावेज़...
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(यहाँ पोस्टेड किसी भी सामग्री या विचार से मॉडरेटर का सहमत होना ज़रूरी नहीं है। लेखक का अपना नज़रिया हो सकता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान तो करना ही चाहिए।)