1
मुझसे इतना भी हौसला न हुआ
जब बुरा बन गया, भला न हुआ
ज़ख्म के फूल अब भी ताज़ा हैं
दूर होकर भी फासला न हुआ
तेरी आहट क़दम-क़दम पर थी
ज़िंदगी में कभी खला न हुआ
होने वाली है कोई अनहोनी
वक़्त पर एक फ़ैसला न हुआ
रेज़ा-रेज़ा बिखर गए सपने
लोग कहते हैं मसअला न हुआ
हादसा होते सबने देखा पर
कोई उलझन से मुब्तला न हुआ
जब बुरा बन गया, भला न हुआ
ज़ख्म के फूल अब भी ताज़ा हैं
दूर होकर भी फासला न हुआ
तेरी आहट क़दम-क़दम पर थी
ज़िंदगी में कभी खला न हुआ
होने वाली है कोई अनहोनी
वक़्त पर एक फ़ैसला न हुआ
रेज़ा-रेज़ा बिखर गए सपने
लोग कहते हैं मसअला न हुआ
हादसा होते सबने देखा पर
कोई उलझन से मुब्तला न हुआ
2.
जैसे होती थी किसी दौर में, हैवानों में
बेसकूनी है वही आज के इंसानों में
जल्द उकताते हैं हर चीज़ से, हर मंजिल से
ये परिंदों की सी आदत भी है दीवानों में
उम्र भर सच के सिवा कुछ न कहेंगे, कह कर
नाम लिखवा लिया अब हमने भी नादानों में
जिस्म दुनिया में भी जन्नत के मज़े लेता रहा
रूह इक उम्र भटकती रही वीरानों में
उसकी मेहमान नवाजी की अदाएं देखीं
हम भी सकुचाए से बैठे रहे बेगानों में
नाम, सूरत तो हैं पानी पे लिखी तहरीरें
मेरी पहचान रहेगी मेरे अफसानों में
झूठ का ज़हर समाअत से उतर जाएगा
बूंद सच्चाई की उतरे तो मेरे कानों में
जो भी होना है वो निश्चित है, अटल है ‘श्रद्धा’
क्यूँ न कश्ती को उतारे कभी तूफानों में
बेसकूनी है वही आज के इंसानों में
जल्द उकताते हैं हर चीज़ से, हर मंजिल से
ये परिंदों की सी आदत भी है दीवानों में
उम्र भर सच के सिवा कुछ न कहेंगे, कह कर
नाम लिखवा लिया अब हमने भी नादानों में
जिस्म दुनिया में भी जन्नत के मज़े लेता रहा
रूह इक उम्र भटकती रही वीरानों में
उसकी मेहमान नवाजी की अदाएं देखीं
हम भी सकुचाए से बैठे रहे बेगानों में
नाम, सूरत तो हैं पानी पे लिखी तहरीरें
मेरी पहचान रहेगी मेरे अफसानों में
झूठ का ज़हर समाअत से उतर जाएगा
बूंद सच्चाई की उतरे तो मेरे कानों में
जो भी होना है वो निश्चित है, अटल है ‘श्रद्धा’
क्यूँ न कश्ती को उतारे कभी तूफानों में
3.
नज़र में ख़्वाब नए रात भर सजाते हुए
तमाम रात कटी तुमको गुनगुनाते हुए
तुम्हारी बात, तुम्हारे ख़याल में गुमसुम
सभी ने देख लिया हमको मुस्कराते हुए
फ़ज़ा में देर तलक साँस के शरारे थे
कहा है कान में कुछ उसने पास आते हुए
हरेक नक्श तमन्ना का हो गया उजला
तेरा है लम्स कि जुगनू हैं जगमगाते हुए
दिल-ओ-निगाह की साजिश जो कामयाब हुई
हमें भी आया मज़ा फिर फरेब खाते हुए
बुरा कहो कि भला पर यही हक़ीकत है
पड़े हैं पाँव में छाले वफ़ा निभाते हुए
तमाम रात कटी तुमको गुनगुनाते हुए
तुम्हारी बात, तुम्हारे ख़याल में गुमसुम
सभी ने देख लिया हमको मुस्कराते हुए
फ़ज़ा में देर तलक साँस के शरारे थे
कहा है कान में कुछ उसने पास आते हुए
हरेक नक्श तमन्ना का हो गया उजला
तेरा है लम्स कि जुगनू हैं जगमगाते हुए
दिल-ओ-निगाह की साजिश जो कामयाब हुई
हमें भी आया मज़ा फिर फरेब खाते हुए
बुरा कहो कि भला पर यही हक़ीकत है
पड़े हैं पाँव में छाले वफ़ा निभाते हुए
4.
जब कभी मुझको गम-ए-यार से फुर्सत होगी
मेरी गजलों में महक होगी, तरावत होगी
भुखमरी, क़ैद, गरीबी कभी तन्हाई, घुटन
सच की इससे भी जियादा कहाँ कीमत होगी
धूप-बारिश से बचा लेगा बड़ा पेड़ मगर
नन्हे पौधों को पनपने में भी दिक्क़त होगी
बेटियों के ही तो दम से है ये दुनिया कायम
कोख में इनको जो मारा तो क़यामत होगी
आज होंठों पे मेरे खुल के हंसी आई है
मुझको मालूम है उसको बड़ी हैरत होगी
नाज़ सूरत पे, कभी धन पे, कभी रुतबे पर
ख़त्म कब लोगों की आखिर ये जहालत होगी
जुगनुओं को भी निगाहों में बसाए रखना
काली रातों में उजालों की ज़रूरत होगी
मेरी गजलों में महक होगी, तरावत होगी
भुखमरी, क़ैद, गरीबी कभी तन्हाई, घुटन
सच की इससे भी जियादा कहाँ कीमत होगी
धूप-बारिश से बचा लेगा बड़ा पेड़ मगर
नन्हे पौधों को पनपने में भी दिक्क़त होगी
बेटियों के ही तो दम से है ये दुनिया कायम
कोख में इनको जो मारा तो क़यामत होगी
आज होंठों पे मेरे खुल के हंसी आई है
मुझको मालूम है उसको बड़ी हैरत होगी
नाज़ सूरत पे, कभी धन पे, कभी रुतबे पर
ख़त्म कब लोगों की आखिर ये जहालत होगी
जुगनुओं को भी निगाहों में बसाए रखना
काली रातों में उजालों की ज़रूरत होगी
वक़्त के साथ अगर ढल नहीं पाईं 'श्रद्धा'
ज़िंदगी कुछ नहीं बस एक मुसीबत होगी
ज़िंदगी कुछ नहीं बस एक मुसीबत होगी
कविता कोश के पाँच वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में प्रथम कविता कोश सम्मान से आज 7 अगस्त को जयपुर में श्रद्धा जैन को भी अलंकृत किया जाना है.हमज़बान की ओर से उन्हें अनगिनत मुबारकबाद.
परिचय :जन्म : ८ नवम्बर,१९७७] विदिशा, मध्यप्रदेश में
शिक्षा: रसायन में स्नातकोत्तर
सृजन: गजलों का शतक
सम्प्रति: ग्लोबल इंटर नेशनल स्कूल, सिंगापूर में हिन्दी का अध्यापन
संपर्क: shrddha8@gmail.com
ब्लॉग : भीगी ग़ज़लें
शिक्षा: रसायन में स्नातकोत्तर
सृजन: गजलों का शतक
सम्प्रति: ग्लोबल इंटर नेशनल स्कूल, सिंगापूर में हिन्दी का अध्यापन
संपर्क: shrddha8@gmail.com
ब्लॉग : भीगी ग़ज़लें
16 comments: on "श्रद्धा जैन की भीगी ग़ज़लें"
sach ke siva kuchh nhi kahenge.. bahut sundar sanjeeda sahaj.
u r doing well Shrddha.....keep it up...
श्रृद्धा जी की रचनाएं मन को भा गईं।
आप इनका लिंक भेज ही चुके हैं। कल सोमवार को इन्हें ब्लॉगर्स मीट वीकली में पेश किया जाएगा। श्रृद्धा जैन जी और उनके समस्त प्रशंसकों सहित आप ब्लॉगर्स मीट वीकली में सादर आमंत्रित हैं।
कल के आयोजन में शामिल होने के लिए आप इस लिंक पर आयें
http://www.hbfint.blogspot.com/
बहुत ही सुन्दर रचनायें।
bahutkhoob
बहुत ही खुबसूरत रचनाएँ एक से बढ़ कर एक ......
बहुत उम्दा गज़लें हैं...
श्रद्धा जी "कविता कोष सम्मान" के लिए हार्दिक बधाई...
सादर...
आपकी पोस्ट " ब्लोगर्स मीट वीकली {३}"के मंच पर सोमबार ७/०८/११को शामिल किया गया है /आप आइये और अपने विचारों से हमें अवगत करिए /हमारी कामना है कि आप हिंदी की सेवा यूं ही करते रहें। कल सोमवार को
ब्लॉगर्स मीट वीकली में आप सादर आमंत्रित हैं।
हमारी ओर से भी बहुत बहुत मुबारकबाद।
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ब्लॉगवाणी की 27वीं कड़ी!
आखिर इस दर्द की दवा क्या है ?
श्रद्धा जी को पढना एक सुखद एहसास से गुजरने जैसा है...कमाल का लिखती हैं...काश मैं आज जयपुर में होता तो उनसे मिल लेता...मेरे शहर आयीं भी किस वक्त...पुरूस्कार की उन्हें ढेरों बधाइयाँ...
नीरज
श्रद्धा जी को पढ़ना एक बहुत ही सुखद अनुभूति है ! कहन का अंदाज़ और कलाम की खूबसूरती पाठक के दिल तक सीधी उतरती चली जाती है ,जादू इसे ही कहते हैं !
बहुत ही शानदार गज़ल्।
वाह ...बेहतरीन प्रस्तुति ।
ek se badhkar ek ghazal...pahli baar aapse parichit hone ka mauka mila..behad accha laga..hardik badhayee aaur apne blog pe aane ke nimantran ke sath...
आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
कृपया पधारें
चर्चा मंच
bahut khoobsoorat, behatar andaj.
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हमको आइना दिखाना है, दिखा देते हैं.
- अल्लामा जमील मज़हरी