बाबुषा कोहली की कवितायें
कुरआन की पहली आयत
"सब खूबियाँ
अल्लाह को,
मालिक जो -
सारे जहां वालों का ;
सारी तारीफें
तेरी ही हैं ! "
यही है न ,
कुरान की ,
पहली आयत !
मेरे मौला,
मेरे मालिक -
तेरी ही तो हैं,
सब तारीफें !
गुज़ारिश है ,
एक छोटी-सी -
मानेगा तू?
ले -ले मेरी
कमजोरियां;
तू अपने सर !
ले- ले मेरे
गुनाह भी तू ,
अपने सर !
ले - ले मेरी
ये संगदिली ;
तू अपने सर -
एकदम मेरे
बाप की तरह !
दे दे मुझे तू
हुक्म ,
कि बदल दूँ
ये आयत !
क्या पता -
शायद ,
कुछ शर्म
आ जाए मुझे !
शायद -
दुरुस्त हो जाऊं ,
मेरे मालिक !
(मार्च २४,२०११)
वह राह -
लिख रही हूँ आज मैं
मर जाऊं जब मैं
दे देना मेरे ख़्वाब
आंसू मेरे दे देना
तमाम शायरों को
हर बूँद से होगी ग़ज़ल पैदा
मेरा वादा है !
मेरी गहरी नींद और भूख
दे देना 'अंबानियों' औ' 'मित्तलों' को
बस !
बाक़ी बचे -
मेरी ईर्ष्या,
मेरा लालच ,
मेरा क्रोध ,
मेरे झूठ ,
मेरे दर्द -
तो -
ऐसा करना ;
उन्हें मेरे संग ही जला देना !
( मार्च ९,२०११)
मक्का
वह राह -
नहीं जाती
'मक्क़ा' को -
लेकिन
पहुंचाती है
आख़िर में -
'मक्क़ा' ही !
(अप्रैल 30 , 2011)वसीयत
अपने पूरे होशो - हवास में लिख रही हूँ आज मैं
वसीयत अपनी !
मर जाऊं जब मैं
खंगालना मेरे कमरे को
टटोलना हर एक चीज़ -
टटोलना हर एक चीज़ -
दे देना मेरे ख़्वाब
उन तमाम स्त्रियों को
जो किचन से बेडरूम
और बेडरूम से किचन की दौड़ाभागी में
और बेडरूम से किचन की दौड़ाभागी में
भूल चुकी हैं सालों पहले ख़्वाब देखना !
बाँट देना मेरे ठहाके
वृद्धाश्रम के उन बूढों में
रहते हैं जिनके बच्चे -
अमेरिका के जगमगाते शहरों में !
टेबल में मेरे देखना
कुछ रंग पड़े होंगे
दे देना सारे रंग -
उन जवानों की विधवाओं को
शहीद हो गए थे जो
बॉर्डर पर लड़ते-लड़ते !
बॉर्डर पर लड़ते-लड़ते !
शोखी मेरी ,मस्ती मेरी
भर देना उनकी रग - रग में -
भर देना उनकी रग - रग में -
झुक गए कंधे जिनके
बस्ते के भारी बोझ से !
आंसू मेरे दे देना
तमाम शायरों को
हर बूँद से होगी ग़ज़ल पैदा
मेरा वादा है !
मेरी गहरी नींद और भूख
दे देना 'अंबानियों' औ' 'मित्तलों' को
बेचारे न चैन से सो पाते हैं
न चैन से खा पाते हैं !
मेरा मान , मेरी आबरू
उस वेश्या के नाम है -
बेचती है जिस्म जो
बेटी को पढ़ाने के लिए !
मेरा मान , मेरी आबरू
उस वेश्या के नाम है -
बेचती है जिस्म जो
बेटी को पढ़ाने के लिए !
इस देश के एक-एक युवक को
पकड़ के लगा देना 'इंजेक्शन'
मेरे आक्रोश का
पड़ेगी इसकी ज़रुरत
क्रान्ति के दिन उन्हें !
दीवानगी मेरी
हिस्से में है
उस सूफ़ी के
निकला है जो सब छोड़ कर ,
ख़ुदा की तलाश में !
पकड़ के लगा देना 'इंजेक्शन'
मेरे आक्रोश का
पड़ेगी इसकी ज़रुरत
क्रान्ति के दिन उन्हें !
दीवानगी मेरी
हिस्से में है
उस सूफ़ी के
निकला है जो सब छोड़ कर ,
ख़ुदा की तलाश में !
बस !
बाक़ी बचे -
मेरी ईर्ष्या,
मेरा लालच ,
मेरा क्रोध ,
मेरे झूठ ,
मेरे दर्द -
तो -
ऐसा करना ;
उन्हें मेरे संग ही जला देना !
( मार्च ९,२०११)
तिलिस्म
मत ढूंढो मुझे शब्दों में
मैं मात्राओं में पूरी नहीं
व्याकरण के लिए चुनौती हूँन खोजो मुझे रागों में
शास्त्रीय से दूर आवारा स्वर हूँएक तिलिस्मी धुन हूँ
मेरे पैरों की थाप
महज कदमताल नहीं
एक आदिम जिप्सी नृत्य हूँ
अपने पैने नाखूनों को कुतर डालो
मेरी तलाश में मुझे मत नोचो
एक नदी जो सो रही है भीतर कहीं
उसे छूने की चाह में मुझे मत खोदोमेरे पैरों की थाप
महज कदमताल नहीं
एक आदिम जिप्सी नृत्य हूँ
अपने पैने नाखूनों को कुतर डालो
मेरी तलाश में मुझे मत नोचो
एक नदी जो सो रही है भीतर कहीं
मत चीरो फाड़ो
कि मेरी नाभि से ही उगते हैं रहस्यइस सुगंध को पीना ही मुझे पीना है
मुझे पा लेना मुट्ठी भर मिट्टी पाने के बराबर है
मुझमें खोना ही अनंत आकाश को समेट लेना है मुझे पा लेना मुट्ठी भर मिट्टी पाने के बराबर है
स्वप्न हूँ भ्रम हूँ मरीचिका मैं
सत्य हूँ सागर हूँ मैं अमृत ..
परिचय : बाबुशा लिखती हैं, बड़ी झिझक हो रही है . परिचय तो है ही नहीं मेरा ..सच मानिए इस बात को ..! भला एक आवारा रूह का क्या परिचय बनाया जाए ?
क्या परिचय दे दिया जाए ..मैं दो दिन यही बात सोचती रही और ख़लील जिब्रान लगातार याद आते रहे जो जीवन में एक ही बार ठिठके जब किसी ने पूछा कि तुम कौन हो ?
बड़ी मुश्किल !
सच में मेरी पात्रता नहीं है कि कुछ भी मेरे बारे में लिखा जाए.
आप चाहें तो कविताओं के नीचे सिर्फ़ 'बाबुषा कोहली' लिख सकते हैं .
विजय के सारे पदक एक दिन पानी में बह जायेंगे..
कुछ भाव गढ़े जो शब्दों में , वो ही बाक़ी रह जायेंगे..
(यह जानकारी उनके फेसबुक प्रोफाइल से मिली:
जन्म: कटनी में ६ फरवरी , १९७९
शिक्षा: रानी दुर्गावती विश्विद्यालय से
सम्प्रति: केन्द्रीव विद्यालय जबलपुर में अंग्रेजी अध्यापन
संपर्क:babusha@gmail.com
ब्लॉग:कुछ पन्ने और बारिस्ता )
5 comments: on "कुरआन,मक्का, तिलिस्म और वसीयत"
वसीयत kaivta ki kuch pantiya achchi ban padi hai sundar kivta aap ko badhai ho
इनकी रचनाओं के गहन भाव सोंचने को मजबूर करते हैं ! इस शक्तिशाली कलम के लिए शुभकामनायें !
परिचय कराने के लिए शहरोज़ भाई का आभार !
बाबूषा जी की कोशिश अच्छी है।
आपको उनकी तस्वीर क़ुरआन शरीफ़ की आयतों के ऊपर नहीं लगाना चाहिए था। जहां इस तरह आयतें पेश की जाएं वहां तस्वीर लगानी ही नहीं चाहिए।
पता नहीं यह बात आपसे कैसे चूक गई ?
बुख़ारी साहब का बयान इस्लाम के खि़लाफ़ है
दिल्ली का बुख़ारी ख़ानदान जामा मस्जिद में नमाज़ पढ़ाता है। नमाज़ अदा करना अच्छी बात है लेकिन नमाज़ सिखाती है ख़ुदा के सामने झुक जाना और लोगों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े होना।
पहले सीनियर बुख़ारी और अब उनके सुपुत्र जी ऐसी बातें कहते हैं जिनसे लोग अगर पहले से भी कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हों तो वे आपस में ही सिर टकराने लगें। इस्लाम के मर्कज़ मस्जिद से जुड़े होने के बाद लोग उनकी बात को भी इस्लामी ही समझने लगते हैं जबकि उनकी बात इस्लाम की शिक्षा के सरासर खि़लाफ़ है और ऐसा वह निजी हित के लिए करते हैं। यह पहले से ही हरेक उस आदमी को पता है जो इस्लाम को जानता है।
लोगों को इस्लाम का पता हो तो इस तरह के भटके हुए लोग क़ौम और बिरादराने वतन को गुमराह नहीं कर पाएंगे।
अन्ना एक अच्छी मुहिम लेकर चल रहे हैं और हम उनके साथ हैं। हम चाहते हैं कि परिवर्तन चाहे कितना ही छोटा क्यों न हो लेकिन होना चाहिए।
हम कितनी ही कम देर के लिए क्यों न सही लेकिन मिलकर साथ चलना चाहिए।
हम सबका भला इसी में है और जो लोग इसे होते नहीं देखना चाहते वे न हिंदुओं का भला चाहते हैं और न ही मुसलमानों का।
इस तरह के मौक़ों पर ही यह बात पता चलती है कि धर्म की गद्दी पर वे लोग विराजमान हैं जो हमारे सांसदों की ही तरह भ्रष्ट हैं। आश्रमों के साथ मस्जिद और मदरसों में भी भ्रष्टाचार फैलाकर ये लोग बहुत बड़ा पाप कर रहे हैं।
ये सारे भ्रष्टाचारी एक दूसरे के सगे हैं और एक दूसरे को मदद भी देते हैं।
अन्ना हज़ारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन पर दिए गए अहमद बुख़ारी साहब के बयान से यही बात ज़ाहिर होती है।
ब्लॉगर्स मीट वीकली 5 में देखिए आपसी स्नेह और प्यार का माहौल।
गहरी रचनायें।
'कुरान की पहली आयत' और 'वसीयत' अच्छी लगीं
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रचना की न केवल प्रशंसा हो बल्कि कमियों की ओर भी ध्यान दिलाना आपका परम कर्तव्य है : यानी आप इस शे'र का साकार रूप हों.
न स्याही के हैं दुश्मन, न सफ़ेदी के हैं दोस्त
हमको आइना दिखाना है, दिखा देते हैं.
- अल्लामा जमील मज़हरी