सैयद एस क़मर की कलम से
राम को इमाम ए हिंद कहने वाला पहला व्यक्ति मुसलमान था। सभी जानते हैं उस उर्दू शायरको , उसी ने कहा था, सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तां हमारा । लेकिन इकबाल से बहुत पहले और बाद में भी अनगिनत मुस्लिम कवि,संपादक और अनुवादक हुए, जिन्होंने मर्यादापुरुषोत्तम राम पर केन्द्रित रचनाओं का सृजन,संपादन और अनुवाद किया ।
सबसे पहला सम्मानित नाम है फारसी कवि शेख सादी मसीह का जिन्होंने 1623 ई में दास्ताने राम व सीता शीर्षक से राम क था लिखी थी। मुगल सम्राट अकबर को बेहिचक गंगा जमुना संस्कृति का प्रतीक माना जाता है। इस बादशाह ने पहली बार रामायण का फारसी में पद्यानुवाद कराया। अनुवादक थे मुल्ला अब्दुल कादिर बदायूंनी । शाहजहां के समय रामायण फैजी के नाम से गद्यानुवाद हुआ।
मुल्ला की मसीही रामायण
जहांगीर के जमाने में मुल्ला मसीह ने मसीही रामायण नामक मौलिक रामायण की रचना की । पांच हजार छंद में उन्होंने रामकथा को बद्ध किया था। बाद में 1888 में मुंशी नवल किशोर प्रेस, लखनऊ से यह अनुपम ग्रंथ प्रकाशित हुआ । कट्टर मानेजाने वाले मुगलबादशाह औरंगजेब के काल में चंद्रभान बेदिल ने रामायण का फारसी पद्यानुवाद किया था। नवाब पीछे क्यों रहते। रामचरित मानस पहली बार लखनऊ के नवाब वाजिद अली शाह के जमाने में उर्दू में छपी। इस रामायण में खंड के नाम थे: रहमत की रामायण, फरहत की रामायण,मंजूम की रामायण ।
रामचरित मानस मुसलमानों के लिए भी आदर्श
अब्दुल रहीम खान-ए-खाना अकबर के नौ रत्नों में थे और गोस्वामी तुलसीदास के सखा भी। रहीम ने कहा था कि रामचरित मानस हिंदुओं के लिए ही नहीं मुसलमानों के लिए भी आदर्श है। वह लिखते हैं :
रामचरित मानस विमल, संतन जीवन प्राण,
हिंदुअन को वेदसम जमनहिं प्रगट कुरान
कवि संत रहीम ने राम कविताएं भी लिखी हैं। इतिहासकार बदायूंनी अनुदित फारसी रामायण की एक निजी हस्तलिखित प्रति उनके पास भी थी जिसमें चित्र उन्होंने बनवा कर शामिल किये थे। इस 50 आर्षक चित्रों वाली रामायण के कु छ खंड फेअर आर्ट गैलरी ,वॉशिंगटन में अब भी सुरक्षित हैं।
तुलसीदास से ढाई सौ साल पहले खुसरो ने किया राम का गुनगान
रहीम के अलावा अन्य संत कवियों जैसे फरीद, रसखान, आलम रसलीन, हमीदुद्दीन नागौरी ने राम पर काव्य रचना की है। उर्दू हिंदी का पहला कवि अमीर खुसरो ने तुलसीदासजी से 250 वर्ष पूर्व अपनी मुकरियों में राम का जिक्र किया था।
उर्दू,फारसी और अरबी में लगभग 160 ऐसी पुस्तकें
1916 में उत्तरप्रदेश के एक छोटे कस्बे, गाजीपुर में जन्मे अली जव्वाद ज़ैदी ने अपने जीवन के आखिरी दो दशक देश के कोने-कोने से उर्दू-रामायण की छपी पुस्तकें , पांडुलिपियाँ जमा करने में लगा दिये। उर्दू,फारसी और अरबी में लगभग 160 ऐसी पुस्तको की फ़ेहरिस्त उन्होंने सामने लायी, जिसमें राम का वर्णन है। ये खज़ाना भारत के अलग-अलग शहरों में फैला हुआ है। दुखद है कि समय ने उनका साथ न दिया और इस फ़ेरहिस्त को पूरा करने और उसको एक पुस्तक का आकार देने का उनका सपना साकार न हो सका । गंगा जमुना संस्कृति का दुर्लभ सितारा 2004 की छह दिसंबर की सर्द शाम संसार से कूच कर गया।
राम के मौजूदा भक्त
आज भी नाजऩीन अंसारी ,अब्दुल रशीद खा, नसीर बनारसी, मिर्जा हसन नासिर, दीन मोहम्मद् दीन, इकबाल कादरी, पाकि स्तान के शायर जफर अली खां जैसं कवि- शायर हैं जो राम के व्यक्तित्व की खुशबू से सराबोर रचनाएं कर रहे हैं।
लखनऊ के मिर्जा हसन नासिर रामस्तुति में लिखते हैं:
कंजवदनं दिव्यनयनं मेघवर्णं सुंदरं।
दैत्य दमनं पाप-शमनं सिंधु तरणं ईश्वरं।।
गीध मोक्षं शीलवंतं देवरत्नं शंकरं।
कोशलेशम् शांतवेशं नासिरेशं सिय वरं।।
नाज़नीन की उर्दू में रामचरित मानस
राम का जिकर बिना हनुमान के अधूरा माना जाता है । उर्दू में इस अभाव को पूरा किया मंदिरों के शहर वाराणसी की एक मुस्लिम लड़की ने । महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ विश्वविद्यालय की छात्रा नाजऩीन अंसारी ने हनुमान चालीसा को उर्दू में लिपिबद्ध कर मुल्क की गंगा-जमुनी तहजीब की नायाब मिसाल पेश की है। अब यह लड़की बाबा तुलसी द्वारा रचित श्रीरामचरितमानस को उर्दू में लिपिबद्ध कर रही है ।
14 घंटे पहले
15 comments: on "मुसलमान हुए जब रामभक्त"
मुझे तो सब अपने ही लगते हे, राम हो या रहीम
Ye maaloomaat mujhe nahee thee. Bahut achha laga ye sab janke.
एक मुस्लिम भाई के द्वारा श्रीराम पर शोधपरक और सुंदर आनेख पढ़कर अतिशय प्रसन्नता हुई। काश, इस गंगा जमुना तहजीब को सभी लोग समझ पाते। केवल राम ही नहीं बल्कि श्रीकृष्ण पर भी अनेक मुस्लिम कवियों ने रचनाएं लिखी हैं, इनमें रसखान और नज़ीर अकबराबादीका नाम अग्रगण्य है।
बहुत ही सुन्दर पोस्ट, सब इसे पढ़ें और सबकी भावनाओॆ का सम्मान करें।
बहुत सुन्दर पोस्ट .आज बेहद जरुरत है कि सब यह जाने - माने.
हम तक इतनी रोचक जानकारी पहुँचाने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद ! हमें फख्र है हमारी गंगा-जमुनी तहजीब पर. इस पोस्ट तक और लोगों को पहुँचाने के लिए इसे अपने बज़ पर शेयर कर रही हूँ.
समाज, परिवार और राज्य के दायित्व को किस प्रकार निभाया जाता है, ये सब राम चरित्र से सीखा जा सकता है...
इसमें धर्म बीच में कहां से आ जाता है.
बहुत ज्ञानवर्धक जानकारी दी है...बधाई.
बहुत बढ़िया पोस्ट ...बहुत अच्छी और सटीक जानकारी मिली ...आभार
ज्ञान वर्धक आलेख.......
सैयद साहेब को साधुवाद.
Na Hindu Banega NA Musalman Banega , Insan Ki aulad hai Insan Banega.
Ye gana kaisa rahega sabke liye
bahut hi jabardast Shodh karye "janab Kamar" sahib, aaj ye sab jaanne ki jarurat he/ Me jis jagha se belongs karta hun waha
60%muslism awadi he/ lekin apas me itna madhur vyavhar he, ki aaj tak waha hamare aas-pas ke kasbo-shehron jhgade hone ke babjood, mere kasbe me jhagde nhi hue jhagde nhi hue/ kyun wo isliye/ ki waha apsa me itne ghule-mile he log ki unko in bekar ki baton se koi lena dena nhi... aaj fir se wahi mahaul banane ki jarurat he/.... shaandar prayas...
सही वक्त पर सही पोस्ट !
बहुत बढ़िया पोस्ट
बेहतरीन पोस्ट के लिए शुभकामनायें शहरोज़ !
bahut khoob, ye he aaj ki baat, jo insaan ko insaan se jode,
is bat ka majmoon bs yahi he, ram kaho ya raheem kaho!
sundar shaandar prastuti!
एक टिप्पणी भेजें
रचना की न केवल प्रशंसा हो बल्कि कमियों की ओर भी ध्यान दिलाना आपका परम कर्तव्य है : यानी आप इस शे'र का साकार रूप हों.
न स्याही के हैं दुश्मन, न सफ़ेदी के हैं दोस्त
हमको आइना दिखाना है, दिखा देते हैं.
- अल्लामा जमील मज़हरी