मीरा कुमारी की क़लम से
क ल तक समाज के जिस वर्ग को घृणा और तिरस्कार की नज़रों से देखा जाता था, आजादी के वर्षों बाद तक जिसे अछूत मानकर लोग किनारा कर लिया करते थे, आज उसी वर्ग की सुनीता केरी के घर राहुल गांधी जैसे छोटे-बड़े नेताओं का आना-जाना लगा रहता है। दलितों की बस्तियों में अब अक्सर राजनेताओं की गाड़ियाँ चक्कर काटने लगी हैं। दलितों की इस तरह मिजाजपुर्सी की जाएगी, सुनीता केरी ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था, क्योंकि एक समय इन दलितों को अछूत मानकर इनकी बस्तियां और पीने के पानी के कुएं इत्यादि सवर्ण बस्तियों से काफी दूर रखे जाते थे। अगर इनसे कोई काम करवाना होता तो उन्हें दूर से ही निर्देश दे दिये जाते थे। यहां तक कि अगर भूलवश किसी दलित से कोई सामान छू जाता तो उस पर गंगाजल छिड़क कर उसे शुद्ध किया जाता था, पर आज अचानक ऐसा क्या हो गया कि राजनेताओं को इनके घरों की खाक छाननी पड़ रही है। इस वंचित वर्ग की उन्हें तीमारदारी करनी पड़ रही है।
दरअसल यह सारा खेल राजनीति का है। सत्ता की कुर्सी पर खुद को बनाए रखने के लिए तो राजनेता किसी के पांव तक पड़ने को तैयार हो जाते हैं। फिर यह तो केवल उनकी मिजाजपुर्सी की बात है। सत्ता के खेल में आज दलितजन अहम भूमिका निभा रहे हैं। उन्हीं के हाथों में सत्ता की कुंजी है। वह जिसे चाहें, उसकी सरकार बनवा दें, जिसे चाहें सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा दें। समाज का यह वंचित तबका आज सरकार बनाने और बिगाड़ने में महत्पूर्ण भूमिका निभा रहा है। देश के सबसे बड़े क्षेत्रफल वाले राज्य उत्तर प्रदेश और बड़े-बड़े साम्राज्य कायम करने वाले बिहार की बात करें तो इन दिनों यहां-वहां दलितों को ढाल बनाकर राजनीति के दांव-पेंच जमकर आजमाए जा रहे हैं। बिहार में दलित नेता तथा पूर्व केन्द्रीय मन्त्री रामविलास पासवान अपनी खोयी हुई राजनीतिक जमीन वापस पाने के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को निशाना बना रहे हैं। पासवान नीतीश पर दलितों को आपस में बांट कर राजनीतिक रोटियां सेंकने का आरोप लगा रहे हैं ताकि वहां की दलित जनता नीतीश से कट कर बिरादरी के आधार पर पासवान को अपना नेता चुन ले। वहीं उत्तर प्रदेश में राजनीतिक बिसात बिछा कर दोनों बड़ी पार्टियाँ [बसपा और कांग्रेस] दलित कार्ड के सहारे सन् 2012 में होने वाला सत्ता संग्राम जीतने के लिए अपना सब कुछ झोंक देने के लिए सन्नद्ध दिख रही हैं। खुद को दलितों का मसीहा कहने वाली मायावती नहीं चाहतीं कि उनके गढ़ में कोई सेंधमारी करे। इसलिए उन्होंने अपनी पूरी ताकत अपने वोटरों, खासकर दलितों को रिझाने के लिए झोंक दी है। अंबेडकर जयन्ती के दिन मायावती उनके अनुयायियों को खुश करने के लिए कांग्रेस को नेस्तनाबूद करने का संकल्प दिला चुकी हैं, मगर कांग्रेस के युवा नेता राहुल गांधी भी हार मानने वालों में नहीं हैं। उन्होंने भी यह कह कर अपनी मंशा साफ कर दी कि अब हम पीछे हटने वाले नहीं। राहुल के तल्ख तेवर देख कर ऐसा लग रहा है कि इस बार उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में उन्होंने मायावती को पटखनी देने की ठान ही ली है। तभी तो लड़ाई का मोर्चा उन्होंने मायावती के सबसे बड़े गढ़ अंबेडकर नगर से ही खोल दिया है। बाबा साहेब की प्रतिमा को माल्यार्पण करने का राहुल का निर्णय सीधे-सीधे मायावती के वोट बैंक पर हाथ डालने से जुड़ा हुआ है। इस बात को मायावती भांप गई थीं। वह अपने पैरों पर खुद ही कुल्हाड़ी कैसे मार सकती थीं। वह अच्छी तरह जानती थीं कि राहुल द्वारा अंबेडकर की प्रतिमा पर माल्यार्पण करने से दलित वर्ग उनकी तरफ आकर्षित हो सकता है। इसलिए उन्होंने राहुल को ऐसा करने की इजाजत ही नहीं दी। कथित तौर पर माल्यार्पण करने की इजाजत नहीं मिलने पर कांग्रेस ने बसपा पर आरोप लगाते हुए कहा कि मायावती अंबेडकर की विरासत पर एकाधिकार का प्रयास कर रही हैं। अंबेडकर जयन्ती को आधार बनाकर दोनों पार्टियों ने जिस तरह एक दूसरे पर कीचड़ उछाला, उससे तो यही लग रहा है कि सन् 2012 का विधानसभा चुनाव काफी दिलचस्प होने जा रहा है। दोनों तरफ से इसके लिए स्पष्ट संकेत भी किए जा चुके हैं। पिछले दिनों अंबेडकर नगर से शुरू हुआ घटनाक्रम उत्तर प्रदेश के राजनीतिक परिदृश्य को पूरी तरह से बदल सकता है।
अंबेडकर जयन्ती के बहाने बसपा और कांग्रेस एक-दूसरे के खिलाफ अपने तीर भरे तरकश लेकर मैदान में कूद पड़े हैं। दोनों पार्टियाँ अच्छी जरह जान-समझ रही हैं कि सत्ता की कुंजी दलितों के पास ही है। दलित जिसकी मुट्ठी में होंगे, राज्य की कमान भी उसी के हाथ में होगी। लिहाजा दोनों पार्टियाँ दलितों को प्रभावित करने के लिए अपने-अपने दावे पेश कर रही हैं। माया जहां वर्तमान में खुद को दलितों की सबसे बड़ी रहनुमा बता रही हैं, वहीं कांग्रेस कह रही है कि उन्हीं की पार्टी ने दलित समुदाय को आरक्षण और जमीनें देकर उनका भला किया था। कांग्रेस ने ही बाबा साहेब को संसद में पहुंचने का मौका दिया था। दलित उनके पुराने वोट बैंक रहे हैं। गौरतलब है कि देश की राजनीति में कांग्रेस युग का आधार दलित, मुस्लिम और बाह्मण वोट ही थे, मगर मण्डल और मन्दिर आन्दोलन ने कांग्रेस के वोटरों में भारी सेंधमारी की, जिसके कारण कांग्रेस का जनाधार खिसक कर अलग-अलग पार्टियों की तरफ चला गया। इसमें सबसे ज्यादा लाभ बसपा को मिला। जितने भी दलित वोट थे, वे सब बसपा की झोली में गिर गए और माया दलितों की मसीहा बन गईं। धीरे-धीरे मायावती ने अपनी पार्टी में बाह्मण, क्षत्रिय और मुस्लिम नेताओं को भी शामिल कर लिया ताकि दलितों के साथ-साथ सवर्णों के वोट भी उनके पाले में खिसक आए। आज मायावती की पार्टी में अनुमानत: 39 विधायक ब्राह्मण, 19 क्षत्रिय (ठाकुर), 11 मुस्लिम और 14 पिछड़ी जाति के हैं। इस तरह बसपा ने पूरे उत्तर प्रदेश पर कब्जा कर लिया, मगर 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में प्रदेश के राजनीतिक परिदृश्य में बदलाव के जो संकेत मिले, उससे कांग्रेस की उम्मीदें काफी बढ़ गई हैं। उत्तर प्रदेश में जमीन तलाश रही कांग्रेस को अप्रत्याशित रूप से 22 लोकसभा सीटों पर कामयाबी क्या मिल गई, उसे वहां अपनी वापसी की आस बंध गई और शुरू हो गया राहुल गांधी का मिशन 2012। उसी के साथ शुरू हो गया अपने परंपरागत दलित वोटरों को रिझाने का सिलसिला।
राहुल का दलित प्रेम किसी से छिपा नहीं है। इसलिए कांग्रेस राहुल को आगे कर अपनी योजना को मूर्त रूप देने में जुट गई है, जिसकी शुरुआत दलितों के गढ़ अंबेडकर नगर में रैली के आयोजन से कर दी गई है। कांग्रेस की रैली में उमड़ी भीड़ ने माया की आंखों से नीन्द गायब कर दी। कांग्रेस की रैली की सफलता को देखकर बसपा को यह डर सताने लगा है कि जिस तरह कांग्रेस रूठे मुसलमानों को मनाकर वापस अपने खेमे में शामिल कर चुकी है, कहीं उसी तरह दलित भी अपने पुराने घर की ओर चल पड़े तो माया की सियासी हैसियत तार-तार हो जाएगी। दलितों पर कांग्रेस प्रेम हावी न हो जाए, इस भय से बहन जी ने सभी नेताओं को यह निर्देश जारी कर दिया कि वे गांव-गांव जाकर दलित वर्ग को बताएं कि कांग्रेस शुरू से ही कितनी अंबेडकर विरोधी रही है। इतना ही नहीं, बसपा नेताओं ने तो अंबेडकर के अनुयायियों को यहां तक समझाया कि मान्यवर कांशी राम और मायावती ने दलितों में स्वाभिमान पैदा किया है। उन्हें राजनीतिक ताकत दी है। इससे वे देश में एक बड़ी राजनीतिक ताकत बन चुके हैं, मगर कांग्रेस साजिश के तहत मायावती को कमजोर करके दलितों की ताकत को खत्म कर देना चाहती है। दरअसल, इन दिनों उत्तर प्रदेश में दो तरह की दलित राजनीति गरमाई हुई है। एक दलित मायावती के हैं तो दूसरे कांग्रेस के। कांग्रेस के दलित वे हैं, जहां राहुल जाते हैं, उनकी झोपçड़यों में खाना खाते और ठहरते हैं। उन दलितों का रुझान कांग्रेस की तरफ है। वहीं मायावती के दलित प्रेम की बात करें तो वे उनकी दलित रैली में जाते तो हैं, मगर सिर्फ डर और लालच की वजह से, स्वेच्छा से नहीं। भय इस बात का कि अगर बहन जी की रैली में साथ नहीं दिया तो उनके गुस्से का कोपभाजन बनना पड़ेगा और लालच इस बात का कि बहन जी की रैली में जो दलित आते हैं, उन्हें वह कांग्रेस से कहीं अधिक सुविधाएं मुहैया कराती हैं। रैली में आए दलितों को दो दिन का भोजन, आने-आने की सुविधा और 10 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से पैसा भी दिया जाता है। मायावती की सफल रैली के पीछे उनके कुछ दबंग नेताओं का हाथ होता है। रैली आयोजित करने से पहले पार्टी किसी एक ऐसे दलित व्यçक्त को मुखिया बनाती हैं, जिसका अन्य दलितों पर रोब हो। उसी व्यçक्त पर अधिक से अधिक दलितो को इकठ्ठा करने की जिम्मेदारी सौंपी जाती है। दलितों का कांग्रेस के प्रति रुझान बसपा के लिए सिरदर्द बन गया है। कांग्रेस से भयभीत बसपा के सरकारी अमले के लोग लगातार उन दलितों के घरों के चक्कर काट रहे हैं, जिन घरों में बीते तीन सालों के दौरान राहुल गांधी आते-जाते रहे हैं। दलित वोटों को रिझाने-बचाने के लिए शुरू हुई सियासी जंग में दलितों की भी पौ-बारह हो गई है। दलित बस्तियों में इन दिनों बसपा कार्यकर्ताओं की आवाजाही बढ़ गई है। शह-मात के इस खेल में सरकारी अमला न सिर्फ गांव के लोगों की मिजाजपुर्सी करने में लगा हुआ है, बल्कि गांव की जरूरतों के बारे में हुक्मरान सूची भी तैयार कर रहे हैं। जिन-जिन गांवों में कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी का दौरा हुआ, उन सभी जगहों की जनता को पटाने में पुलिस और जिला प्रशासन ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। श्रावस्ती के जिस रामपुर देवमन गांव के तिलहर मजरे में राहुल ने 24 सितम्बर, 2009 को रात गुजारी थी, उसकी प्रधान जलवर्षा की भी इस बीच खूब मिजाजपुर्सी हो रही है। तकरीबन 2628 लोगों की आबादी वाले इस गांव में 676 दलित निवास करते हैं, मगर आज भी इस गांव की साक्षरता दर मात्र पांच फीसदी है। यही नहीं, सन् 2007 में अमेठी के जौहर गांव की जिस सुनीता केरी के यहां राहुल ने रात गुजारी थी, बसपा नेता उसके भी खूब चक्कर काट रहे हैं।
बसपा चाहे खुद को कितना भी दलितों की हिमायती बताए और बाबा साहेब की प्रतिमाएं बनवा कर उन पर माल्यार्पण करवाती रहे, मगर सच तो यही है कि जमीनी तौर पर उनके विकास के लिए बसपा ने आज तक कुछ भी ठोस नहीं किया। जिन दलितों के बल पर आज वह सत्ता पर काबिज हैं, उन्हें अभी तक समाज की मुख्यधारा से जोड़ तक नहीं पाई हैं। दलित मतदाता भी इस बात को अच्छी तरह समझ गए हैं कि बसपा सिर्फ उनका सहारा लेकर सत्ता में बने रहना चाहती है। उसका मकसद मात्र सत्ता सुख का निर्बाध उपभोग है, न कि दलितों का हित साधन। अगर सही मायने में मायावती दलितों का हित चाहतीं तो इतने सालों बाद भी दलित बस्तियों में लोग शिक्षा, स्वास्थ्य और बिजली-पानी के संकट से जूझ नहीं रहे होते।
खुद को दलितों का मसीहा बता कर मायावती ने सिर्फ मूर्तियां ही तो लगवाईं हैं, मगर जो जीवित हैं, उन दलितों को कौन सा अधिकार उन्होंने दिलाया है? मायावती सरकार को सत्ता में आए तीन साल होने को हैं, मगर दलितों की स्थिति आज भी वैसी की वैसी है। विकास के नाम पर उन्होंने सिर्फ पार्क और दलित जाति के महापुरुषों की मूर्तियां ही बनवाई हैं। वह भले ही यह कह कर खुद को दलितों का रहनुमा साबित करने की कोशिश का रही हों कि क्वहम दलित और पिछड़ी जातियों के महापुरुषों के नाम पर पार्क और मेमोरियल इसलिए बनवा रहे हैं ताकि उन्हें उनका जायज सम्मान दिया जा सकें, पर वास्तविकता तो यही है कि जितने पैसे उन्होंने उन बेजान मूर्तियों के निर्माण में लगाये, उसका आधा हिस्सा भी अगर वे दलितों के हित के लिए खर्च करतीं तो उत्तर प्रदेश के दलितों का झुकाव कांग्रेस की तरफ नहीं होता। उनके रसूख और दबदबे की वजह से लोग भले ही अपना मुंह नहीं खोलते हों, पर सच्चाई तो यही है कि अब वे दलित अपना मसीहा मायावती को नहीं, कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी को मानने लगे हैं। हालांकि कांग्रेस ने अभी शुरुआत ही की है, लेकिन दलितों के प्रति उसका जो लगाव है और आज तक उनके लिए जो कुछ भी उसने किया है, वह सब दलितों को लुभाने का लालीपॉप भर नहीं है, क्योंकि दलितों को उनका हक दिलाने और उनको हरिजन कहे जाने पर आपçत्त जताने वाले बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर को महात्मा गांधी ने ही संसद के गलियारों तक पहुंचने का मार्ग दिया। वही जज्बा अब राहुल के दिल में भी है।
[ लेखक-परिचय:
जन्म:२४ दिसंबर १९८३,मुजफ्फरपुर बिहार
शिक्षा: बी.ए.और जनसंचार एवं पत्रकारिता में उपाधि
सृजन: छिट-पुट पत्र-पत्रिकाओं में लेख, समीक्षा रपट प्रकाशित
संप्रति: लोकायत में कापी एडिटर
संपर्क: meeramuskan@gmail.com ]