बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

मंगलवार, 23 फ़रवरी 2010

स्विस बैंक में बंद रक्तक्रांति

 














आवेश की कलम से


माओवादी लीडरों  के अरबों  रूपए स्विस बैंक में जमा

 
पश्चिम बंगाल के लालगढ़ से लेकर छत्तीसगढ़ के लालबाग तक रक्तक्रांति की बदौलत सामाजिक क्रांति का दावा करनेवाले नक्सली संगठनों का एक नया चेहरा सामने आया है , आदिवासी-गिरिजनों की मसीहाई का दावा करने वाले कुछ एक माओवादी नेताओं के खाते स्विस बैंक में होने के पुख्ता सबूत मिले हैं | भारत के कतिपय माओवादी नेता  न सिर्फ अपने खातों का संचालन स्विस बैंक के माध्यम से कर रहे हैं ,बल्कि नेपाल के भी माओवादी नेताओं का धन भी हिंदुस्तान होता हुआ स्विस बैंक पहुँच रहा है | स्विस बैंक "क्रेडिट सुईस "के अधिकारी  हल्शी बाश ने अपने सनसनीखेज मेल में  खुलासा किया है कि बैंक में जामा राशि लाखो यूरो के बराबर हैं ,जो कि बैंकों को ,उनके  खाताधारकों का नाम गुप्त रखने के लिए प्रभावित करता है | कहा तो यहाँ तक जा रहा है कि युरोपियन यूनियन के साथ साथ  चीन भी इन खातों के संचालन में माओवादी नेताओं की मदद कर रहा है  गौरतलब है कि हिंदुस्तान में माओवादियों द्वारा फिरौती के रूप में सालाना प्रतिवर्ष तीन से चार हजार करोड़  रूपए की वसूली की जा रही है ,अकेले छत्तीसगढ़ में हर वर्ष माओवादी ३५० -४५० करोड़ की वसूली करते हैं | ऐसा  नहीं है कि माओवादियों का आर्थिक स्रोत सिर्फ फिरौती की रकम है इसके अलावा  नेपाल ,बर्मा ,म्यांमार,बंगला देश आदि से भी माओवादियों  को भारी धन प्राप्त हो रहा है ,इतना ही नहीं देश में चल रहे कई एन,जी,ओ भी इन्हें फंडींग  कर रहे हैं | हालाँकि  सरकार माओवादियों को विदेशों से मिलनेवाले आर्थिक मदद की  बात से साफ़ इनकार करती रही है | अफ़सोस इस बात का है कि न सिर्फ केंद्र बल्कि राज्य सरकारें भी माओवादियों के आर्थिक तन्त्र को तोड़ पाने में विफल रही हैं ,नतीजा यह है कि  नक्सली उन्मूलन की सारी कार्यवाही बेमानी साबित हुई है |

स्विस बैंक क्रेडिट सुईस  के अधिकारी का 
सनसनीखेज खुलासा

तस्वीर के कई रूप हैं क्या आप यकीन करेंगे कि देश की मुख्यधारा से अलग-थलग कर दिए गए आदिवासी गिरिजनों को सब्ज बाग़ दिखाने वाले कई माओवादी नेता  रक्तक्रांति की आड़ में अपार धन की उगाही कर रहे हैं इनके स्विस बैंक में  खाते हैं   दिल्ली ,मुंबई ,कलकत्ता आदि महानगरों में आलिशान मकान हैं और उनके बच्चे बेहद महंगे स्कूलों में पढ़ रहे हैं | पैसों की इस हवस का नतीजा यह  है  कि माओवादी संगठनों में मौजूदा समय में पैसे को लेकर कैडर आपस में ही लड़-भीड़ रहे हैं ,हत्याएं हो रही हैं , विद्रोह हो रहे हैं , विश्वासघात हो रहे हैं माओवादियों नेताओं द्वारा स्विस बैंक के खातों में जो पैसा ट्रान्सफर किया गया है उसको लेकर चौंका देने वाली  जानकारी मिली है माओवादियों ने स्विस बैंक में धन स्थानान्तरण से पहले देश के ही कई बैंकों में फर्जी खाते खुलवाये गए उसके बाद पैसों का स्थानांतरण एक बैंक से दूसरे बैंक में करके ,पहले वाले खाते को बंद कर दिया गया ,जिसे इस बात का पताया लगाया ही न जा सके कि ये पैसा आखिर किस जगह से आया | बैंक में सहायक प्रबंधक और "रोने लेन जेनेवा " के रहने वाले हल्शी  बाश का कहना है कि नेपाल के माओवादी नेताओं प्रचंड , हिशिला यामी,कृष्णा महारा के अलावा भारत  के जिन नेताओं के खाते स्विस बैंक में है ,उनमे से नियमित क्रम में धन का आहरण होता रहा है ,सूत्रों की माने तो नेपाल के माओवादियों का खाता हिंदुस्तान में छदम नामों से खोला जा रहा है ,भारत नेपाल सीमा पर स्थित कई बैंकों के अधिकारी  भी इस गडबडझाले में पूरी मदद करते रहे हैं |








नक्सली संगठनों में पैसे के इस पूरे खेल का सच बताने के लिए यही सच काफी है कि माओवादी संगठनों में फिरौती की  रकम के बंटवारे को लेकर पिछले छः माह  के दौरान ही  लगभग आधा दर्ज़न हत्याएं हुई हैं ,उत्तर प्रदेश और झारखण्ड में आतंक का पर्याय माने जाने वाले रामवृक्ष और शिव प्रकाश कुशवाहा को उनके ही साथियों ने मौत के घाट उतार दिया ,वहीँ ५० लाख की लेवी और बड़े पैमाने पर असलहे  लेकर फरार एम.सी.सी के बसंत यादव और उसके साथियों के खिलाफ मौत का फरमान जारी कर दिया , मौजूदा समय में एक ही बैनर के तले  काम करने वाले माओवादी अलग अलग गुटों में बंटकर ठेकेदारों और व्यवसाइयों से लेवियां वसूल कर रहे हैं जिसका परिणाम खूनी संघर्ष के रूप में सामने आ रहा है | बताया जाता है कि पीपुल्स वार ग्रुप के सब जोनल कमांडर मुन्ना विश्वकर्मा ने ही लेवी की  रकम को लेकर  अपने वरिष्ठ रामवृक्ष की हत्या कर दी थी वहीँ कुछ दिनों बाद ही पीपुल्स वार ग्रुप से ही जुड़े 'सोन गंगा विन्ध्याचल कमेटी' के शिवप्रकाश की  भी हत्या इन्ही परिस्थितियों में हुई | उत्तर प्रदेश कैडर के  एक वरिष्ठ आई .पी एस  कहते हैं कि लेवी की रकम को लेकर नक्सली संगठनों में खून खराबे के मामले पिछले चार महीनो में बढे  हैं ,रामवृक्ष और मुन्ना विश्वकर्मा के बीच विवाद फिरौती की  रकम के बंटवारे को लेकर शुरू हुआ था ,कुछ समय बाद ही दोनों अलग अलग ग्रुपों में काम करने लगे | महत्वपूर्ण है कि  मौजूदा समय में अकेले बिहार ,झारखण्ड और उत्तर प्रदेश में लगभग १४ की संख्या में अलग अलग ग्रुप काम कर रहे हैं आश्चर्यजनक ये है कि ये नए  ग्रुप न सिर्फ सरकारी तंत्र के खिलाफ काम कर रहे हैं बल्कि एक दूसरे के  खिलाफ भी कर रहे हैं ,इसके पहले गढ़वा का रामस्वरूप दो करोड़ रूपए का सोना लेकर ही फरार हो गया |
माओवादियों के इस धनतंत्र से जुड़े सच को समझने के लिए उनके आर्थिक स्रोतों को भी समझना होगामाओवादियों द्वारा फिरौती के तौर पर  प्रतिवर्ष दो हजार करोड़ रूपए  की वसूली किये जाने  जाने की बात स्वीकार करते हुए आई .बी के संयुक्त निदेशक रंजन कहते हैं कि यह  सिर्फ कागजी आंकड़ा नहीं है यह  तथ्य माओवादियों की  धर पकड़ में मिले कैश बुक और अन्य दस्तावेजों पर आधारित है ,छत्तीसगढ़ के इस पूर्व डी.जी.पी का कहना है कि माओवादी जो भी पैसा अलग अलग स्रोतों  से प्राप्त कर रहे हैं उसके केवल १० फीसदी हिस्सा ही संगठन के निचले कैडर पर खर्च किया जाता है बाकी नब्बे फीसदी हिस्सा सी पी आई (एम् एल ) के बड़े कैडरों के जेब में जा रहा है | चौंका  देने वाला तथ्य यह  है कि माओवादियों को आर्थिक मदद  देने में नक्सल प्रभावित  राज्यों के बड़े औद्योगिक उपक्रम भी पीछे नहीं हैं ,सूत्रों की  माने तो छत्तीसगढ़ में मौजूद स्टील के एक बड़े कारखाने से ही माओवादी लीडरान को सालाना लगभग सौ करोड़ रूपए मिलते हैं | यही हाल झारखण्ड का है जहाँ  लेवी के रूप में सर्वाधिक वसूली की  जाती है ,जो जानकारी मिली है कि स्विस बैंकों के खातों में जिन माओवादी लीडरों के धन हैं वो  इन्ही दो राज्यों में से आते हैं | एक ऐसे वक़्त में जब भारी सुरक्षा बल लगाकर माओवाद के कथित तौर पर खात्मे कि कवायद की जा रही है यह  सवाल महत्वपूर्ण है कि  धनकुबेर  माओवादी लीडरों के राजफाश के बजाय दिन रात  बुनियादी जरूरतों के लिए कराह  रहे मजलूमों के खिलाफ ग्रीन हंट जैसे युद्ध छेड़ने का आखिर तर्क क्या है |

                                                                                                                                           
[लेखक-परिचय : बहुत ही आक्रामक-तीखे तेवर वाले इस युवा पत्रकार से आप  इनदिनों हर कहीं मिलते होंगे, ज़रूर.! हमज़बान के लिए  विकलांगता का अभिशाप झेलते आदिवासी से हमें रूबरू कराया था.आपका का ब्लॉग है कतरने.  लखनऊ और इलाहाबाद से प्रकाशित हिंदी दैनिक डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट में ब्यूरो प्रमुख। पिछले सात वर्षों से विशेष तौर पर उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जनपद की पर्यावरणीय परिस्थितियों का अध्ययन और उन पर रिपोर्टिंग कर रहे हैं। 
आवेश से awesh29@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है। ]

                                                                                                  

Digg Google Bookmarks reddit Mixx StumbleUpon Technorati Yahoo! Buzz DesignFloat Delicious BlinkList Furl

8 comments: on "स्विस बैंक में बंद रक्तक्रांति"

rashmi ravija ने कहा…

ओह्ह यह तो सचमुच एक सनसनीखेज़ खुलासा है....इन बेचारे गरीबों को बेवकूफ बना कर ये लोग अपना उल्लू सीधा कर रहें हैं...बेहद अफसोसजनक स्थिति

राजीव रंजन प्रसाद ने कहा…

अगर यह सच है तो भयावह स्थ्ति है। इस खबर से उनकी भी आँख खुल जानी चाहिये जो इन माओवादियों से व्यवस्था परिवर्तन की उम्मीद करते हैं। इस देश को नर्क बना देंगे अगर कहीं ये माओवादी अपने मनसूबों में सफल हो गये..

shikha varshney ने कहा…

आवेश जी के लेख हमेशा सनसनी खेज़ होते हैं ...ये खुलासा भी आँखें खोल देने वाला है...आभार

tension point ने कहा…

बहुत ही चौंकाने वाली पोस्ट है सनसनीखेज है

drdhabhai ने कहा…

सही तो ये है कि माऔ वाद कोई वाद नहीं बल्कि सीधा आतंकवाद हैं.....उनसे वैसे ही पैश आना चाहिये जैसे लश्करे तैयैवा जैसे कतिपय संगठनों से आते है ं

Spiritual World Live ने कहा…

are bhaiya kya kah rahe hain....are baap re baap!!
tumko bhai dar-war bhi lagta hai yaa nahin..bhai ye log kisi ko nahin bakshte..salaam tumhaari aankh kholti qalam ko!!

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' ने कहा…

मोहतरम शहरोज़ साहब, आदाब
मामला काफ़ी संजीदा है....
क्या लगता है, कुछ हो पायेगा?

राज भाटिय़ा ने कहा…

शहरोज़ साहब मामला तो बहुत गंभीर है, लेकिन होना कुछ नही क्योकि इस हमाम मै यह सब नंगे है ओर चोर है लेकिन दुख होता है उन भोले भाले लोगो पर जो इन की बातो मे आ कर अपने हाथ खुन से रंगते है ओर दुसरो का खुन बहाते है....

एक टिप्पणी भेजें

रचना की न केवल प्रशंसा हो बल्कि कमियों की ओर भी ध्यान दिलाना आपका परम कर्तव्य है : यानी आप इस शे'र का साकार रूप हों.

न स्याही के हैं दुश्मन, न सफ़ेदी के हैं दोस्त
हमको आइना दिखाना है, दिखा देते हैं.
- अल्लामा जमील मज़हरी

(यहाँ पोस्टेड किसी भी सामग्री या विचार से मॉडरेटर का सहमत होना ज़रूरी नहीं है। लेखक का अपना नज़रिया हो सकता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान तो करना ही चाहिए।)