बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

शुक्रवार, 17 दिसंबर 2010

ले मशालें चल पड़ी है नाजिया रांची शहर की

हौसले की उड़ान शहर की  ताकतवर महिलाओं में शुमार कुरैश मोहल्ला, आजाद बस्ती , रांची की  नाजिया तबस्सुम उन सब की  आवाज बनकर मुखर हुई है, जिनके  लब पर बरसों से ताले जड़े हुए थे। इस युवा लड़की की  बेबाकी ,ऊर्जा,साहस...
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गुरुवार, 9 दिसंबर 2010

हौसले की उड़ान : तस्लीम ! राहत की कहकशां

जादूई  चमत्कार की  तरह शिखर पर पहुंची तस्लीम राहत के  अलावा सफलता के  सोपान चढ़ती शहर की कहकशां  नाज़ ऐसी मिसाल है,जिसके  साहस और परिश्रम ने सारे उल्टे पहाड़े सीधे कर  दिये हैं । आत्मनिर्भरता की  इबारत रचती इसकी  उड़ान औरों के  हौसले को  भी जान बख्श रही है। मां पिता के  देहांत के  बाद...
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गुरुवार, 2 दिसंबर 2010

बिहार: इस बार जीते हैं सबसे ज्यादा पढ़े लिखे मुस्लिम विधायक

 हालिया संपन्न विधानसभा चुनाव ने साबित कर दिया है कि बिहार में बदलाव की लहर चल पड़ी है। इसकी तेज और मंद गति को लेकर बहस संभव है। लेकिन इस सच से इंकार नहीं किया जा सकता कि चुनकर आए 19 मुस्लिम विधायकों में से ज्यादातर उच्च शिक्षा प्राप्त हैं,साथ ही इनकी औसत उम्र 45 साल है। इनमें डॉक्टर, वकील और पीएचडी धारी भी हैं । 14 विधायक तो पहली बार विधानसभा...
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गुरुवार, 25 नवंबर 2010

बिहार चुनाव: मुसलिम विधायकों का कद ज़रा बढ़ा

बिहार में मुसलमानों की आबादी सोलह प्रतिशत से ज्यादा है, लेकिन बिहार विधान सभा में उनका प्रतिनिधित्व महज 6.58 ही रहा। लेकिन इस बार यह प्रतिशत ज़रा  बढ़ा है। पिछले विस में जहां मुस्लिम विधायक सोलह थे आज की अप्रत्याशित जीत में वह 20 हो गए हैं। आबादी के लिहाज से देखें तो कम-से-कम बिहार विधान सभा में 38 से 40 मुसलमान प्रतिनिधियों को पहुंचना चाहिए,...
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सोमवार, 25 अक्टूबर 2010

अदब के साथ ग़ज़ल का सलीका .जगजीत से एक गुफ्तगू

मौका मिला तो झारखंड के लिए जरूर गाऊंगा। मुझे तो रांची के लोगों का प्यार यहां खींच लाया। येबातें प्रसिद्ध गजल गायक जगजीत सिंह ने दैनिक भास्कर  के लिए ली गयी  एक खास मुलाकात में कहीं। बश्शास चेहरे पर आई स्मित मुस्कान से सफ़र की थकान गायब थी। जब हमने उनके जवानी के उबाश दिनों को हौले से सहलाया तो उनकी गंभीरता में अनायास ही बालसुलभ मस्तीभरी...
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गुरुवार, 14 अक्टूबर 2010

इवा का कुनबा यानी मुकम्मल भारत

सैयद एस क़मर की क़लम से जमशेदपुर से लौटकर जमशेदजी टाटा ने जब कोल्हान के  इस अनाम सी जगह में इस्पात काररखाने की  बुनियाद डाली तो हिदुस्तान के  कोने- कोने से लोग आये। बंगाली,मराठी,कन्नड़,तेलुगु,मलयाली,मुस्लिम,हिदू,सिख,ईसाई और पारसियों का कुनबा। रंग-बिरंगे फूलों की  चटख दूर तक  महसूस की  जाती थी। बीच में सन 54,79 और...
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सोमवार, 11 अक्टूबर 2010

मुसलमान हुए जब रामभक्त

सैयद एस क़मर की कलम से राम को  इमाम ए हिंद कहने  वाला पहला व्यक्ति मुसलमान था।  सभी जानते हैं उस उर्दू शायरको , उसी ने कहा  था, सारे जहां  से अच्छा हिंदुस्तां हमारा । लेकिन इकबाल  से बहुत पहले और बाद में भी अनगिनत मुस्लिम कवि,संपादक और अनुवादक  हुए, जिन्होंने मर्यादापुरुषोत्तम राम पर केन्द्रित  रचनाओं का ...
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शनिवार, 2 अक्टूबर 2010

सुथरे भी हों और पारदर्शी भी..पर कैसे हो चुनाव !

    शेली खत्री की क़लम से   चुनाव प्रक्रिया मांग रहा सुधार  भारतीय राजनीति से नीति शब्द काफी पहले ही हट गया है।  मौजूदा राजनीति के लिए स्वार्थ  नीति, कुचक्र नीति आदि नाम दिए जाते हैं।  हालत यह है कि अच्छे लोग राजनीति से दूर रहना पसंद करते हैं। देश का युवा वर्ग राजनीति से अपना दामन बचाने की हर संभव कोशिश...
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गुरुवार, 9 सितंबर 2010

नज़ीर अकबराबादी की ईद

है आबिदों को त'अत-ओ-तजरीद की ख़ुशी और ज़ाहिदों को ज़ुहद की तमहीद की ख़ुशी रिंद आशिक़ों को है कई उम्मीद की ख़ुशी कुछ दिलबरों के वल की कुछ दीद की ख़ुशी ऐसी न शब-ए-बरात न बक़्रीद की ख़ुशी जैसी हर एक दिल में है इस ईद की ख़ुशी पिछले पहर...
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मंगलवार, 31 अगस्त 2010

दलित मोह कितना अपना

    मीरा कुमारी की क़लम से क ल तक समाज के जिस वर्ग को घृणा और तिरस्कार की नज़रों से देखा जाता था, आजादी के वर्षों बाद तक जिसे अछूत मानकर लोग किनारा कर लिया करते थे, आज उसी वर्ग की सुनीता केरी के घर राहुल गांधी जैसे छोटे-बड़े...
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सोमवार, 30 अगस्त 2010

हिन्दुत्व की अवधारणा ही आतंकी है

अमलेंदु उपाध्याय  की क़लम से कांग्रेस के साथ आरंभ से दिक्कत यह रही है कि वह किसी भी मुद्दे पर कोई भी स्टैण्ड चुनावी गुणा भाग लगाकर लेती है और अगर मामला गांधी नेहरू खानदान के खिलाफ न हो तो उसे पलटी मारने में तनिक भी हिचक नहीं होती है।...
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गुरुवार, 26 अगस्त 2010

पैसे से खलनायकी ...सफ़र कबाड़ का

 उड़ीसा से छत्तीसगढ़ तक वेदांता की ख़ूनी रेल सैयद एस क़मर की कलम से   यह कोई फ़िल्मी  कहानी नहीं है जिसमें एक कुली मजदूर किस तरह रातों रात खरब पति बन जाता है,यह कहानी वेदांता जैसी कंपनी के मालिक की  है, जिसकी छवि...
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सोमवार, 23 अगस्त 2010

यानी जब तक जिएंगे यहीं रहेंगे !

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