हौसले की उड़ान
शहर की ताकतवर महिलाओं में शुमार कुरैश मोहल्ला, आजाद बस्ती , रांची की नाजिया तबस्सुम उन सब की आवाज बनकर मुखर हुई है, जिनके लब पर बरसों से ताले जड़े हुए थे। इस युवा लड़की की बेबाकी ,ऊर्जा,साहस और आत्मविश्वास देख पुरान पंथी सकते में आ गए । वह ऐसे सवाल पूछने लगी, जिनके जवाबों पर वह कुंडली मार बैठे थे। लेकिन दंश से लापरवाह मशाल थामे तबस्सुम चल पड़ी है । नारा सिर्फ एक है : पढ़ो और पढऩे दो । इसके कारवां में शामिल युवाओं को विश्वास है कि लिंगभेद, निरक्षरता और अंधविश्वास के अंधेरों को वे जरूर छांट लेंगे ।
लेदर कारोबार करनेवाले इब्राहिम कुरैशी की छोटी बेटी नाजिया ने मोहल्ले के कुरैश अकादमी से सन 2003 में मैट्रिक किया । जब मौलाना आजाद कालेज में आई तो हर मामले में बरते जा रहे लिंगभेद से उसे कोफ्त हुई । उसने छात्र संघ चुनाव में हिस्सा लिया और सचिव निर्वाचित हो गई । उत्साह बढ़ा तो अगले वर्ष 2008 में ,रांची विश्वविद्यालय छात्र संघ की संयुक्त सचिव का पद जीत कर उसने इतिहास रच दिया । झारखंड और बिहार में ऐसा पहली बार हुआ कि किसी विश्वविद्यालय छात्र संघ की कोई मुस्लिम लड़की पदाधिकारी बनी । इस जीत ने उसे युवाओं का आईकान बना दिया । मुस्लिम लड़के-लड़कि यों में इनका केरेज बढ़ा । संग साथ पा तबस्सुम के हौसले बढ़े, उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा ।
इसी साल उसने मौलाना अबुल कलाम आजाद द्वारा स्थापित अंजुमन इस्लामिया की सदस्यता के लिए आवेदन किया तो उसे यह कह कर निरस्त कर दिया गया कि महिलाओं के लिए यहां कोई जगह नहीं है । इस जवाब ने उसके तेवर बदल दिए और अंजुमन में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए उसने कमर कस ली । इमारते शरीया और महिला आयोग तक वह मुद्दे को लेकर गई । सभी जगह उसकी जीत हुई । लेकिन धर्म जमात की सियासत करने वालों को एक मुस्लिम लड़की का इस तरह सामने आना हजम नहीं हुआ । उसे धमकिया तक मिलीं, लेकिन इसने उसके हौसले को और बुलंद ही किया । छात्रा के साथ छेड़छाड़ हो, किसी की फीस माफ कराना हो,नाजिया हर कहीं खड़ी मिलती है । मुबंई में हुए आतंकी हमले से वह उद्वेलित हो उठती है , लोगों को जमा कर शहर में एकजुटता के लिए मानव श्रंखला बना देती है । इसने झारखंड लोकसेवा आयोग में नियुक्ति में हुई धांधली के विरुद्ध लगातार प्रतिकार किया । नशा मुक्ति के लिए कालेजों में हस्ताक्षर अभियान चलाया । विश्वविद्यालय में 180 दिनों ·की पढ़ाई, ग्रामीन इलाके के कालेजों में प्रोफेश्रल व वोकेश्नल कोर्स शुरू कराने सहित रामलखन यादव कालेज की जमीन बचाने में नाजिया ने अहम भूमिका निभाई है ।
नाजिया ऐसे समाज से आती हैं, जहां सच को कभी सच की तरह स्वीकार नहीं किया जाता. लेकिन इस लडकी ने तमाम परिभाषाओं को नए मायने दिए हैं.उसने ऐसी मशाल रौशन की है जिसके प्रकाश में अन्याय, अनीति के दुर्दांत चेहरे मधिम पड़ते जा रहे हैं.हम नाजिया के ऐसे जज्बे को सलाम करते हैं.
भास्कर के लिए लिखे लेख का मूल रूप
शहर की ताकतवर महिलाओं में शुमार कुरैश मोहल्ला, आजाद बस्ती , रांची की नाजिया तबस्सुम उन सब की आवाज बनकर मुखर हुई है, जिनके लब पर बरसों से ताले जड़े हुए थे। इस युवा लड़की की बेबाकी ,ऊर्जा,साहस और आत्मविश्वास देख पुरान पंथी सकते में आ गए । वह ऐसे सवाल पूछने लगी, जिनके जवाबों पर वह कुंडली मार बैठे थे। लेकिन दंश से लापरवाह मशाल थामे तबस्सुम चल पड़ी है । नारा सिर्फ एक है : पढ़ो और पढऩे दो । इसके कारवां में शामिल युवाओं को विश्वास है कि लिंगभेद, निरक्षरता और अंधविश्वास के अंधेरों को वे जरूर छांट लेंगे ।
लेदर कारोबार करनेवाले इब्राहिम कुरैशी की छोटी बेटी नाजिया ने मोहल्ले के कुरैश अकादमी से सन 2003 में मैट्रिक किया । जब मौलाना आजाद कालेज में आई तो हर मामले में बरते जा रहे लिंगभेद से उसे कोफ्त हुई । उसने छात्र संघ चुनाव में हिस्सा लिया और सचिव निर्वाचित हो गई । उत्साह बढ़ा तो अगले वर्ष 2008 में ,रांची विश्वविद्यालय छात्र संघ की संयुक्त सचिव का पद जीत कर उसने इतिहास रच दिया । झारखंड और बिहार में ऐसा पहली बार हुआ कि किसी विश्वविद्यालय छात्र संघ की कोई मुस्लिम लड़की पदाधिकारी बनी । इस जीत ने उसे युवाओं का आईकान बना दिया । मुस्लिम लड़के-लड़कि यों में इनका केरेज बढ़ा । संग साथ पा तबस्सुम के हौसले बढ़े, उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा ।
इसी साल उसने मौलाना अबुल कलाम आजाद द्वारा स्थापित अंजुमन इस्लामिया की सदस्यता के लिए आवेदन किया तो उसे यह कह कर निरस्त कर दिया गया कि महिलाओं के लिए यहां कोई जगह नहीं है । इस जवाब ने उसके तेवर बदल दिए और अंजुमन में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए उसने कमर कस ली । इमारते शरीया और महिला आयोग तक वह मुद्दे को लेकर गई । सभी जगह उसकी जीत हुई । लेकिन धर्म जमात की सियासत करने वालों को एक मुस्लिम लड़की का इस तरह सामने आना हजम नहीं हुआ । उसे धमकिया तक मिलीं, लेकिन इसने उसके हौसले को और बुलंद ही किया । छात्रा के साथ छेड़छाड़ हो, किसी की फीस माफ कराना हो,नाजिया हर कहीं खड़ी मिलती है । मुबंई में हुए आतंकी हमले से वह उद्वेलित हो उठती है , लोगों को जमा कर शहर में एकजुटता के लिए मानव श्रंखला बना देती है । इसने झारखंड लोकसेवा आयोग में नियुक्ति में हुई धांधली के विरुद्ध लगातार प्रतिकार किया । नशा मुक्ति के लिए कालेजों में हस्ताक्षर अभियान चलाया । विश्वविद्यालय में 180 दिनों ·की पढ़ाई, ग्रामीन इलाके के कालेजों में प्रोफेश्रल व वोकेश्नल कोर्स शुरू कराने सहित रामलखन यादव कालेज की जमीन बचाने में नाजिया ने अहम भूमिका निभाई है ।
नाजिया ऐसे समाज से आती हैं, जहां सच को कभी सच की तरह स्वीकार नहीं किया जाता. लेकिन इस लडकी ने तमाम परिभाषाओं को नए मायने दिए हैं.उसने ऐसी मशाल रौशन की है जिसके प्रकाश में अन्याय, अनीति के दुर्दांत चेहरे मधिम पड़ते जा रहे हैं.हम नाजिया के ऐसे जज्बे को सलाम करते हैं.
भास्कर के लिए लिखे लेख का मूल रूप
7 comments: on "ले मशालें चल पड़ी है नाजिया रांची शहर की"
आपकी पोस्ट की चर्चा कल (18-12-2010 ) शनिवार के चर्चा मंच पर भी है ...अपनी प्रतिक्रिया और सुझाव दे कर मार्गदर्शन करें ...आभार .
http://charchamanch.uchcharan.com/
नाजिया को शुभकामनाएं!
हमें नाजिया के हौसलों के साथ जानिए !
bahut achi post...behad sundar....badhai ho
नाजिया ऐसे समाज से आती है, जहां सच को कभी सच ... क्या लिखना चाह रहे हैं, आपने जो लिखना चाहा है वह उसी तरह अभिव्यक्त हो रहा है, एक बार फिर देख लें.
भाई बहुत दिन बाद आपकी कलम ब्लॉग पर चली, देख कर अच्छा लगा और नाजिया के बारे में बताने के लिए आप बधाई के हक़दार हैं. ऐसे अपने हक़ के लिए लड़ने वाली लड़कियाँ ही पुर्वगाहों से मुक्त करा रही हैं पुराने लोगों की सोच को .
aur ye bhi dekiye nazia tabassum ke baare men
http://www.twocircles.net/2008jan26/nazia_fights_and_wins_battle_muslim_women_rights.html
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- अल्लामा जमील मज़हरी